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शनिवार, दिसंबर 24, 2011

क्या उसूलों पर चलने वालों का कोई घर नहीं होता है ?

दोस्तों, क्या आप इस विचार से सहमत है कि-अपने उसूलों(सिद्धांतों) पर चलने वालों का कोई घर* नहीं होता है, उनके तो मंदिर बनाये जाते हैं. क्या देश व समाज और परिवार के प्रति ईमानदारी का उसूल एक बेमानी-सी एक वस्तु है ?
*आवश्कता से अधिक धन-दौलत का अपार, भोगविलास की वस्तुओं का जमावड़ा, वैसे आवश्कता हमारे खुद द्वारा बड़ी बनाई जाती हैं. जिसके कारण धोखा, लालच और मोह जैसी प्रवृतियाँ जन्म लेती हैं. इस कारण से हम अनैतिक कार्यों में लीन रहते हैं. मेरे विचार में अगर जिसके पास "संतोष' धन है, उसके लिए आवश्कता से अधिक भोग-विलास की यह भौतिकी वस्तुएं बेमानी है. उसके लिए सारा देश ही उसका अपना घर है.
दोस्तों, अपनी पत्रकारिता और लेखन के प्रति कुछ शब्दों में अपनी बात कहकर रोकता हूँ. मैं पहले प्रिंट मीडिया में भी कहता आया हूँ और इन्टरनेट जगत पर कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं.जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं.
दोस्तों-गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे. 
दोस्तों, आप इस विषय (बात) पर अपने विचार जरुर व्यक्त करें. आप भी अपने देश के लिए कोई भी एक उसूल ऐसा बनाओ. जिससे देश व समाज का भला हो. 
नोट: यहाँ पर प्रयोग किए फोटो उन महान व्यक्तियों के जिन्होंने अपने खुद के उसूल बनाए और आखिरी दम तक उस पर अटल भी है/रहे और हमारे देश में ऐसे महापुरुषों की संख्या को उंगुलियों पर नहीं गिना जा सकता है.जैसे-श्री शास्त्री जी की ईमानदारी, नेताजी की देश के प्रति समपर्णभाव आदि.  

बुधवार, दिसंबर 21, 2011

भारत देश की मांओं और बहनों के नाम एक अपील

मेरी बहनों/मांओं ! क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि किसी के भाई और बेटे नहीं थें ?
क्या भारत देश में देश पर कुर्बान होने वाले लड़के/लड़कियाँ मांओं ने पैदा करने बंद कर दिए हैं ? जो भविष्य में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और झाँसी की रानी आदि बन सकें. अगर पैदा किये है तब उन्हें कहाँ अपने आँचल की छाँव में छुपाए बैठी हो ? 
उन्हें निकालो ! अपने आँचल की छाँव से भारत देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करके देश को "सोने की चिड़िया" बनाकर "रामराज्य" लाने के लिए देश को आज उनकी जरूरत है.  मौत एक अटल सत्य है. इसका डर निकालकर भारत देश के प्रति अपना प्रेम और ईमानदारी दिखाए. क्या तुमने देश पर कुर्बान होने के लिए बेटे/बेटियां पैदा नहीं की. अपने स्वार्थ के लिए पैदा किये है. क्या तुमको मौत से डर लगता है कि कहीं मेरे बेटे/बेटी को कुछ हो गया तो मेरी कोख सूनी हो जायेगी और फिर मुझे रोटी कौन खिलाएगा. क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि की मांओं की कोख सूनी नहीं हुई, उन्हें आज तक कौन रोटी खिलता है ? क्या उनकी मांएं स्वार्थी थी ?
दोस्तों, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि भी किसी के भाई और बेटे थें. उन मांओं की भी कोख सूनी हुई, उन्हें आज कोई रोटी नहीं खिलता है. आज देश में यह हालत है कि देश पर कुर्बान होने वाले के कफनों के सौदेबाजी होती है या यह कहे कि एक घोटाला के बाद दूसरा घोटाला खुलता है.सरकार से मिलने वाली सहायता के लिए शहीदों के माँ-बाप और परिजन दर-दर की ठोकर खाते-फिरते हैं.
आज देश में महिलाओं की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि वो माँ की कोख से पैदा नहीं हुए. वो असमान से टपकें थें. आज देशवासी फिर इंतजार कर रहे हैं कि ऐसे वीर दुबारा पैदा हो, हमारे पड़ोसी के घर ही पैदा हो.मगर अपने घर में कोई पैदा नहीं करना चाहता है.
दोस्तों, आप यहाँ पर अपने विचार जरुर व्यक्त करों.
आप फेसबुक पर इस लेख पर आये विचार यहाँ पर क्लिक करके देख सकते हैं और हमसे जुड़ सकते हैं.

मंगलवार, दिसंबर 13, 2011

दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ?

  दोस्तों, आप दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ? दोस्तों, पिछले दिनों फेसबुक के मेरे एक मित्र ने एक अपने मित्र की दोस्ती का निवेदन स्वीकार करने के लिए कहा. तब मैंने कहा उनकी प्रोफाइल का अवलोकन करने के लिए कहा. तब उस मित्र का कहना था कि-इतना घंमड ठीक नहीं है. हमने जवाब दिया-दोस्त! आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है. अपशब्दों को छोड़कर जैसे मर्जी अपने विचार व्यक्त करें. आपको जवाब जरुर मिलेगा. वैसे मैं ऐसा इसलिए करता हूँ सुरक्षा* कारणों के चलते ही प्रोफाइल का अवलोकन करता हूँ. मुझे नहीं पता आपकी नजरों में मेरा यह घंमड या कुछ और है. लेकिन यह मेरा देश और समाज के प्रति सभ्य व्यवहार की परिभाषा है.
      *सुरक्षा- जहाँ तक सुरक्षा की बात कई विकृत मानसिकता के व्यक्तियों की प्रोफाइल में अश्लील फोटो व वीडियों होते है, जिनका प्रयोग खासतौर अपने या मेरे लड़कियों या महिलाओं की प्रोफाइल पर डाल कर करते हैं. दोस्तों अगर आपको कभी भी मेरी प्रोफाइल में इसे दोस्तों की जानकारी हो तो मुझे अपनी प्रोफाइल में दिए ईमेल, फ़ोन या एड्रेस पर पत्र द्वारा सूचित करके दोस्ती के पवित्र रिश्ते को कायम करें. अभी कल ही मैंने फेसबुक और ऑरकुट की अपनी दोस्त एक महिला और एक लड़की की "वाल" पर उसके दोस्त द्वारा डाली आपत्तिजनक फोटो देखी. मगर में उनको यह सूचना उनके द्वारा दी प्रोफाइल में जानकारी के अभाव में देने में असमर्थ रहा. लेकिन शुक्र था कि-वो विकृत मानसिकता का व्यक्ति मेरा दोस्त नहीं था.
         अब सुरक्षा का एक दूसरा नमूना भी देखें-एक दोस्त कहूँ या व्यक्ति को लिखे शब्दों में कठोरता है पर सभ्य भाषा का प्रयोग किया है.
दोस्त, आपकी फेसबुक/ऑरकुट प्रोफाइल में अनेक जानकारी का अभाव है और भ्रमित जानकारी देते है. सच से डरते हैं. इसलिए आपकी दोस्ती का निवेदन स्वीकार नहीं किया जाता था और फ़िलहाल भी आपको संदेश देने के लिए ओके किया है.मैंने अनेक बार कोशिश भी की आप कुछ सुधार करें.मगर आप झूठ का दामन नहीं छोड़ रहे थें. ऑनलाइन वार्तालाप में भ्रमित जानकारी दे रहे थें. जब दोस्त को नहीं बता सकते तब दोस्ती जैसे पवित्र रिश्ते का कोई मतलब नहीं है. इसलिए मैंने आपको अपने दोस्ती का रिश्ता खत्म कर लिया था. आपके अनेक संदेश आ चुके थें आपको बताने के लिए ओके किया है और बहुत जल्द खत्म भी कर देंगे. अगर हमें संतोषजनक जवाब पिछले प्रश्नों का नहीं मिलता है तब, आपके लिए एक मौका है. मेरे प्यारे मित्रों, अभी जांच की जिस मित्र को यह लिखा था. उन्होंने खुद ही मेरी फेसबुक/ऑरकुट की प्रोफाइल में से अपनी दोस्ती को खत्म कर लिया है.
       दोस्तों, आप मेरे विचारों से सहमत हो तो उपरोक्त संदेश में आवश्कता के अनुसार बदलाव करके उपरोक्त संदेश को या इसके लिंक को अपनी फेसबुक/ऑरकुट की प्रोफाइल की "वाल" पर पेस्ट करें/लगाए.
दोस्तों, आओ हम इन सोशल वेबसाइट (ऑरकुट, फेसबुक, गूगल आदि) के माध्यम से देश और समाज को आगे ले जाने के लिए अपना योगदान करें. अपनी एक छोटी-सी बात कहकर अपना लेखन फ़िलहाल यहीं रोक रहा हूँ कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें.धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है. हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरी विचारधारा में "राजनीति" सेवा करने का मंच है. दोस्तों, आप इस विषय (बात) पर अपने विचार जरुर व्यक्त करें.
दोस्तों, आप सभी का शुक्रिया आपने हमें अपनी दोस्ती के योग्य पाया. हमारी प्रोफाइल, वाल और ब्लॉग समय मिलने पर पढ़ें और अपनी आलोचनाओं से हमें कृतार्थ करें. आज ऐसे दोस्त मिलते नहीं हैं. अगर मिलते हैं तो लोग उनको अपने समूह से या अपने दोस्तों की सूची से निकाल देते हैं. यह हमारे फेसबुक, ऑरकुट और गूगल पर ब्लोगों के निजी अनुभव है. मगर हमें खुशी होती है कि चलो हम एक ओर दोस्त का मन,कर्म ओर काया से आलोचना करने से बच गए. 
नोट: तकनीकी ज्ञान देने वाले, सुझाव और हमारी आलोचना करने वालों को प्राथमिकता दी जायेगी. कृपया चापलूस व्यक्ति दूरी बनाए रखें.

सोमवार, दिसंबर 05, 2011

मांगे मिले नहीं भीख, बिन मांगे मोती मिले

दोस्तों, मुझे बिन मांगे ही लड़कियां और महिलाएं अपना फ़ोन नम्बर क्यों दे देती हैं ? वैसे कहा जाता है कि-मांगे मिले नहीं भीख, बिन मांगे मोती मिले. क्या "सिरफिरा" लड़कियां और महिलाएं की नज़र में इतना विश्वास करने योग्य है ? क्या आप मानते हैं कि-एक बुध्दिजीवी व्यक्ति नारी का सम्मान करना जानता हैं ? इसलिए ही उस पर भरोसा करती हैं और अगर वो स्वार्थवश या किसी अन्य कारणों द्वारा विश्वासघात करता हैं. तब क्या उसको अपने आपको बुद्धिजीवी कहलवाने का अधिकार है ?
       दोस्तों, आप इस विषय (बात) पर अपने विचार जरुर व्यक्त करें. केवल पसंद का बटन न दबाये.
नोट:- जब मेरे दोस्त किसी महिला या लड़की का मुझसे फ़ोन नम्बर मांगते हैं, तब यहीं कहता हूँ कि-दोस्त मत मांग मुझसे उसका* फ़ोन नम्बर मेरी जान मांग लें. ख़ुशी से जान दे देंगे, मगर नम्बर नहीं देंगे. खुलूस से परखो, खुलूस के लिए हम तो जान भी दे देंगे दोस्ती के लिए.
*महिला या लड़की.
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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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