हिंदी में ईमेल कैसे भेजें.
हिंदी कहने को तो हमारे देश की राजभाषा है. मगर आज हिंदी को उतना सम्मान नहीं मिल रहा है, जितने की हक़दार थीं.लेकिन हम अपने व्यापारिक व निजी पत्रों को हिंदी में लिखकर भेजने से हिंदी को वो सम्मान दिलाने की कोशिश तो कर सकते हैं.जब भारत देश के पड़ोसी देश अपने देशों में हिंदी सिखाने के स्कूल खोल सकते हैं.तब क्या हम इतने गए गुजरे है कि-हमें भारत में रहते हुए भी हिंदी में काम करने में शर्म आती है या संकोच होता है.अगर हमें भारत में रहते हुए भी हिंदी में काम करने में संकोच होता हो तो क्या हमें भारतीय कहलवाने का हक़ है?जब हम अपने देश के प्रति ही ईमानदार नहीं होंगे,क्या अमरीका या पाकिस्थान के लिए ईमानदार बनोंगे?क्या हम मात्र स्टेटस के लिए अपने व्यापारिक व निजी पत्रों को अंग्रेजी में नहीं लिख रहे हैं कि कोई हमें अनपढ़, ग्वार न समझें?मात्र अंग्रेजी में लिखे पत्रों से ही नहीं माना जा सकता है कि-उपरोक्त व्यक्ति पढ़ा-लिखा है.क्या हमें मात्र अंग्रेजी में लिखे पत्रों से ही पहचान मिलती है? बल्कि हमारे अच्छे विचारों से,अपने देश के प्रति ईमानदारी से और इंसानियत के जज्बे से ही पहचान मिलती है.
पाठकों/दोस्तों-जब हम हिन्दुस्थान में रहते हुए भी हम हिंदी का प्रयोग नहीं करेंगे तो क्या अमरीका व अन्य देशों के नागरिक प्रयोग करने के लिए आयेंगे?आज से अपने-आप में ठान लो कि- हम अपना अब अधिक से अधिक कार्य और पत्र हिंदी में ही लिखेंगे.शान से कहो कि-हमें गर्व है, हम भारतीय हैं. चाहे आपको कोई अनपढ़ व ग्वार कहे या समझे. कहने वाला कहता रहे और समझने वाला समझता रहे-हम तो भारतीय हैं और भारतीय ही रहेंगे.
अंग्रेजी जानने वाले व्यक्ति को पढ़ा-लिखा मानने वाले व्यक्ति इस "सिरफिरा" का अभिनन्दन स्वीकार कीजिए. मैं स्वीकार करता हूँ कि-हाँ! मैं एक अंगूठा टेक(अनपढ़ व ग्वार) इंसान हूँ. जिससे अंग्रेजी की ए.बी.सी नहीं आती है.लेकिन मुझे गर्व है कि-मुझे हिंदी का थोड़ा-बहुत ज्ञान है और मेरी कथनी व करनी में कोई फर्क नहीं है.
यह हमारे भारत देश की सबसे बड़ी बदनसीबी है कि-यहाँ की उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम कोर्ट) और भारत की राजधानी दिल्ली की उच्च न्यायालय(हाईकोर्ट) की वेबसाइट तक हिंदी में नहीं है. वैसे तो देश की हर सरकारी व प्राईवेट संस्थाओं की वेबसाइट द्धिभाषीय होनी चाहिए.मगर कम से कम हर छोटे-बड़े न्याय का मंदिर कहलवाने वाले न्यायलयों की वेबसाइट हिंदी और अंग्रेजी में होनी ही चाहिए.
मैं आपको जितनी भी मुझे जानकारी है उसी के आधार पर हिंदी में ईमेल कैसे भेजें से जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी सरल (आम बोलचाल) भाषा में दे रहा हूँ. किसी प्रकार की कोई गलती हो गई हो तो क्षमा कर दें.मैंने सुना है कि ज्ञान बाँटने से ही ज्ञान बढ़ता है.उसी ज्ञान को बढ़ाने हेतु अपनी जानकारी आपसे बाँट रहा हूँ.
हिंदी में ईमेल भेजने से पहले कुछ ध्यान रखने योग्य बातें :-
आप किसी भी सोफ्टवेयर में हिंदी का अपना मैटर टाईप करने के बाद कापी करके मैसेज के स्थान पर पेस्ट कर सकते हैं.मगर ईमेल प्राप्त करने वाले व्यक्ति के पास भी वो फॉण्ट होना चाहिए, जिस फॉण्ट में आपने अपना मैटर लिखा होता है.इसलिए वो फॉण्ट भेजना भी अच्छा होता है,जिसमें आपने अपना मैटर लिखा था. अगर आपने फॉण्ट नहीं भेजा तो ऐसा होता है कि-ईमेल प्राप्तकर्ता अपने पास उपलब्ध हिंदी का फॉण्ट लगता है और कई बार फोन्टों की विभिन्नताओं की वजह से संदेश कुछ का कुछ पढ़ने में आता है.
अगर आप अपना व्यापारिक पत्र को अपने लैटरपैड पर भेजना चाहते हैं. तब आप किसी भी सोफ्टवेयर में हिंदी का पत्र टाईप करवाकर लैटरपैड पर उसका प्रिंट निकाल लें और स्कैन करके उसकी पीडीऍफ़ या JPG फाइल बनाकर भेज दें. यहाँ पर आप एक कार्य और कर सकते हैं कि-अन्य सोफ्टवेयरों की सहायता से बगैर प्रिंट निकाले ही आप पीडीऍफ़ या JPG फाइल बनाकर भेज सकते हैं. इसके अलावा आप साफ, सुंदर व हस्तलिखित पत्र को भी स्कैन करके पीडीऍफ़ या JPG फाइल बनाकर भेज सकते हैं. उदाहरण के तौर नीचे देखें:मेरे द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम के एक कार्यालय को लैटरपैड पर भेजी ईमेल, रजिस्टर्ड ए.डी और कोरियर.
सबसे बेहतर और आसान तरीका है कि आप हिंदी में टायपिंग करने के लिए http://www.google.co.in/transliterate को खोलकर हिंदी सलेक्ट करके अपना संदेश हिंदी में टाईप करके कापी कर लें.उसके बाद उस संदेश को मैसेज के स्थान पर पेस्ट कर दें.इससे आपकी ईमेल प्राप्तकर्ता को किसी फॉण्ट की आवश्यकता नहीं होगी. आपका संपूर्ण संदेश को पढ़ने और समझने में आसानी होगी.इन्टरनेट या अन्य सोफ्टवेयरों में हिंदी की टाइपिंग कैसे करें जाने के लिए आप मेरी पिछली पोस्ट देखे.आईये पाठकों/दोस्तों आज हम यह (अगर हम हर रोज दस ईमेल या पत्र भेजते हैं तो हम कम से कम दो ईमेल या पत्र हिंदी में ही भेजेंगे)संकल्प लेकर सारी दुनियां को बता दें कि- हम सच्चे भारतीय हैं,जो इसकी शान-बान हेतु अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.जय हिंद!आप हिंदी के सन्दर्भ में अपने विचारों से मुझे अवगत कराएँ.
# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन: 09868262751, 09910350461 email: sirfiraa@gmail.com, महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है.हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे.इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें.आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.
मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !
मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?
बहुत प्रभावीत हुआ आपकी वीचारो से,आपके लीये मंगल भावना ,
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-=--*रमेश जी घणी-घणी बधाई*--=-
में कैलाश कुमार इंद्रावत सुरत
Email.ruchikagroup@yahoo.co.in
अच्छा लिखते हैं और उद्देश्यपूर्ण लिखते हैं। बधाई। आपने ब्लॉगर के रूप में जन्म तो ले लिया। यहाँ तो सब मन में ही घुमड़ता रहता है, लिखने का वक्त ही नहीं मिलता। आज पहली बार आपके कई आलेख पढ़े। खरा व्यक्ति ही खरी-खरी लिख सकता है। फिर से साधुवाद।
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