इधर दिल्ली को दिलदार-दिल्ली का टैग मिला और उधर पुलिसवालों ने गुड़िया के घरवालों को खर्चा-पानी के लिए दो हजार रुपए की पेशकश कर अपनी दिलदारी दिखाई। यह अवश्य ही दिल्ली के दिलदार होने का ही असर रहा होगा कि पुलिसवालों ने किसी को खर्चा-पानी देने की बात तो की। वरना वे तो खर्चा-पानी लेने के लिए ही जाने जाते हैं। मांग करते रहते हैं कि कुछ तो दिलदारी दिखाओ। खैर जी, वैसे तो दिल्ली को पहले भी दिलवालों की दिल्ली ही कहा जाता था- दिल्ली है दिलवालों की। पर दिल्ली में दिल कहां है? लोग ढ़ूंढने में लगे हैं और वो कहीं मिल ही नहीं रहा। अपनी नन्हीं बेटियों से बलात्कार करनेवालों में दिल होता है क्या? उनके साथ बर्बरता, हैवानियत और पशुता दिखाने वालों की दिल्ली को दिलदार कहने वालों को बहादुरी का कोई बड़ा- सा तमगा अवश्य ही दिया जाना चाहिए। पशुओं में तो दिल अवश्य ही होता है, इसीलिए वे अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए जी-जान लड़ा देते हैं, पर दिल्लीवालों में भी होता है, कहना मुश्किल है। वह दिसम्बर में भी नहीं दिखा, वह अप्रैल में भी नहीं दिखा। दिसम्बर में लगा था कि कुछ बदलेगा। अप्रैल तक आते-आते पता चला कि कुछ भी नहीं बदला है। सब ज्यों का त्यों है। दिल्लीवालों की हैवानियत भी, पुलिसवालों की बेदिली भी, सरकार की उदासीनता भी, भीड़ का आक्रोश भी। और उस आक्रोश का ढोंग भी। सब-कुछ ज्यों का त्यों। दिल्ली की मुख्यमंत्री कहती हैं कि दिल्ली में रहते हुए तो उनकी बेटी भी डरती है। फिर भी उन्होंने दिल्ली को दिलदार दिल्ली का टैग दिया। उन्हें कतई डर नहीं लगा। उन्होंने सचमुच बहादुरी दिखाई। लेकिन ऐसा करते वक्त कहीं उन्होंने सिर्फ दिल्ली पुलिस की ही राय तो नहीं ली, जिसने हो सकता है कह दिया हो कि हम से दिलदार कौन होगा जी जो हमेशा जनता का साथ देने के लिए तैयार रहते हैं। हो सकता है जिस बच्ची को एसीपी अहलावत साहब ने थप्पड़ मारा उसे भी यही भ्रम रहा हो कि दिल्ली पुलिस तो हमेशा हमारे साथ रहती है। एसीपी साहब का हाथ उस वक्त खुजली कर रहा होगा और खर्चा-पानी आ नहीं रहा होगा, सो उन्होंने उस बच्ची को जड़ दिया, वरना दिलदारी में तो कोई कमी नहीं रही होगी। वैसे जी, दिल्ली पुलिस की शिकायत जायज है कि हमेशा हम ही निशाने पर क्यों रहते हैं। कमिश्नर साहब को शिकायत है कि हर बार मुझसे ही इस्तीफा क्यों मांगा जाता है। प्रदर्शनकारी भी मांग रहे हैं, विपक्ष वाले भी मांग रहे हैं और सत्ताधारी भी मांग रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री भी उनका इस्तीफा मांगती रहती हैं। इस पर उन्हें नाराज नहीं होना चाहिए। क्योंकि उनके इस्तीफे की मांग समान भाव से की जाती है। पर जी प्रदर्शनकारी, विपक्ष वाले और सत्ताधारी चाहे कितने ही संकीर्ण हों, खुद कमिश्नर साहब इतने दिलदार हैं कि कह रहे हैं कि अगर उनके इस्तीफा देने से यह हैवानियत रुक जाए तो वे हजार बार इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं। इसे कहते हैं दिलदारी। बताइए एक बार इस्तीफा न देना पड़े, इसलिए हजार बार की बात करने लगे। इसे कहते हैं कि न नौ मन तेल होगा और न ही राधा नाचेगी। पर जी, दिल्ली पुलिस की यह शिकायत जायज है कि बलात्कार तो पूरे देश में हो रहे हैं। कांग्रेसी शिकायत कर रहे हैं कि मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा बलात्कार होते हैं, पर भाजपा वाले, वहां किसी का इस्तीफा नहीं मांगते। पर जी दिल्ली भी दिलदारी कम ना दिखाती। यहां की पुलिस दिलदार कि पीड़िता के घरवालों को दो हजार रुपए खर्चा-पानी के लिए ऑफर कर देती है, कहां की पुलिस करती है बताइए। यहां के प्रेमीजन तो इतने दिलदार हैं कि सीधे माशूका के दिल में छुरा मारते हैं। दिल घायल करने का और कोई तरीका उन्हें मालूम ही नहीं। अभी तक आशिक कत्ल होते आए थे पर अब दिलदार-दिल्ली में आशिक, माशूकाओं को कत्ल करते हैं। यहां के अड़ोसियों- पड़ोसियों की दिलदारी तो ऐसी है कि वे आपस में झगड़ा नहीं करते, बच्चियों को उठा लेते हैं और उनके साथ रेप करते हैं। मकान मालिक इतने दिलदार कि अपने किराएदारों को तंग करते उनकी औरतों के साथ बलात्कार करते हैं। और सगे- संबंधी इतने दिलदार की बहु-बेटियों को ही नहीं छोड़ते। ऐसे में दिल्ली के नेता भी कम दिलदार नहीं, वे किसी भी मुद्दे पर राजनीति करने से बाज नहीं आते।
लेखक "सहीराम" द्वारा लिखित "कटाक्ष" कोलम से साभार.