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मंगलवार, जुलाई 19, 2011

क्या है हिंसा की परिभाषा ?

ज हिंसा का परिभाषा क्या व्यक्त करें. आज व्यक्ति का भौतिक वास्तुनों के मोह में फंसकर इतना निर्दयी हो गया है कि-कदम-कदम पर झूठ बोलना, धोखा देना, सच का गला घोट देना आदि जैसे अनैतिक कार्यों में लिप्त होकर अपनी आत्मा की आवाज को मारकर दूसरों को दुःख पहुँचाने की साजिश कर रहा है. आज का मनुष्य अपने दुःख में दुखी कम दूसरे के सुख में दुखी ज्यादा हैं. आज का मनुष्य अपने स्वार्थवश "इंसानियत" को अपने दिलों से बाहर निकाल कर फैक चुका है. दया, स्नेह और प्यार जैसे शब्द आज किताबों में बंद होकर रह गए है. अभी कुछ दिन पहले की बात हैं. एक छोटी सी बात पर चेन्नई में-वाइक से टक्कर होने पर एक चौराहे की लालबत्ती पर सारे आम एक व्यक्ति को जान से मार दिया गया था. वहाँ उसको कोई बचाने वाला नहीं आया या यह कहे चार आरोपियों को उस पर कोई दया नहीं आई. यह तो मात्र के घटना है. पूरे देश में ऐसी न जाने कितनी घटनाएँ होती हैं? 
 पिछले कुछ महीनों से चली आ रही जैन धर्म की तपस्या कहूँ या उपवास के दौरान मैंने जाना कि-मुझसे भी आने-अनजाने में कई बार हिंसा हुई है. जिसका पश्चाताप इन दिनों तपस्या करके कर भी रहा हूँ.
 नीचे दो नं. पर लिखा-झूठ बोलना आदि मुझे अपने पेशेगत बोलना या कहना पड़ा, क्योंकि जब मेरे थोड़े से झूठ बोल देने से किसी गरीब का भला हो रहा हो.तब ही मैंने झूठ बोला था या कठु वचन कहना. छह नं. पर लिखा-इन दिनों पत्नी द्वारा झूठे केसों में फँसा दिए जाने के कारण बहुत रोकर भी हिंसा की. आठ नं. पर लिखा-हर अनैतिक कार्य की अपने पेशेगत निंदा करके भी हिंसा की है, वैसे छबीस नं. पर लिखे अनुसार अपना फर्ज अदा ना करना भी हिंसा हैं. अपने फर्ज का कर्तव्य पूरा करने के उद्देश्य से मैंने अनेकों बार हिंसा की है. दस नं. पर लिखे अनुसार-मैंने अपनी अनेकों बार बढाई हाँककर भी हिंसा की. उसके पीछे मेरी "कथनी और करनी" में फर्क न होने के कारण लोगों में अच्छे संस्कारों का समावेश हो. इसलिए अपनी बढ़ाई भी अनेकों बार हांककर हिंसा की है.      
न्नीस नं. पर लिखे-अनुसार मैंने लगभग ३१ साल की उम्र तक अपनी कई इन्द्रियों पर काबू रखने के साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन किया. उसके बाद संसारिक जीवन के दायित्व के चलते एक इंद्री को कामदेव के हवाले कर जरुरी हो गया था और अब पिछले तीन सालों से उसपर भी काबू किया हुआ है. मगर फिर अपनी अन्य(मोह, माया, क्रोध आदि) इन्द्रियों को काबू रखते हुए जीवन रूपी बेल को आगे बढ़ाता रहा. हाँ, उस दौरान कभी-कभी अपने पेशेगत सरकारी व गैर सरकारी अधिकारीयों पर उनकी कार्यशैली के कारण क्रोध भी आया और उस द्वारा माफ़ी मांग लेने और अपनी कार्यशैली में सुधार कर लिये जाने पर क्षमा भी कर दिया. कई पत्रकारों की तरह से हर महीने मंथली आदि लेने की कोशिश नहीं की या उसकी नौकरी छीने का प्रयास नहीं किया था. 
 गवान महावीर स्वामी के संदेश-"जियो और जीने दो" का सच्चे दिल से पालन करने का प्रयास.  बीस नं. पर लिखे-अनुसार दबे हुए कलह को उखाड़ना हिंसा है. यह भी मुझे मज़बूरीवश भविष्य में पत्नी द्वारा डाले फर्जी केसों में अपने वचाव और भ्रष्ट न्याय व्यवस्था में "सच " को बताकर हिंसा करनी होगी. इस हिंसा के पीछे भी का उद्देश्य यह होगा कि "सच" की जीत हो और अन्य किसी पीड़ित को ऐसी पीड़ा ना सहनी पड़े. दोस्तों, इसके अलावा मैंने कभी कोई हिंसा नहीं की है. शुभचिंतकों और आलोचकों मैंने तो अपनी आने-अनजाने में हुई "हिंसा" का वर्णन कर दिया है. 
गर मेरे द्वारा की हिंसा क्षमा योग्य हो तो क्षमा कर देना. जब तक इस दिल और दिमाग में अपने आने-अनजाने में हुए पापों का प्रश्चाताप पूरा नहीं होता है. तब तक मेरी तपस्या यूँ ही चलती रहेंगी.आपकी हिंसा का उपाय आप जानो.
किसी को मारना या कष्ट देना मात्र ही हिंसा नहीं है. हिंसा के असंख्य रूप हमारे जीवन में इस प्रकार घुल गए हैं कि उन्हें पहचाना भी कठिन हो गया है.हिंसा के सूक्ष्म रूपों को दिग्दर्शन प्रस्तुत प्रकरण में कराया गया है.
1. किसी जीव को सताना,  हिंसा है. 2. झूठ बोलना, कठु बोलना हिंसा है. 3. दंभ करना, धोखा देना हिंसा है. 4. किसी की चुगली करना हिंसा है. 5. किसी का बुरा चाहना हिंसा है. 6. दुःख होने पर रोना-पीटना हिंसा है. 7. सुख में अंहकार से अकडना हिंसा है. 8. किसी की निंदा या बुराई करना हिंसा है. 9.गाली देना हिंसा है. 10. अपनी बढ़ाई हाँकना हिंसा है. 11. किसी पर कलंक लगाना हिंसा है. 12. किसी का भद्दा मजाक करना हिंसा है. 13. बिना किसी वजय किसी पर क्रोध करना हिंसा है. 14. किसी पर अन्याय होते देखकर खुश होना हिंसा है. 15. शक्ति होने पर भी अन्याय को न रोकना हिंसा है. 16. आलस्य और प्रमाद में निष्क्रिय पड़े रहना हिंसा है. 17. अवसर आने पर भी सत्कर्म से जी चुराना हिंसा है. 18. बिना बाँटे अकेले खाना हिंसा है. 19. इन्द्रियों का गुलाम रहना हिंसा है.  20. दबे हुए कलह को उखाड़ना हिंसा है. 21. किसी की गुप्त बात को प्रकट करना हिंसा है. 22. किसी को नीच-अछूत समझना हिंसा है.  23. शक्ति होने हुए भी सेवा न करना हिंसा है. 24. बड़ों की विनय-भक्ति न करना हिंसा है. 25. छोटों से स्नेह, सद्भाव न रखना हिंसा है. 26. ठीक समय पर अपना फर्ज अदा न करना हिंसा है. 27. सच्ची बात को किसी बुरे संकल्प से छिपाना हिंसा है. "राष्ट्र" संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार
 मैं बहुत ज्यादा हिंसक हूँ 
 नोट:-अपने  पेशेगत(पत्रकारिता) एक-दो दिन में नीचे लिखे लिंकों पर भी हिंसा की है. पढ़ने के इच्छुक हो तो जरुर पढ़ें.

शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

कैसा होता है जैन जीवन


हीं आदर्श जीवन है वही सच्चा जैन-जीवन है, जिसके कण-कण और क्षण-क्षण में धर्म की साधना झलकती हो. धर्ममय जीवन के आदर्शों का यह भव्य चित्र प्रस्तुत है-'जैन जीवन' में.
1. जैन भूख से कम खाता है. जैन बहुत कम बोलता है. जैन व्यर्थ नहीं हंसता है. जैन बडो की आज्ञा मानता है. जैन सदा उद्यमशील रहता है.

2. जैन गरीबों से नहीं शर्माता. जैन वैभव पाकर नहीं अकड़ता. जैन किसी पर नहीं झुंझलाता. जैन किसी से छल-कपट नहीं करता. जैन सत्य के समर्थन में किसी से नहीं डरता.

3. जैन हृदय से उदार होता है. जैन हित-मित मधुर बोलता है. जैन संकट-काल में हँसता है. जैन अभ्युदय में भी नम्र रहता है.

4. अज्ञानी को जीवन निर्माणार्थ ज्ञान देना मानवता है. ज्ञान के साथ विद्यालय आदि खोलना मानवता है.

5. भूखे प्यासे को संतुष्ट करना मानवता है. भूले हुए को मार्ग बताना मानवता है. जैन मानवता का मंगल प्रतीक है.
6. जहाँ विवेक होता है, वहाँ प्रमाद नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ लोभ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ स्वार्थ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ अज्ञान नहीं होता.जैन विवेक का आराधक होता है.

7. प्रतिदिन विचार करो कि मन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि वचन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि शरीर से क्या क्या दोष हुए हैं.

8. सुख का मूल धर्म है. धर्म का मूल दया है. दया का मूल विवेक है. विवेक से उठो. विवेक से चलो. विवेक से बोलो. विवेक से खाओ. विवेक से सब काम करो.

9. पहनने-ओढने में मर्यादा रखो. घूमने-फिरने में मर्यादा रखो. सोने-बैठने में मर्यादा रखो. बड़े-छोटो की मर्यादा रखो.

10. मन से दूसरों का भला चाहना परोपकार है. वचन से दूसरों को हित-शिक्षा देना परोपकार है. शरीर से दूसरों की सहायता करना परोपकार है. धन से किसी का दुःख दूर करना परोपकार है.  भूखे प्यासे को संतुष्ट करना परोपकार है. भूले को मार्ग बताना परोपकार है. अज्ञानी को ज्ञान देना या दिलवाना परोपकार है. ज्ञान के साधन विद्यालय आदि खोलना परोपकार है. लोक-हित के कार्यों में सहर्ष सहयोग देना परोपकार है.

11. बिना परोपकार के जीवन निरर्थक है. बिना परोपकार के दिन निरर्थक है. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ मनुष्यत्व नहीं. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ धर्म नहीं. परोपकार की जड़ कोमल हृदय है. परोपकार का फल विश्व-अभय है. परोपकार कल करना हो तो आज करो.  परोपकार आज करना हो तो अब करो .

12. बिना धन के भी परोपकार हो सकता है. किन्तु बिना मन के नहीं हो सकता.

13. धन का मोह परोपकार हीं होने देता. शरीर का मोह परोपकार नहीं होने देता.

14. परोपकार करने के लिए जो धनी होने की राह देखे वो मूर्ख है. बदले कि आशा से जो परोपकार करे वो मूर्ख है. बिना स्नेह और प्रेम के जो परोपकार करे वो मूर्ख है.

15. भोजन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए भोजन है. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. धन से जितना अधिक मोह उतना ही पतन. धन से जितना कम मोह उतना ही उत्थान.
"राष्ट्र" संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार

मंगलवार, जुलाई 05, 2011

कौन आदर्श जैन?

यह फोटो मेरी दस साल की भतीजी
ने मेरे मोबाईल से ले रखी है. मुझे
इसके बारें में आज ही जानकारी
हुई. जब आज अपने  म्मोरी कार्ड को
कम्प्युटरसे जोड़ा और देखकर हैरान हो
गया कि इतनी अच्छी फोटो ली हुई है..

 "जैन" कोई जाति नहीं,धर्म है.जैन-धर्म के सिध्दांतों में जो दृढ विश्वास रखता है और उनके अनुसार आचरण करता है, वही सच्चा जैन कहलाता है. जैन का जीवन किस प्रकार से आदर्श होना चाहिए, यह प्रस्तुत प्रकरण में दिखाया गया है.

1. जो सकल विश्व की शान्ति चाहता है, सबको प्रेम और स्नेह की आँखों से देखता है, वही सच्चा जैन है.

2. जो शान्ति का मधुर संगीत सुनाकर सबको ज्ञान का प्रकाश दिखलाता है, कर्त्तव्य-वीरता का डंका बजाकर प्रेम की सुगंध फैलाता है, अज्ञान और मोह की निंदा से सबको बचाता है, वही सच्चा जैन है.

3. ज्ञान, चेतना की गंगा बहाने वाला मधुरता की जीवित मूर्ति कर्त्तव्य-क्षेत्र का अविचल वीर योध्दा है, वही सच्चा जैन है.

4. जैन का अर्थ अजेय है, जो मन और इन्द्रियों के विकारों को जीतने वाला, आत्म-विजय की दिशा में सतत सतर्क रहने वाला है, वही सच्चा जैन है.

5. 'जैनत्व' और कुछ नहीं आत्मा की शुध्द स्थिति है. आत्मा को जितना कसा जाए, उतना ही जैनत्व का विकास. जैन कोई जाति नहीं धर्म है. न किसी भी देश, पन्थ और जाति का है. कोई आत्म-विजय के पथ का यात्री है, वही सच्चा जैन है.

6. जैन बहुत थोडा, परन्तु मधुर बोलता है, मानो झरता हुआ अमृतरस हो! उसकी मृदु वाणी,कठोर-से कठोर ह्रदय को भी पिघला कर मक्खन बना देती है! जैन के जहाँ भी पाँव पड़ें, वहीँ कल्याण फैल जाए! जैन का समागम, जैन का सहचार सबको अपूर्व शांति देता है! इसके गुलाबी हास्य के पुष्प, मानव जीवन को सुगन्धित बना देते हैं! उसकी सब प्रवृत्तियां, जीवन में रस और आनंद भरने वाली है, वही सच्चा जैन है.

7. जैन गहरा है, अत्यंत गहरा है. वह छिछला नहीं, छिलकने वाला नहीं. उसके ह्रदय की गहराई में,शक्ति और शांति का अक्षय भंडार है. धैर्य और शौर्य का प्रबल प्रवाह है.जिसमें श्रध्दा और निर्दोष भक्ति की मधुर झंकार है, वही सच्चा जैन है.

8. धन वैभव से जैन को कौन खरीद सकता है? धमकियों से उसे कौन डरा सकता है? और खुशामद से भी कौन उसे जीत सकता है? कोई नहीं, कोई नहीं. सिध्दांत के लिए काम पड़े तो वह पल-भर में स्वर्ग के साम्राज्य को भी ठोकर मार सकता है. 
9. जैन के त्याग में दिव्य-जीवन की सुगंध है. आत्म-कल्याण और विश्व-कल्याण का विलक्षण मेल है. जैन की शक्ति, संहार के लिए नहीं है. वह तो अशक्तों को शक्ति देती है, शुभ की स्थापना करती है और अशुभ का नाश करती है. सच्चा जैन पवित्रता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मृत्यु को भी सहर्ष सानन्द निमंत्रण देता है. जैन जीता है, आत्मा के पूर्ण वैभव में और मरता भी है वह आत्मा के पूर्ण वैभव में.
10.  जैन की गरीबी में संतोष की छाया है. जैन की अमीरी में गरीबों का हिस्सा है.

11.  जैन आत्म-श्रध्दा की नौका पर चढ़ कर निर्भय और निर्द्वन्द्व भाव से जीवन यात्रा करता है.विवेक के उज्जवल झंडे के नीचे अपने व्यक्तित्व को चमकता है. राग और द्वेष से रहित वासनाओं का विजेता 'अरिहंत' उसका उपास्य है. हिमगिरी के समान अचल एवं अडिग जैन दुनिया के प्रवाह में स्वयं न बहकर दुनियां को ही अपनी ओर आकृष्ट करता है. मानव-संसार को अपने उज्जवल चरित्र से प्रभावित करता है.अतएव एक दिन देवगण भी सच्चे जैन की चरण-सेवा में सादर सभक्ति मस्तक झुका देते हैं?

12.  जैन बनना साधक के लिए परम सौभाग्य की बात है. जैनत्व का विकास करना, इसी में मानव-जीवन का परम कल्याण है.
राष्ट्र  संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार
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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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