श्रीमान जी की प्रतिक्रिया:-रमेश जी, नमस्ते! मेरे ब्लाग पर आप की टिप्पणियों का स्वागत है। लेकिन आप टिप्पणी करने के स्थान पर विज्ञापन छोड़ते हैं। यह स्पेम है और मुझे बिलकुल ठीक नहीं लगता। मैं ने पहले भी इस तरह की टिप्पणियाँ स्पेम कर दी थीं। पुनः कर रहा हूँ। आशा है स्वस्थ और सानंद होंगे।
क्या एक ईमानदार पत्रकार किसी जाति या धर्म का होता है? नहीं. वो जहाँ अन्याय हो रहा हो, वहाँ खड़ा होता है. क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं.वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है.उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये.एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं,प्रजा के दुःख दूर करना,सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना,उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना.
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गुरुवार, सितंबर 29, 2011
क्या यह विज्ञापन है?
श्रीमान जी की प्रतिक्रिया:-रमेश जी, नमस्ते! मेरे ब्लाग पर आप की टिप्पणियों का स्वागत है। लेकिन आप टिप्पणी करने के स्थान पर विज्ञापन छोड़ते हैं। यह स्पेम है और मुझे बिलकुल ठीक नहीं लगता। मैं ने पहले भी इस तरह की टिप्पणियाँ स्पेम कर दी थीं। पुनः कर रहा हूँ। आशा है स्वस्थ और सानंद होंगे।
6 टिप्पणियां:
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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !
क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?
मुझे आपका पक्ष ठीक ही लगा ! पर वे कौन हैं पता नहीं चला !
जवाब देंहटाएंआप जिन्हे गुरु जी कहते हैं वो इंग्लिश में ब्लॉग लिखते हैं
जवाब देंहटाएंव्यक्तिगत रपचियों से परे हिन्दी में ही कार्य।
जवाब देंहटाएंसूचना और विज्ञापन में तो फ़र्क होता है, ऐसा मुझे एक सज्जन ने बताया था। वैसे कौन हैं ये अच्छे ब्लागर?
जवाब देंहटाएंaap bahut gyaani he ,mera praanaam .mere ko raah dikhye !
जवाब देंहटाएंthanking -जनलोकपाल बिल से ज़्यादा बड़े भ्रष्टाचार: लेखक महेश चंद पवार
बहुत ही पाखंडी जमा है कुछ हिंदी को जटिल कर रहे हैं, कुछ धर्म और संसार को सरलता हर जगह हो इस लिए इस तरह के तरीकों का प्रसार आवश्यक है... चाहे कोई इसे विज्ञापन ही क्यों ना समझे और विज्ञापन भी तो इस लिए किये जाते हैं की लोगों को जानकारी हो विज्ञापन भी एक जन जाग्रति का माध्यम ही तो है... और जो इन सब का विरोध करते हैं वो स्वयम को हिंदी का ठेकेदार समझते हैं... मैं भी गूगल हिंदी की लिंक लगाते फिरता हूँ उन मित्रों की फेसबुक वाल पर जो की हिंदी को रोमन लिपि में लिखते हैं
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