अपने कार्य के दौरान विचार करते हुए |
आज वैसे तो घटित अपराधों के किये जाने की शैली(आधुनिक व संचार माध्यमों द्वारा) को देखते हुए पूरे संविधान और कानूनों में संशोधन करने की आवश्यकता हैं.लेकिन सन-1983 में दहेज पर कानून में संशोधन करने के बाद एक तरफा धारा 498A के आस्तिव में आने के बाद से कुछ दूषित मानसिकता के लोगों द्वारा दुरूपयोग करने के मामले देखने व सुनने में आ रहे हैं.पिछले कई सालों से इन कानूनों के दुरूपयोग करें जाने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तल्ख़ टिप्पणी करने के बाद गृह मंत्रालय के निर्देश पर विधि आयोग इसमें संशोधन करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया और कमेटी ने आम जनता,गैर सरकारी संस्थाओं, संस्थानों और अधिवक्ता संघों से उनके विचार और सुझाव आमंत्रित किये हैं.इसी सन्दर्भ में अपने अनुभव और विचारों से अपने कुछ बहुमूल्य सुझाव दें रहा हूँ.पिछले दिनों बहुत ज्यादा ओनर किलिंग घटनाओं को देखते हुए और समाज में गिरती नैतिकता के चलते हुए आज समय की मांग को देखते हुए कम से कम "विवाह" नामक संस्था से जुड़े सभी कानून(304B, 406,494,125 आदि) की धाराओं मैं संशोधन की आवश्कता हैं और ठोस व सख्त कानून बनाने की आज बहुत ज्यादा आवश्कता है.
मैंने अपने अनुभवों या जो समाज में देखा है या झेला है उसी के आधार पर कुछ बहुमूल्य सुझाव दिए हैं.हो सकता हैं कुछ क़ानूनी शब्दों का ज्ञान न होने या याद न आने के कारण से कुछ कमियां रह गई हो. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.अपने अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि-असली पीड़ित चाहे लड़का हो या लड़की हो,उसको कुव्यवस्थाओं के चलते न्याय नहीं मिल पता हैं.जिन अधिकारीयों के हाथ में इन कानूनों पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी होती हैं.वो सभी मात्र थोड़े से पैसों के लिए अपना ईमान व ज़मीर बेच देते हैं.इनमें खासतौर पर कुछ सरकारी वकील,पुलिस और जज शामिल होते हैं.इनके द्वारा कानूनों को तोड़-मोड़ देने से असली पीड़ित व्यक्ति की न्याय के प्रति आस्था कम होती जा रही हैं.आज कम से कम "विवाह" नामक संस्था को बचाने के लिए विधियिका को सख्त से सख्त कानून बनाने चाहिए. इसमें "मीडिया" को भी अपनी समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए सही व्यक्ति की मदद करनी चाहिए.अब तक अक्सर देखा जा रहा है कि-जहाँ कोई बात महिला से जुड़ी घटना होती हैं.तब मीडिया उसका साथ देती हैं मगर पुरुष के मामले में उसका रवैया रुखा रहता है.
मैंने अपने अनुभवों या जो समाज में देखा है या झेला है उसी के आधार पर कुछ बहुमूल्य सुझाव दिए हैं.हो सकता हैं कुछ क़ानूनी शब्दों का ज्ञान न होने या याद न आने के कारण से कुछ कमियां रह गई हो. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.अपने अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि-असली पीड़ित चाहे लड़का हो या लड़की हो,उसको कुव्यवस्थाओं के चलते न्याय नहीं मिल पता हैं.जिन अधिकारीयों के हाथ में इन कानूनों पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी होती हैं.वो सभी मात्र थोड़े से पैसों के लिए अपना ईमान व ज़मीर बेच देते हैं.इनमें खासतौर पर कुछ सरकारी वकील,पुलिस और जज शामिल होते हैं.इनके द्वारा कानूनों को तोड़-मोड़ देने से असली पीड़ित व्यक्ति की न्याय के प्रति आस्था कम होती जा रही हैं.आज कम से कम "विवाह" नामक संस्था को बचाने के लिए विधियिका को सख्त से सख्त कानून बनाने चाहिए. इसमें "मीडिया" को भी अपनी समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए सही व्यक्ति की मदद करनी चाहिए.अब तक अक्सर देखा जा रहा है कि-जहाँ कोई बात महिला से जुड़ी घटना होती हैं.तब मीडिया उसका साथ देती हैं मगर पुरुष के मामले में उसका रवैया रुखा रहता है.
अपने विचारों को कलमबध्द करते हुए |
अपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन के सन्दर्भ में निम्नलिखित कुछ बहुमूल्य सुझावों को विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए थे.
1 आई.पी.सी. धारा 498A में कुछ उपधारा जोड़ने की भी आवश्कता है.जिससे दोषी बच न सकें और निर्दोष सजा न पायें.
2 आई.पी.सी. धारा 498A के साथ ही सहायक आई.पी.सी.धारा 498B भी बनाये जाने की आवश्कता है और इसमें भी कुछ उपधारा होनी चाहिए.जिससे हमारे देश में दहेज प्रथा के साथ ही जाति, गौत्र और भेदभाव जैसी फैली बुराइयों को खत्म किया जा सकें.
लेकिन किसी भी कानून में बदलाव मात्र से समाज और पीड़ित व्यक्ति को लाभ नहीं मिल सकता हैं. जब तक व्यवस्थिका के साथ ही कार्यपालिका में उपरोक्त कानूनों को लेकर सख्त दिशा-निर्देश नहीं बनाये जाते हैं.तब तक इनमें किया बदलाव निर्थक होगा.
आई.पी.सी.धारा 498A में निम्नलिखित होना चाहिए.
1.अगर कोई पति-पत्नी अलग रहते हो तब उसके परिवार के अन्य सदस्यों को इसमें मात्र पति के रिश्तेदार होने की सजा नहीं दी जानी हैं यानि उनका नाम शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
1 आई.पी.सी. धारा 498A में कुछ उपधारा जोड़ने की भी आवश्कता है.जिससे दोषी बच न सकें और निर्दोष सजा न पायें.
2 आई.पी.सी. धारा 498A के साथ ही सहायक आई.पी.सी.धारा 498B भी बनाये जाने की आवश्कता है और इसमें भी कुछ उपधारा होनी चाहिए.जिससे हमारे देश में दहेज प्रथा के साथ ही जाति, गौत्र और भेदभाव जैसी फैली बुराइयों को खत्म किया जा सकें.
लेकिन किसी भी कानून में बदलाव मात्र से समाज और पीड़ित व्यक्ति को लाभ नहीं मिल सकता हैं. जब तक व्यवस्थिका के साथ ही कार्यपालिका में उपरोक्त कानूनों को लेकर सख्त दिशा-निर्देश नहीं बनाये जाते हैं.तब तक इनमें किया बदलाव निर्थक होगा.
आई.पी.सी.धारा 498A में निम्नलिखित होना चाहिए.
1.अगर कोई पति-पत्नी अलग रहते हो तब उसके परिवार के अन्य सदस्यों को इसमें मात्र पति के रिश्तेदार होने की सजा नहीं दी जानी हैं यानि उनका नाम शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
2.अगर कोई पति-पत्नी संयुक्त परिवार में रहते हैं.तब केस में ऐसे व्यक्तियों और महिलाओं का नाम शामिल नहीं होना चाहिए.जो खुद की देखभाल करने में सक्षम(गंभीर बीमार,चलने-फिरने के लायक न हो) न हो और नाबालिग बच्चों का नाम भी कहीं नहीं लिखा जाना चाहिए और खासतौर पर 14 साल से छोटे बच्चे का नाम बिलकुल भी नहीं हो चाहिए.बाकी सदस्यों का नाम पूरी जांच करके ही शामिल करने चाहिए.
3.उपरोक्त धारा में सजा और जुरमाना फ़िलहाल पर्याप्त है लेकिन इसका आरोप पत्र 180 दिनों में दाखिल किया जाना चाहिए. इन केसों का अंतिम फैसला अधिकतम पांच साल में हो जाना चाहिए यानि प्रथम सत्र, द्धितीय सत्र और तृतीय सत्र में आधिक से अधिक 18 महिने में फैसला होना चाहिए. जैसे-सत्र अदालत,हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आदि.
4.ऐसे मामलों में महिला द्वारा पति का घर छोड़े हुई अंतिम तारीख से एक साल बीत जाने के बाद ही दोनों पक्षों को आवेदन करने पर तलाक मिल जाना चाहिए.मगर पति पर मामले की गंभीरता को देखते हुए उपरोक्त केस चलता रहना चाहिए.इससे दोनों पक्षों को नया जीवन जीने का मौका मिलना चाहिए.इससे वैवाहिक समस्यों के चलते होने वाली आत्महत्या की संख्या में काफी कमी आएगी.इस सन्दर्भ में विदेशों बनाये कानूनों को देखा जाना चाहिए.वहां पर वैवाहिक मामलों जल्दी से निपटारा हो जाता है.चाहे तलाक हो या अन्य(घरेलू हिंसा) कोई विवाद हो.
5.इसे मामलों में महिला अधिक से अधिक 90 दिनों में ही मामला दर्ज करवाएं.गर्भवती,शारीरिक(चोट लगी,जली हुई स्थिति में)और मानसिक रूप से बीमार(डाक्टर द्वारा घोषित-बोलने या अपना पक्ष रखने में असमर्थ)महिला अधिकतम पति का घर छोड़ने की अंतिम तारीख से एक साल में मामला दर्ज करवाएं.अक्सर होता यह है महिला के परिजन सौदेबाजी में लगे रहते हैं और मुंह मांगी रकम न मिलने पर ही केस दर्ज करवाते हैं.
6.सिर्फ ऐसे मामलों में अगर पति द्वारा महिला को शारीरिक (गुप्त अंगों पर काटना, जलाना, किसी वस्तु से गहरी चोट पहुंचा रखी हो) और मानसिक(कैद करके रखा हो, नशीली दवाइयां दी गई हो, वेश्यावृति अपनाने के लिए मजबूर किया हो, अश्लील फोटो या फिल्म बने हो और इन्टरनेट या संचार माध्यमों में प्रसारित की हो या अन्य कोई ऐसा आधुनिक तरीका जिससे उसका मानसिक संतुलन खराब हो जाता/गया हो)रूप से जख्मी किया हो. उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और उसको अग्रिमी जमानत नहीं मिलनी चाहिए.कई बार ऐसे अवसर आते हैं कि-पुरुष पत्रकार और सभ्य व्यक्ति पीड़ित की हालात भी नहीं देख सकता है. जैसे-वक्षों/जांघों पर काटना, योनि और नितम्बों को सिगरेट, लोहे के सरिया या चिमटे से जलाना आदि.इसलिए ऐसे मामलों को बहुत सख्ती से निपटने की आवश्कता है.
7.पति-पत्नी,परिजन,दोस्तों द्वारा महिला-पुरुष पर तेजाब फैंकवाने या महिला-पुरुष की बहन या भाई का अपहरण करना और उसकी बहन से या किसी महिला अन्य महिला से शादी करवाने के लिए मजबूर करवाना या अन्य महिलाओं से संबंध बनाना या उसे अपने साथ रखना,जानलेवा हमला करवाना और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-क में वर्णन नियम.
(क) जानबूझ कर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिस से उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को (जो मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने की संभावना है;या
8.घरेलू उपयोग में आने वाली चीजों की मांग पर या अपनी ख़ुशी से दिए जाने पर मामला दर्ज नहीं होना चाहिए.ऐसी वस्तुएं जो दोनों पति-पत्नी व बच्चों के प्रयोग में सहायक हो.कार, मोटर साईकिल आदि के साथ ही कीमती चीजें और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-ख में वर्णन नियम.
(ख) किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उस को या उस के किसी नातेदार को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरी करने के लिए उत्पीड़ित किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई नातेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है।
4.ऐसे मामलों में महिला द्वारा पति का घर छोड़े हुई अंतिम तारीख से एक साल बीत जाने के बाद ही दोनों पक्षों को आवेदन करने पर तलाक मिल जाना चाहिए.मगर पति पर मामले की गंभीरता को देखते हुए उपरोक्त केस चलता रहना चाहिए.इससे दोनों पक्षों को नया जीवन जीने का मौका मिलना चाहिए.इससे वैवाहिक समस्यों के चलते होने वाली आत्महत्या की संख्या में काफी कमी आएगी.इस सन्दर्भ में विदेशों बनाये कानूनों को देखा जाना चाहिए.वहां पर वैवाहिक मामलों जल्दी से निपटारा हो जाता है.चाहे तलाक हो या अन्य(घरेलू हिंसा) कोई विवाद हो.
5.इसे मामलों में महिला अधिक से अधिक 90 दिनों में ही मामला दर्ज करवाएं.गर्भवती,शारीरिक(चोट लगी,जली हुई स्थिति में)और मानसिक रूप से बीमार(डाक्टर द्वारा घोषित-बोलने या अपना पक्ष रखने में असमर्थ)महिला अधिकतम पति का घर छोड़ने की अंतिम तारीख से एक साल में मामला दर्ज करवाएं.अक्सर होता यह है महिला के परिजन सौदेबाजी में लगे रहते हैं और मुंह मांगी रकम न मिलने पर ही केस दर्ज करवाते हैं.
6.सिर्फ ऐसे मामलों में अगर पति द्वारा महिला को शारीरिक (गुप्त अंगों पर काटना, जलाना, किसी वस्तु से गहरी चोट पहुंचा रखी हो) और मानसिक(कैद करके रखा हो, नशीली दवाइयां दी गई हो, वेश्यावृति अपनाने के लिए मजबूर किया हो, अश्लील फोटो या फिल्म बने हो और इन्टरनेट या संचार माध्यमों में प्रसारित की हो या अन्य कोई ऐसा आधुनिक तरीका जिससे उसका मानसिक संतुलन खराब हो जाता/गया हो)रूप से जख्मी किया हो. उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और उसको अग्रिमी जमानत नहीं मिलनी चाहिए.कई बार ऐसे अवसर आते हैं कि-पुरुष पत्रकार और सभ्य व्यक्ति पीड़ित की हालात भी नहीं देख सकता है. जैसे-वक्षों/जांघों पर काटना, योनि और नितम्बों को सिगरेट, लोहे के सरिया या चिमटे से जलाना आदि.इसलिए ऐसे मामलों को बहुत सख्ती से निपटने की आवश्कता है.
7.पति-पत्नी,परिजन,दोस्तों द्वारा महिला-पुरुष पर तेजाब फैंकवाने या महिला-पुरुष की बहन या भाई का अपहरण करना और उसकी बहन से या किसी महिला अन्य महिला से शादी करवाने के लिए मजबूर करवाना या अन्य महिलाओं से संबंध बनाना या उसे अपने साथ रखना,जानलेवा हमला करवाना और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-क में वर्णन नियम.
(क) जानबूझ कर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिस से उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को (जो मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने की संभावना है;या
8.घरेलू उपयोग में आने वाली चीजों की मांग पर या अपनी ख़ुशी से दिए जाने पर मामला दर्ज नहीं होना चाहिए.ऐसी वस्तुएं जो दोनों पति-पत्नी व बच्चों के प्रयोग में सहायक हो.कार, मोटर साईकिल आदि के साथ ही कीमती चीजें और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-ख में वर्णन नियम.
(ख) किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उस को या उस के किसी नातेदार को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरी करने के लिए उत्पीड़ित किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई नातेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है।
तिलक नगर में स्थित गुरुद्वारा में अरदास करते हुए |
9.वैवाहिक मामलों को पुलिस केस दर्ज करने से पहले पति व महिला के रहने के स्थान पर जाकर आस-पडोस, R.W.A और सामाजिक स्तर की छानबीन करनी चाहिए.ऐसी जांचें थानों में बैठकर नहीं होनी चाहिए.पुलिस का रवैया ऐसे मामलों में दोस्तना(कोई पेशेवर अपराधी नहीं है इसका खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए) हो चाहिए.किसी सभ्य व्यक्ति का काम और समय बार-2 थाने में बुलाकर नष्ट न करें.किसी प्रकार की शिकायत या फैसले की प्रति दोनों को जारी करें.
10.वैवाहिक मामलों के लिए पुलिस में अलग विभाग हो.जैसे-अब वोमंस सैल है.मगर इसमें महिला-पुरुष को वैवाहिक जीवन को सुखमय चलने के लिए मनोचिकित्सक, क़ानूनी-वैवाहिक सलाहकारों की नियुक्ति होनी चाहिए.महिला-पुरुष की शिकायत पर दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए और श्रीमती किरण वेदी द्वारा अभिनीत कार्यक्रम "आपकी कचहरी"के फोर्मेट पर उनकी शिकायत पर की कार्यवाही की अपनाई गई पूरी प्रक्रिया की वीडियों फिल्म बननी चाहिए.किसी प्रकार की शिकायत या फैसले की प्रति दोनों को जारी करें.
11. सुझाव नं.6 में उल्लेखित क्रूरता(जो प्रथम दृष्टि में दिखाई देती है)को छोड़कर अगर जब तक ठोस सबूत न हो तब आरोपित व्यक्तियों को अग्रिमी जमानत दे देनी चाहिए.ऐसे मामलों में जज पक्षपात का व्यवहार न करें.
12.दहेज या घरेलू वस्तुएं दोनों पक्षों की सहमति से लिया-दिया जाता है.इसलिए उसकी सूची पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर होने चाहिए.यह न हो महिला पक्ष ने जो सामान दिया ही नहीं हो,उसको भी अपनी सूची में लिखवा दें और स्त्रीधन का निपटारा वोमंस सैल या मध्यस्थता में ही होना चाहिए.अगर महिला पक्ष स्त्रीधन पर नहीं मानता है.तब उनके पक्ष की आय के स्रोतों की जांच इनकम टैक्स विभाग द्वारा की जानी चाहिए.इससे शादी-विवाह में बहुत ज्यादा खर्च किया जा रहा काला धन पर रोक लगाईं जा सकती हैं.
13.जब तक किसी महिला को मानसिक व शारीरिक गंभीर चोट न लगी.तब उसको तलाक की एवज में किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिलवाना चाहिए.कई बार ऐसा होता है कि-महिला की जबरदस्ती शादी कर दी जाती हैं या यह कहे उनके किसी से प्रेम संबंध होते हैं.तब उपरोक्त महिला झूठे आधार तैयार करती हैं और इससे साजिश रचकर शादी करने वाली महिला और माता-पिता पर रोक लग सकेंगी.
अपनी पत्रिका की प्रचार सामग्री वितरण करते हुए |
आई.पी.सी.धारा498B में निम्नलिखित होना चाहिए.
1.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों को सरकार घरेलू सामान के लिए या वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पूरी सुरक्षा के साथ ही एक लाख रूपये की राशि दहेज प्रथा,जाति,धर्म का भेदभाव को मिटाने में योगदान देने के एवज में सहायता के रूप में उपलब्ध करवाएं और उनके विवाहित जीवन पर सामाजिक स्तर या थाना स्तर पर नजर रखें.कहीं ऐसा न हो कि-पैसों के लालच में इसका दुरूपयोग न कोई करें.
2.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में महिला के परिजनों द्वारा दखलांदाजी करने पर या वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाने के लिए किये जाने वाले ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए.
3.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में अगर स्वंय महिला या अपने परिजनों व किसी के बहकाने पर वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाती है या अपनी जिम्मेदारियों और दायित्व का पालन नहीं करती हैं या किसी अनैतिक संबंध कायम करने का कार्य करती हैं.तब ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए और साथ में पति का कैरियर चौपड़ करने,प्रतिष्टा धूमिल करने और न्याय प्रक्रिया का समय ख़राब करने के जुर्म में कम से कम पांच लाख का जुरमाना लिया जाना चाहिए.इसका कुछ भाग पीड़ित पक्ष की स्थिति को देखते हुए दिया जाना चाहिए.
4.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत मामलों में पति द्वारा पत्नी या अपने सुसरालियों की पुलिस में की गई शिकायत पर जल्दी कार्यवाही होनी चाहिए और फैसले की कापी दोनों को दी जानी चाहिए और पति के शादी के पहले 7 सालों में वैवाहिक कारणों से आत्महत्या करने के सन्दर्भ में पत्नी और उसके परिजनों के खिलाफ केस दायर करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए और इसमें पति के परिजनों को सरकारी सहयता के रूप में मुआवजा दिलवाने के साथ ही अपने खर्च पर सरकारी वकील या वकील की फ़ीस आदि की व्यवस्था करें.
5.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में जो पति-पत्नी बच्चों को अपने साथ या पास रखेगा. उसका पालन-पोषण उसकी जिम्मेदारी होगी.उसको दूसरे व्यक्ति से मुआवजा मांगने का हक़ नहीं होगा.किसी मामले में पिता-माता नशेडी या अपराधिक प्रवृति का हो और माँ-पिता किन्ही कारणों से कमाने में असमर्थ हो.तब दूसरे पक्ष की पालन-पोषण की जिम्मेदारी होगी.
1.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों को सरकार घरेलू सामान के लिए या वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पूरी सुरक्षा के साथ ही एक लाख रूपये की राशि दहेज प्रथा,जाति,धर्म का भेदभाव को मिटाने में योगदान देने के एवज में सहायता के रूप में उपलब्ध करवाएं और उनके विवाहित जीवन पर सामाजिक स्तर या थाना स्तर पर नजर रखें.कहीं ऐसा न हो कि-पैसों के लालच में इसका दुरूपयोग न कोई करें.
2.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में महिला के परिजनों द्वारा दखलांदाजी करने पर या वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाने के लिए किये जाने वाले ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए.
3.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में अगर स्वंय महिला या अपने परिजनों व किसी के बहकाने पर वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाती है या अपनी जिम्मेदारियों और दायित्व का पालन नहीं करती हैं या किसी अनैतिक संबंध कायम करने का कार्य करती हैं.तब ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए और साथ में पति का कैरियर चौपड़ करने,प्रतिष्टा धूमिल करने और न्याय प्रक्रिया का समय ख़राब करने के जुर्म में कम से कम पांच लाख का जुरमाना लिया जाना चाहिए.इसका कुछ भाग पीड़ित पक्ष की स्थिति को देखते हुए दिया जाना चाहिए.
4.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत मामलों में पति द्वारा पत्नी या अपने सुसरालियों की पुलिस में की गई शिकायत पर जल्दी कार्यवाही होनी चाहिए और फैसले की कापी दोनों को दी जानी चाहिए और पति के शादी के पहले 7 सालों में वैवाहिक कारणों से आत्महत्या करने के सन्दर्भ में पत्नी और उसके परिजनों के खिलाफ केस दायर करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए और इसमें पति के परिजनों को सरकारी सहयता के रूप में मुआवजा दिलवाने के साथ ही अपने खर्च पर सरकारी वकील या वकील की फ़ीस आदि की व्यवस्था करें.
5.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में जो पति-पत्नी बच्चों को अपने साथ या पास रखेगा. उसका पालन-पोषण उसकी जिम्मेदारी होगी.उसको दूसरे व्यक्ति से मुआवजा मांगने का हक़ नहीं होगा.किसी मामले में पिता-माता नशेडी या अपराधिक प्रवृति का हो और माँ-पिता किन्ही कारणों से कमाने में असमर्थ हो.तब दूसरे पक्ष की पालन-पोषण की जिम्मेदारी होगी.
कानून के दुरूपयोग से सभ्य व्यक्ति रूप बदलकर रहने को मजबूर |
अगर इन उपायों का प्रयोग किया जाता है. तब "विवाह" नामक संस्था पर लोगों का विश्वास कायम होने के साथ ही पुरुष के ऊपर किये जा रहे अत्याचारों पर रोक लग जाएँगी और कोई दोषी बचेगा नहीं और निर्दोष व्यक्ति शोषित नहीं होगा. इससे असली पीड़ित पुरुष को न्याय मिलेगा और न्यायलयों में फर्जी केसों का बोझ नहीं बढेगा.ऐसा मुझे विश्वास है.