प्रिय दोस्तों, पाठकों सर्वप्रथम आपका मेरे ब्लॉग पर आने के धन्यवाद करता हूँ. आपको यह जानकार बहुत हैरानी होगी कि मुझे इंग्लिश नहीं आती है. मगर दोस्तों मेरी दिली इच्छा थी कि कोई ऐसा ब्लॉग बनाऊं जिस पर अपने अनुभव, विचारों की अभिव्यक्ति व्यक्त कर सकूँ. मगर किसी प्रकार कोई जानकारी न होने के कारण कुछ नहीं कर सकता था. एक दिन इन्टरनेट पर कुछ ओर ढूढते हुए अचानक मुझसे एक स्थान पर हिंदी भाषा सलेक्ट हो गई और उसको पढ़ते-पढ़ते बन गया मेरा भी ब्लॉग. वो दिन और समय था 19 जुलाई 2010 की रात के 11 बजे का.
दोस्तों, पाठकों आज मेरा ब्लॉग ठीक उसी प्रकार का अजन्मा बच्चा है. जिसने आपनी माँ के गर्भ में अभी-अभी प्रवेश किया है.उसकी माँ को गर्भ आने की मात्र अनुभूति हुई है. जैसे-जैसे गर्भ में बच्चा बड़ा होगा और माँ को उसकी हलचल महसूस होगी. साथ ही उसका उत्साह भी बढेगा तो अपने बच्चे के लिए जागरूक होकर उसका ज्यादा ख्याल रखेंगी. फिर जब उसकी गर्भवस्था का पूरा समय होकर उसका जन्म होगा तब देखना कैसे उसका उपरोक्त यह बच्चा सबसे निराला और स्वस्थ होगा. अपना पहला जन्मदिन जब यह मनायेगा तब इसको जाने वाले आप सभी देखेंगे कि इसकी वेशभूषा देखने लायक होगी. आप सभी पढ़े- लिखें दोस्तों-पाठकों को इस अनपढ, ग्वार और अजन्में बच्चे की ओर से चरण स्पर्श स्वीकार करें. बस अबतक 12 दिनों की यही कहानी है. अच्छा फिर मिलूंगा इन्हीं पेजों पर............आपका अपना प्यारा-सा, छोटा-सा और नन्हा-सा अजन्मा बच्चा.
# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें. हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.
मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !
मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?