हम हैं आपके साथ

हमसे फेसबुक पर जुड़ें

कृपया हिंदी में लिखने के लिए यहाँ लिखे.

आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "रमेश कुमार निर्भीक" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.

शुक्रवार, अक्टूबर 19, 2012

पार्षद से सवाल पूछने पर हथकड़ी

पिछले दो बरस से मोहल्ले का पार्क सूखा पड़ा हो। हालत यह है कि मोहल्ले के बच्चे वहां खेलना तो दूर, बैठ भी नहीं सकते हैं। मोहल्ले के लोग अनेक बार नगर निगम के कार्यालय के चक्कर लगा चुके हैं। पार्षद मुख्य कार्यकारी आयुक्त से मिल चुके हैं लेकिन उन्हें नगर निगम से कोरे आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला। ऐसे में कोई नागरिक पार्क की दीवार पर लिख दे 'दो मिनट बच्चों के हक में रुकें, पार्षद से पूछें दो साल से पार्क सूखा क्यों है?' तो क्या यह मोहल्ले की शांति भंग करने वाला ऐसा कृत्य है जिस के लिए पुलिस उस नागरिक को गिरफ्तार कर ले? ...जब उस नागरिक को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए और वह सारी बात बताए, तो मजिस्ट्रेट उसे छह माह की अवधि तक शांति बनाए रखने के लिए पांच हजार रुपए का मुचलका (व्यक्तिगत बंधपत्र) प्रस्तुत करने पर ही उसे रिहा करे?
कल राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर में यही हुआ। जब दो वर्ष तक लगातार नगर निगम जयपुर के चक्कर लगाने के बाद भी किसी ने पार्क की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दिया, तो बबिता वाधवानी ने पार्क की दीवार पर मोटे मोटे अक्षरों में उक्त वाक्य लिख दिया जो तुरंत पार्षद के चाटुकारों की नजर में आ गया। बात पार्षद तक पहुंची तो उसने तुरंत अपने लोगों को पार्क पर की गई उस वॉल पेंटिंग पर काला रंग पुतवाने के लिए भेज दिया। जब उस महिला ने कालक पोत रहे लोगों से सवाल किया, तो वे लोग जवाब देने के बजाय उलटा उसी से पूछने लगे कि क्या यह आप ने लिखा है। उस महिला ने जवाब दिया कि हां, मैंने ही लिखा है और सच लिखा है।

कुछ ही देर बाद पुलिस आई और बबीता को (जिसकी बेटी बीमार थी), बुलाकर थाने ले गई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जब बबीता ने पूछा कि उसका कसूर क्या है, तो पुलिस ने बताया कि 28 लोगों ने आप के खिलाफ शिकायत लिखकर दी है कि आप मोहल्ले की शांति भंग करना चाहती हैं। मजिस्ट्रेट ने भी जब बबीता से यही कहा कि 28 व्यक्तियों ने एक साथ हस्ताक्षर करके शिकायत दी है तो मिथ्या कैसे हो सकती है। इस पर बबीता ने मजिस्ट्रेट को इतना ही कहा कि पुलिस ने क्या इस बात की जांच की है कि इन हस्ताक्षर वाले व्यक्तियों का कोई अस्तित्व भी है या नहीं? और है तो क्या वे उस मोहल्ले के निवासी हैं जहां पार्क है?

बबीता को किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। लेकिन वह इस विवशता में कि घर जाकर अपनी बीमार बेटी को भी संभालना है, व्यक्तिगत बंधपत्र देकर रात को घर लौटी।

यह घटना बताती है कि राजसत्ता का एक मामूली अदना सा प्रतिनिधि, जो जनता द्वारा चुने जाने पर पार्षद बनता है, जनता के प्रति कितना जिम्मेदार है? वह जिम्मेदार हो या न हो, लेकिन नौकरशाही पर उसकी इतनी पकड़ अवश्य है कि वह उससे सवाल पूछने वाले को (चाहे कुछ घंटों के लिए ही सही) हिरासत में अवश्य पहुंचा सकता है। यह घटना यह भी बताती है कि हमारी पुलिस और कार्यकारी मजिस्ट्रेट रसूखदार की बात को तुरंत सुनते हैं और जनता को बिलकुल नहीं गांठते। खैर, कुछ भी हो, इस घटना ने बबिता को यह तो सिखा ही दिया कि अन्याय और निकम्मेपन के विरुद्ध कुछ कहना और करना हो तो अकेले दुस्साहस नहीं करना चाहिए, बल्कि नागरिकों के संगठनों के माध्यम से ही ऐसे काम करने चाहिए। अन्याय और निकम्मेपन के विरुद्ध संघर्ष का पहला कदम जनता को संगठित करना है।
                -गुरुदेव दिनेशराय द्विवेदी जी के ब्लॉग से साभार.
 
काश ! यदि मैं वकील होता तो इस पर जयपुर हाईकोर्ट में याचिका जरूर डालता. पत्रकार हूँ तो अपनी लेखनी का प्रयोग जरुर करूँगा और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक उपरोक्त घटना को जरूर पहुंचाने की कोशिश करूँगा. मैंने अपना फर्ज निभा दिया. क्या आपने शेयर करके अपना फर्ज निभाया ? दोस्तों ! इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें. यह एक महिला पर हमला नहीं बल्कि हर एक उस "वोटर" पर हमला है. जो इन नेताओं को अपने विकास क्षेत्र के लिए वोट देता है. विकास कार्य ना करने पर पूछने का हक भी रखता है. लेकिन जब वो पूछता है तो उसको जेल मिलती है या झूठे मुकद्दमों से दो-चार होना पड़ता है. आओ दोस्तों हम सब मिलकर हमारे देश के भ्रष्ट नेताओं को उनकी औकात बता दें और हमारे पैसों की सैलरी लेने वाले जजों को जनता की बात सुनने के लिए मजबूर कर दें. यहाँ बात इस बात की नहीं है कि हमने वोट नहीं दिया तो हम क्यों लड़ाई करें ? दोस्तों आज बबीता वाधवानी का उत्साह बढ़ाने की जरूरत है. यह तेरी-मेरी लड़ाई नहीं है बल्कि अन्याय के खिलाफ हम सब की लड़ाई है. यदि आप इसी तरह चुप बैठे रहे तो वो दिन दूर नहीं जब फिर से गुलाम होंगे और कीड़े-मकोडों की तरह से मारे जायेंगे. बाकी आपकी जैसी मर्जी वो कीजिए.

मंगलवार, सितंबर 11, 2012

जिसकी लाठी उसी की भैंस-अंधा कानून

दोस्तों ! हाल बुरा है मगर पत्नी के झूठे केसों में जरुर कोर्ट जाना है. दहेज मंगाने और गुजारा  भत्ता के केस आदि है. क्या एक स्वाभिमानी और ईमानदार पत्रकार दहेज नहीं मांग सकता है ? यदि ऐसा नहीं हो सकता है. क्या बुध्दीजीवी इन बातों से बहुत दूर होते है. यदि हाँ तो हमारे देश के जजों को कौन समझाये ? बिल्ली के गले में कौन घंटी बांधे ? हमारे जैसे (सिरफिरा) पत्रकारों की कहाँ सुनते हैं ? अब तो हमारा भी न्याय की आस में दम निकलता जा रहा है.कहा जाता है कि ऊपर वाले पर भरोसा करो, उसके यहाँ देर है मगर अंधेर नहीं है. लेकिन दोस्तों भारत देश (यहाँ पर जनसंख्या के हिसाब से अदालतें ही नहीं है) की कोर्ट में अंधेर है.वहाँ नोटों की रौशनी चलती है. 
आपने पिछले दिनों खबरों में पढ़ा/देखा/सुना होगा कि एक जज ने एक मंत्री को करोड़ों रूपये लेकर उसको "जमानत" दे दी. हमारे देश का कानून का बिगाड़ लेगा उस जज और मंत्री का. अवाम में सब नंगे है. बस जो पकड़ा गया वो चोर है, बाकी सब धर्मात्मा है. पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने एक टिप्पणी की थी कि-अदालतों के फैसले धनवान व्यक्ति अपने हक में करवा लेता है. आज अदालतों में न्याय दिया नहीं जाता है बल्कि बेचा(मन मर्जी का फैसले को प्राप्त करने के लिए धन देना पड़ता है) जाता है. 
गरीब व्यक्ति को न्याय की उम्मीद में अदालतों में नहीं जाना चाहिए, क्योंकि धनवान के पास वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए पैसा है और जजों व उच्च अधिकारियों को मैनेज करने की ताकत है. हमारे देश में अंधा कानून है और जिसकी लाठी उसी की भैंस है. आप भी अपने विचारों से अवगत करवाएं.
क्या आज सरकार अपनी नीतियों के कारण सभ्य आदमी के आगे ऐसे हालात नहीं बना रही है कि वो हथियार उठाकर अपराधी बन जाए या यह कहे अपराध करने के लिए मजबूर कर रही है. 
आप भी अपने विचारों से अवगत करवाएं.

Photo: क्या आज सरकार अपनी नीतियों के कारण सभ्य आदमी के आगे ऐसे हालात नहीं बना रही है कि वो हथियार उठाकर अपराधी बन जाए या यह कहे अपराध करने के लिए मजबूर कर रही है.

शनिवार, अगस्त 04, 2012

जब प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज न हो

आज हाई प्रोफाइल मामलों को छोड़ दें तो किसी अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करा लेना ही एक "जंग" जीत लेने के बराबर है. आज के समय में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करवाने के लिए किसी सांसद, विधायक या उच्च अधिकारी की सिफारिश चाहिए या रिश्वत दो या वकील के लिए मोटी फ़ीस होना बहुत जरुरी हो गया है. पिछले दिनों अपने ब्लॉग पर आने वालों के लिए मैंने एक प्रश्न पूछा था. क्या आप मानते हैं कि-भारत देश के थानों में जल्दी से ऍफ़आईआर दर्ज ही नहीं की जाती है, आम आदमी को डरा-धमकाकर भगा दिया जाता है या उच्च अधिकारियों या फिर अदालती आदेश पर या सरपंच, पार्षद, विधायक व ससंद के कहने पर ही दर्ज होती हैं? तब 100%लोगों का मानना था कि यह बिलकुल सही है और 35% लोगों ने कहा कि यह एक बहस का मुद्दा है.  कहीं-कहीं पर ऍफ़आईआर दर्ज ना होने के मामले में कुछ जागरूक लोगों ने "सूचना का अधिकार अधिनियम 2005" का सहारा लेकर अपनी ऍफ़आईआर दर्ज भी करवाई हैं. मगर आज भी ऍफ़आईआर दर्ज करवाने को पीड़ित को बहुत धक्के खाने पड़ते हैं. उच्चतम व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति आँखें मूदकर बैठे हुए हैं, अगर वो चाहे (उनमें इच्छा शक्ति हो) तो कम से कम एफ.आई.आर. दर्ज करने के संदर्भ में ठोस कदम उठा सकते हैं.
यह हमारे देश का कैसा कानून है?
जो वेकसुर लोगों पर ही लागू होता है. जिसकी मार हमेशा गरीब पर पड़ती है. इन अमीरों व राजनीतिकों को कोई सजा देने वाला हमारे देश में जज नहीं है, क्योंकि इन राजनीतिकों के पास पैसा व वकीलों की फ़ौज है. इनकी राज्यों में व केंद्र में सरकार है. पुलिस में इतनी हिम्मत नहीं है कि-इन पर कार्यवाही कर सकें. बेचारों को अपनी नौकरी की चिंता जो है. कानून तो आम-आदमी के लिए बनाये जाते हैं. एक ईमानदार व जागरूक इंसान की तो थाने में ऍफ़ आई आर भी दर्ज नहीं होती हैं. उसे तो थाने, कोर्ट-कचहरी, बड़े अधिकारीयों के चक्कर काटने पड़ते है या सूचना का अधिकार के तहत आवेदन करना पड़ता है. एक बेचारा गरीब कहाँ लाये अपनी FIR दर्ज करवाने के लिए धारा 156 (3) के तहत कोर्ट में केस डालने के लिए वकीलों (जो फ़ीस की रसीद भी नहीं देते हैं) की मोटी-मोटी फ़ीस और फिर इसकी क्या गारंटी है कि-ऍफ़ आई आर दर्ज करवाने वाला केस ही कितने दिनों में खत्म (मेरी जानकारी में ऐसा ही एक केस एक साल से चल रहा है) होगा. जब तक ऍफ़ आई आर दर्ज होगी तब तक इंसान वैसे ही टूट जाएगा. उसके द्वारा उठाई अन्याय की आवाज बंद हो जाएगी तब यह कैसा न्याय ?
एक  छोटा-सा उदाहरण देखें :-करोलबाग में रहने वाले अपूर्व अग्रवाल को फेज रोड पहुंचने पर पता चला कि उनकी जेब से मोबाइल फोन गायब है। फौरन बस से उतरकर उन्होंने पीसीओ से अपने नंबर को डायल किया। एक - दो बार घंटी जाने के बाद मोबाइल बंद हो गया। मोबाइल फोन चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए वह करोलबाग पुलिस स्टेशन पहुंचे , लेकिन ड्यूटी पर तैनात पुलिस अफसर ने उन्हें पहाड़गंज थाने जाने के लिए कहा। पहाड़गंज पुलिस स्टेशन से उन्हें फिर करोलबाग पुलिस स्टेशन भेज दिया। दोनों पुलिस स्टेशन के अधिकारी घटना स्थल को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर होने की बात कहकर उन्हें घंटों परेशान करते रहे। थक - हारकर उन्होंने झूठ का सहारा लिया और पुलिस को बताया कि मोबाइल करोलबाग में चोरी हुआ है। तब जाकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। पुलिस अधिकारियों को जनता से शिष्टतापूर्वक व्यवहार करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। अगर पुलिस एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करे , दुर्व्यवहार करे , रिश्वत मांगे या बेवजह परेशान करे , तो इसकी शिकायत जरूर करें।
क्या है एफआईआर :- किसी अपराध की सूचना जब किसी पुलिस ऑफिसर को दी जाती है तो उसे एफआईआर कहते हैं। यह सूचना लिखित में होनी चाहिए या फिर इसे लिखित में परिवतिर्त किया गया हो। एफआईआर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अनुरूप चलती है। एफआईआर संज्ञेय अपराधों में होती है। अपराध संज्ञेय नहीं है तो एफआईआर नहीं लिखी जाती।
आपके अधिकार :- अगर संज्ञेय अपराध है तो थानाध्यक्ष को तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट ( एफआईआर ) दर्ज करनी चाहिए। एफआईआर की एक कॉपी लेना शिकायत करने वाले का अधिकार है।
- एफआईआर दर्ज करते वक्त पुलिस अधिकारी अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं लिख सकता , न ही किसी भाग को हाईलाइट कर सकता है।
- संज्ञेय अपराध की स्थिति में सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी को चाहिए कि वह संबंधित व्यक्ति को उस सूचना को पढ़कर सुनाए और लिखित सूचना पर उसके साइन कराए।
- एफआईआर की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मोहर व पुलिस अधिकारी के साइन होने चाहिए। साथ ही पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में यह भी दर्ज करेगा कि सूचना की कॉपी आपको दे दी गई है।
- अगर आपने संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को लिखित रूप से दी है , तो पुलिस को एफआईआर के साथ आपकी शिकायत की कॉपी लगाना जरूरी है।
- एफआईआर दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायत करने वाले को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए देखा हो।
- अगर किसी वजह से आप घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाएं , तो घबराएं नहीं। ऐसी स्थिति में आपको सिर्फ देरी की वजह बतानी होगी।
- कई बार पुलिस एफआईआर दर्ज करने से पहले ही मामले की जांच - पड़ताल शुरू कर देती है , जबकि होना यह चाहिए कि पहले एफआईआर दर्ज हो और फिर जांच - पड़ताल।
- घटना स्थल पर एफआईआर दर्ज कराने की स्थिति में अगर आप एफआईआर की कॉपी नहीं ले पाते हैं , तो पुलिस आपको एफआईआर की कॉपी डाक से भेजेगी।
- आपकी एफआईआर पर क्या कार्रवाई हुई , इस बारे में संबंधित पुलिस आपको डाक से सूचित करेगी।
- अगर थानाध्यक्ष सूचना दर्ज करने से मना करता है , तो सूचना देने वाला व्यक्ति उस सूचना को रजिस्टर्ड डाक द्वारा या मिलकर क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त को दे सकता है , जिस पर उपायुक्त उचित कार्रवाई कर सकता है।
- एफआईआर न लिखे जाने की हालत में आप अपने एरिया मैजिस्ट्रेट के पास धारा
156 (3) के तहत पुलिस को दिशा - निर्देश देने के लिए कंप्लेंट पिटिशन दायर कर सकते हैं कि 24 घंटे के अंदर केस दर्ज कर एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई जाए।
- अगर अदालत द्वारा दिए गए समय में पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज नहीं करता या इसकी प्रति आपको उपलब्ध नहीं कराता या अदालत के दूसरे आदेशों का पालन नहीं करता , तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के साथ उसे जेल भी हो सकती है।
- अगर सूचना देने वाला व्यक्ति पक्के तौर पर यह नहीं बता सकता कि अपराध किस जगह हुआ तो पुलिस अधिकारी इस जानकारी के लिए प्रश्न पूछ सकता है और फिर निर्णय पर पहुंच सकता है। इसके बाद तुरंत एफआईआर दर्ज कर वह उसे संबंधित थाने को भेज देगा। इसकी सूचना उस व्यक्ति को देने के साथ - साथ रोजनामचे में भी दर्ज की जाएगी।
- अगर शिकायत करने वाले को घटना की जगह नहीं पता है और पूछताछ के बावजूद भी पुलिस उस जगह को तय नहीं कर पाती है तो भी वह तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच - पड़ताल शुरू कर देगा। अगर जांच के दौरान यह तय हो जाता है कि घटना किस थाना क्षेत्र में घटी , तो केस उस थाने को ट्रांसफर हो जाएगा।
- अगर एफआईआर कराने वाले व्यक्ति की केस की जांच - पड़ताल के दौरान मौत हो जाती है , तो इस एफआईआर को Dying Declaration की तरह अदालत में पेश किया जा सकता है।
- अगर शिकायत में किसी असंज्ञेय अपराध का पता चलता है तो उसे रोजनामचे में दर्ज करना जरूरी है। इसकी भी कॉपी शिकायतकर्ता को जरूर लेनी चाहिए। इसके बाद मैजिस्ट्रेट से सीआरपीसी की धारा 155 के तहत उचित आदेश के लिए संपर्क किया जा सकता है।

गुरुवार, जुलाई 26, 2012

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से पांच प्रश्न

नवनियुक्त राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से आम जनता के पांच प्रश्न

1. ग़रीबी पर अपना पहला संबोधन देने वाले नवनियुक्त राष्ट्रपति, क्या 340 कमरों, 65 मालियों और 200 सेवदारों से युक्त राष्ट्रपति भवन के खर्चों में कुछ कटौती करेंगे ?

2. क्या राष्ट्रपति भवन का विलासिता पूर्ण जीवन देश की ग़रीबी और बेकरी से त्रस्त जनता जनता का अपमान हैं

3. क्या राष्ट्रपति विदेश यात्राओं का मोह त्याग पाएँगे या दूसरे राष्ट्रपतियों की तरह से ग़रीबों का जनता के पैसों को अपनी विलास पूर्ण सुविधाओं के लिए खर्च करते रहेंगे ? 

4. क्या राष्ट्रपति भवन में आम जनता के आने वाले पत्रों का जबाब दिया जाएगा ?

5. क्या राष्ट्रपति अफजल गुरु या कसाब जैसे अपराधियों की फांसी में माफ़ी की "दया याचिका" पर अपना निर्णय "संविधान" में लिखी अवधि (नब्बे दिन) कर देंगे या उनको माफ़ कर देंगे या ऐसी स्थिति बना देंगे कि उनको माफ़ किया जा सके ?

आप लेखक से फेसबुक  पर जुड़ें

सोमवार, जुलाई 09, 2012

खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे

दोस्तों ! आखिरकार टीम अन्ना को जंतर-मंतर पर अनशन करने की अनुमति मिल गई है। मिली जानकारी के मुताबिक, शनिवार को टीम अन्ना को 25 जुलाई से 8 अगस्त तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन करने के लिए दिल्ली पुलिस की इजाजत मिल गई है । गौरतलब है कि दो दिन पहले दिल्ली पुलिस ने मानसून सेशन के हवाला देते हुए टीम अन्ना को अनुमति देने से मना कर दिया था। टीम अन्ना के अहम अरविंद केजरीवाल के अनुसार दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से शनिवार को मुलाकात के बाद यह परमिशन दी गई है। वहीं दिल्ली पुलिस का कहना है कि कुछ शर्तों के साथ टीम अन्ना को यह अनुमति दी गई है । 
दोस्तों ! आप यह मत सोचो कि- देश ने हमारे लिए क्या किया है, बल्कि यह सोचो हमने देश के लिए क्या किया है ? इस बार आप यह सोचकर "आर-पार" की लड़ाई के लिए श्री अन्ना हजारे जी के अनशन में शामिल (अपनी-अपनी योग्यता और सुविधानुसार) हो. वरना वो दिन दूर नहीं. जब हम और हमारी पीढियां कीड़े-मकोड़ों की तरह से रेंग-रेंगकर मरेगी. आज हमारे देश को भ्रष्टाचार ने खोखला कर दिया है. माना आज हम बहुत कमजोर है, लेकिन "एकजुट" होकर लड़ो तब कोई हम सबसे ज्यादा ताकतवर नहीं है. 
 इतिहास गवाह रहा कि जब जब जनता ने एकजुट होकर अपने अधिकारों को लेने के लिए लड़ाई (मांग) की है, तब तब उसको सफलता मिली है. लड़ो और आखिरी दम तक लड़ों. यह मेरी-तुम्हारी लड़ाई नहीं है. हम सब की लड़ाई है. मौत आज भी आनी है और मौत कल भी आनी है. मौत से मत डरो. मौत एक सच्चाई है. इसको दिल से स्वीकार करो.  
अगर हम अपना-अपना राग और अपनी अपनी डपली बजाते रहे तो हमें कभी कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून नहीं मिलेगा. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि गीदड़ की मौत मरना चाहते हो या शेर की मौत मरना चाहते हो. सब जोर से कहो कि- खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे. जो हमें जन लोकपाल बिल नहीं देगा तब हम यहाँ(ससंद) रहने नहीं देंगे. 
 निम्नलिखित समाचार भी पढ़ें   भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई

मंगलवार, फ़रवरी 07, 2012

क्या दिल्ली हाईकोर्ट के जज पूरी तरह से ईमानदार है ?

दोस्तों! एक बार जरा मेरी जगह अपने-आपको रखकर सोचो और पढ़ो कि-एक पुलिस अधिकारी रिश्वत न मिलने पर या मिलने पर या सिफारिश के कारण अपने कार्य के नैतिक फर्जों की अनदेखी करते हुए मात्र एक महिला के झूठे आरोपों(बिना ठोस सबूतों और अपने विवेक का प्रयोग न करें) के चलते हुए किसी भी सभ्य, ईमानदार व्यक्ति के खिलाफ झूठा केस दर्ज कर देता है. फिर सरकार द्वारा महिला को उपलब्ध सरकारी वकील, जांच अधिकारी, जज आदि को मुहं मांगी रिश्वत न मिले. इसलिए सिर्फ जमानत देने से इंकार कर देता है. उसके बाद क्या एक सभ्य व्यक्ति द्वारा देश की राष्ट्रपति और दिल्ली हाईकोर्ट से इच्छा मृत्यु की मांग करना अनुचित है. एक गरीब आदमी कहाँ से दिल्ली हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के अपनी याचिका लगाने के लिए पैसा लेकर आए ? क्या वो किसी का गला काटना शुरू कर दें ? क्या एक पुलिस अधिकारी या सरकारी वकील या जांच अधिकारी या जज की गलती की सजा गरीब को मिलनी चाहिए ? हमारे भारत देश में यह कैसी न्याय व्यवस्था है ? क्या हमारे देश में दीमक की तरह फैले भ्रष्टचार ने हमारी न्याय व्यवस्था को खोखला नहीं कर दिया है ? क्या आज हमारी अव्यवस्थित न्याय प्रणाली सभ्य व्यक्तियों को भी अपराधी बनने के लिए मजबूर नहीं कर रही है ? इसका जीता-जागता उदाहरण मेरा "सच का सामना" ब्लॉग है और मेरे द्वारा दिल्ली हाई कोर्ट को लिखा पत्र (नीचे) देखें. क्या दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत सभी जज पूरी तरह से देश और देश की जनता के प्रति ईमानदार है ? मेरे पत्र को देखे और उसके साथ स्पीड पोस्ट(http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/06/blog-post_18.html)की रसीद को देखें. मेरे द्वारा 137 दस्तावेजों के साथ 15 फोटो वाला 760 ग्राम का पैकेट 13/06/2011 को भेजने के बाद भी आज तक संज्ञान नहीं लिया या यह कहूँ देश के राजस्व की उन्हें कोई चिंता नहीं है. उनको सिर्फ अपनी सैलरी लेने तक का ही मतलब है. क्या देश की अदालतों में भेदभाव नहीं नीति नहीं अपनाई जाती है. अगर मेरे जैसा ही अगर किसी महिला ने एक पेज का भी एक पत्र दिल्ली हाईकोर्ट में लिख दिया होता तो दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ न्यायादिश के साथ अन्य जज भी उसके पत्र पर संज्ञान लेकर वाहवाही लूटने में लग जाते है, इसके अनेकों उदाहरण अख़बारों में आ चुके है. क्या भारत देश में एक सभ्य ईमानदार व्यक्ति की कोई इज्जत नहीं ? 
भारत देश की न्याय व्यवस्था ने मेरे परिवार के साथ हमेशा अन्याय किया है. आजतक इन्साफ मिला ही नहीं है और न भविष्य में किसी गरीब को देश की अदालतों से इंसाफ मिलने की उम्मीद है.
मेरे प्रेम-विवाह करने से पहले और बाद के जीवन में आये उतराव-चढ़ाव का उल्लेख करती एक आत्मकथा पत्नी और सुसरालियों के फर्जी केस दर्ज करने वाले अधिकारी और रिश्वत मांगते सरकारी वकील,पुलिस अधिकारी के अलावा धोखा देते वकीलों की कार्यशैली,भ्रष्ट व अंधी-बहरी न्याय व्यवस्था से प्राप्त अनुभवों की कहानी का ही नाम है "सच का सामना"आज के हालतों से अवगत करने का एक प्रयास में इन्टरनेट संस्करण जिसे भविष्य में उपन्यास का रूप प्रदान किया जायेगा.

1. एक आत्मकथा-"सच का सामना"

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post.html

2. मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, "सिरफिरा" हूँ और "सिरफिरा" रहूँगा

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/03/blog-post_14.html

3. मैंने अपनी माँ का बहुत दिल दुखाया है

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post.html

4. मेरी आखिरी लड़ाई जीवन और मौत की बीच होगी

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_22.html

5. प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/04/blog-post_29.html

6. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post.html

7. मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post_12.html

8.कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post_13.html

9. एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है कि-मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें.

http://sach-ka-saamana.blogspot.com/2011/06/blog-post_18.html

10. भगवान महावीर स्वामी की शरण में गया हूँ

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/09/blog-post.html

11. मेरी लम्बी जुल्फों का कल "नाई" मालिक होगा.
http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/11/blog-post.html

12.सरकार और उसके अधिकारी सच बोलने वालों को गोली मारना चाहते हैं.

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/11/blog-post_02.html

13.मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर एक प्रश्नचिन्ह है

http://rksirfiraa.blogspot.in/2011/06/blog-post.html

14. यह प्यार क्या है ? 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2011/12/blog-post.html 

15. हम तो चले तिहाड़ जेल दोस्तों ! 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/02/blog-post.html 

16. क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ? 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/07/blog-post.html 

17. क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ? 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/07/blog-post_16.html 

18. जिन्दा रहो वरना जीवन लीला समाप्त कर लो 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/07/blog-post_20.html 19. 

दहेज न लेने पर भी सजा मिलती है 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/10/blog-post.html 

20. दहेज न लेने पर भी सजा मिलती है (टिप्पणियाँ) 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2012/10/blog-post_26.html 

21. यदि आपको क्रोध आता है तो जरुर पढ़े/देखें/सुनें ? 

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2013/03/blog-post.html 

22. "विवाह" नामक संस्था का स्वरूप खराब हो रहा है

http://sach-ka-saamana.blogspot.in/2013/04/blog-post.html

मंगलवार, जनवरी 03, 2012

फेसबुक के दोस्तों को अलविदा !

लो दोस्तों, आपने पुराने साल को विदा कर दिया है. अब मुझे भी विदा करों. ज्यादा जानकारी एक दो दिन में दूँगा. अपनी विदाई पर इन शब्दों के साथ कर रहा हूँ. गौर कीजियेगा कि:- "अरी ओ फेसबुक, अगर जिन्दा रहे तो तेरे पास आ जायेंगे, वरना नए डाक्टरों के रिसर्च* (शोध) के काम आ जायेंगे" 
हाँ, दोस्तों यह बिल्कुल सच है. लौट सके तो नए शब्दों की रचना करेंगे. वरना...अब तक लिखे को ही दोस्त पढ़ते रह जायेंगे. श्री अहमद फ़राज़ साहब का कहना कि:-चलो कुछ दिनों के लिये दुनिया छोड़ देते है ! सुना है लोग बहुत याद करते हैं चले जाने के बाद !! 
*सिखने/सिखाने के उद्देश्य की जाने वाली चीरफाड़.
क्या आदमी को बुजदिलों की मौत मरना चाहिए या वीरों की ? 
शीर्षक में पूछे प्रश्न का उत्तर कहूँ या टिप्पणी दें. 
 दोस्तों, फेसबुक की मेरी वाल पर और ब्लोगों पर इतना है कि अगले चार महीने में पूरा पढ़ भी नहीं पायेंगे. आप और आपकी दुआओं से जीवन रहा तो आप लोगों का "सिर-फिराने" के लिए हाजिर हो जायेगें.यह दुनियाँ ही चला-चली की है. मैं जाऊँगा तब ही तो दूसरा आएगा.आज हममें भोग-विलास की वस्तुओं से मोह ज्यादा है.जब भी समय मिले तब ब्लॉग और वाल जरुर पढ़ें.मैं जानता हूँ कि लोग अभी नहीं पढ़ेंगे लेकिन मेरी मौत के बाद एक-एक शब्द पढेंगे.यह मुझे मालूम है. शायद आपको पता हो कि-हमें डिप्रेशन और डिमेंशिया की बीमारी है. अब अगले चार महीनों में उस पर विजय भी प्राप्त कर लेंगे. 
         अगर कुछ अच्छे और सच्चे ब्लॉगरों ने और फेसबुक/ऑरकुट प्रयोगकर्त्ता ने साथ दिया तो अपनी सच लिखने वाली लेखनी से मेरे ऊपर झूठे केस दर्ज करने वाले अफसरों (अंधी-बहरी सरकार की भ्रष्ट व्यवस्था) की नाक में दम कर दूँगा.हम किसी को थप्पड़ मार नहीं सकते हैं, मगर अपनी लेखनी से अंगार(सच) उगल सकते हैं और उसके लिए फांसी का फंदा चूम सकते हैं. सिंह की तरह से निडरता से सच लिखना जानता हूँ. www.sach-ka-saamana.blogspot.com यहाँ पर क्लिक करें और पढ़ें. आप मेरे किसी भी एक ब्लॉग पर जायेंगे और अगर आपने थोडा-सा ध्यान से पढ़ा.तब आपको एक ब्लॉग पर मेरे दूसरे ब्लोगों के लिंक और बहुत उपयोगी जानकारियां भी प्राप्त होगी. ऐसा मेरा विश्वास और उम्मीद है.

शनिवार, दिसंबर 24, 2011

क्या उसूलों पर चलने वालों का कोई घर नहीं होता है ?

दोस्तों, क्या आप इस विचार से सहमत है कि-अपने उसूलों(सिद्धांतों) पर चलने वालों का कोई घर* नहीं होता है, उनके तो मंदिर बनाये जाते हैं. क्या देश व समाज और परिवार के प्रति ईमानदारी का उसूल एक बेमानी-सी एक वस्तु है ?
*आवश्कता से अधिक धन-दौलत का अपार, भोगविलास की वस्तुओं का जमावड़ा, वैसे आवश्कता हमारे खुद द्वारा बड़ी बनाई जाती हैं. जिसके कारण धोखा, लालच और मोह जैसी प्रवृतियाँ जन्म लेती हैं. इस कारण से हम अनैतिक कार्यों में लीन रहते हैं. मेरे विचार में अगर जिसके पास "संतोष' धन है, उसके लिए आवश्कता से अधिक भोग-विलास की यह भौतिकी वस्तुएं बेमानी है. उसके लिए सारा देश ही उसका अपना घर है.
दोस्तों, अपनी पत्रकारिता और लेखन के प्रति कुछ शब्दों में अपनी बात कहकर रोकता हूँ. मैं पहले प्रिंट मीडिया में भी कहता आया हूँ और इन्टरनेट जगत पर कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं.जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं.
दोस्तों-गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे. 
दोस्तों, आप इस विषय (बात) पर अपने विचार जरुर व्यक्त करें. आप भी अपने देश के लिए कोई भी एक उसूल ऐसा बनाओ. जिससे देश व समाज का भला हो. 
नोट: यहाँ पर प्रयोग किए फोटो उन महान व्यक्तियों के जिन्होंने अपने खुद के उसूल बनाए और आखिरी दम तक उस पर अटल भी है/रहे और हमारे देश में ऐसे महापुरुषों की संख्या को उंगुलियों पर नहीं गिना जा सकता है.जैसे-श्री शास्त्री जी की ईमानदारी, नेताजी की देश के प्रति समपर्णभाव आदि.  

बुधवार, दिसंबर 21, 2011

भारत देश की मांओं और बहनों के नाम एक अपील

मेरी बहनों/मांओं ! क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि किसी के भाई और बेटे नहीं थें ?
क्या भारत देश में देश पर कुर्बान होने वाले लड़के/लड़कियाँ मांओं ने पैदा करने बंद कर दिए हैं ? जो भविष्य में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और झाँसी की रानी आदि बन सकें. अगर पैदा किये है तब उन्हें कहाँ अपने आँचल की छाँव में छुपाए बैठी हो ? 
उन्हें निकालो ! अपने आँचल की छाँव से भारत देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करके देश को "सोने की चिड़िया" बनाकर "रामराज्य" लाने के लिए देश को आज उनकी जरूरत है.  मौत एक अटल सत्य है. इसका डर निकालकर भारत देश के प्रति अपना प्रेम और ईमानदारी दिखाए. क्या तुमने देश पर कुर्बान होने के लिए बेटे/बेटियां पैदा नहीं की. अपने स्वार्थ के लिए पैदा किये है. क्या तुमको मौत से डर लगता है कि कहीं मेरे बेटे/बेटी को कुछ हो गया तो मेरी कोख सूनी हो जायेगी और फिर मुझे रोटी कौन खिलाएगा. क्या नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि की मांओं की कोख सूनी नहीं हुई, उन्हें आज तक कौन रोटी खिलता है ? क्या उनकी मांएं स्वार्थी थी ?
दोस्तों, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, शहीद भगत सिंह आदि भी किसी के भाई और बेटे थें. उन मांओं की भी कोख सूनी हुई, उन्हें आज कोई रोटी नहीं खिलता है. आज देश में यह हालत है कि देश पर कुर्बान होने वाले के कफनों के सौदेबाजी होती है या यह कहे कि एक घोटाला के बाद दूसरा घोटाला खुलता है.सरकार से मिलने वाली सहायता के लिए शहीदों के माँ-बाप और परिजन दर-दर की ठोकर खाते-फिरते हैं.
आज देश में महिलाओं की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि वो माँ की कोख से पैदा नहीं हुए. वो असमान से टपकें थें. आज देशवासी फिर इंतजार कर रहे हैं कि ऐसे वीर दुबारा पैदा हो, हमारे पड़ोसी के घर ही पैदा हो.मगर अपने घर में कोई पैदा नहीं करना चाहता है.
दोस्तों, आप यहाँ पर अपने विचार जरुर व्यक्त करों.
आप फेसबुक पर इस लेख पर आये विचार यहाँ पर क्लिक करके देख सकते हैं और हमसे जुड़ सकते हैं.

मंगलवार, दिसंबर 13, 2011

दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ?

  दोस्तों, आप दोस्तों की संख्या में विश्वास करते हो या उनकी गुणवत्ता पर ? दोस्तों, पिछले दिनों फेसबुक के मेरे एक मित्र ने एक अपने मित्र की दोस्ती का निवेदन स्वीकार करने के लिए कहा. तब मैंने कहा उनकी प्रोफाइल का अवलोकन करने के लिए कहा. तब उस मित्र का कहना था कि-इतना घंमड ठीक नहीं है. हमने जवाब दिया-दोस्त! आपको अपने विचारों की अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है. अपशब्दों को छोड़कर जैसे मर्जी अपने विचार व्यक्त करें. आपको जवाब जरुर मिलेगा. वैसे मैं ऐसा इसलिए करता हूँ सुरक्षा* कारणों के चलते ही प्रोफाइल का अवलोकन करता हूँ. मुझे नहीं पता आपकी नजरों में मेरा यह घंमड या कुछ और है. लेकिन यह मेरा देश और समाज के प्रति सभ्य व्यवहार की परिभाषा है.
      *सुरक्षा- जहाँ तक सुरक्षा की बात कई विकृत मानसिकता के व्यक्तियों की प्रोफाइल में अश्लील फोटो व वीडियों होते है, जिनका प्रयोग खासतौर अपने या मेरे लड़कियों या महिलाओं की प्रोफाइल पर डाल कर करते हैं. दोस्तों अगर आपको कभी भी मेरी प्रोफाइल में इसे दोस्तों की जानकारी हो तो मुझे अपनी प्रोफाइल में दिए ईमेल, फ़ोन या एड्रेस पर पत्र द्वारा सूचित करके दोस्ती के पवित्र रिश्ते को कायम करें. अभी कल ही मैंने फेसबुक और ऑरकुट की अपनी दोस्त एक महिला और एक लड़की की "वाल" पर उसके दोस्त द्वारा डाली आपत्तिजनक फोटो देखी. मगर में उनको यह सूचना उनके द्वारा दी प्रोफाइल में जानकारी के अभाव में देने में असमर्थ रहा. लेकिन शुक्र था कि-वो विकृत मानसिकता का व्यक्ति मेरा दोस्त नहीं था.
         अब सुरक्षा का एक दूसरा नमूना भी देखें-एक दोस्त कहूँ या व्यक्ति को लिखे शब्दों में कठोरता है पर सभ्य भाषा का प्रयोग किया है.
दोस्त, आपकी फेसबुक/ऑरकुट प्रोफाइल में अनेक जानकारी का अभाव है और भ्रमित जानकारी देते है. सच से डरते हैं. इसलिए आपकी दोस्ती का निवेदन स्वीकार नहीं किया जाता था और फ़िलहाल भी आपको संदेश देने के लिए ओके किया है.मैंने अनेक बार कोशिश भी की आप कुछ सुधार करें.मगर आप झूठ का दामन नहीं छोड़ रहे थें. ऑनलाइन वार्तालाप में भ्रमित जानकारी दे रहे थें. जब दोस्त को नहीं बता सकते तब दोस्ती जैसे पवित्र रिश्ते का कोई मतलब नहीं है. इसलिए मैंने आपको अपने दोस्ती का रिश्ता खत्म कर लिया था. आपके अनेक संदेश आ चुके थें आपको बताने के लिए ओके किया है और बहुत जल्द खत्म भी कर देंगे. अगर हमें संतोषजनक जवाब पिछले प्रश्नों का नहीं मिलता है तब, आपके लिए एक मौका है. मेरे प्यारे मित्रों, अभी जांच की जिस मित्र को यह लिखा था. उन्होंने खुद ही मेरी फेसबुक/ऑरकुट की प्रोफाइल में से अपनी दोस्ती को खत्म कर लिया है.
       दोस्तों, आप मेरे विचारों से सहमत हो तो उपरोक्त संदेश में आवश्कता के अनुसार बदलाव करके उपरोक्त संदेश को या इसके लिंक को अपनी फेसबुक/ऑरकुट की प्रोफाइल की "वाल" पर पेस्ट करें/लगाए.
दोस्तों, आओ हम इन सोशल वेबसाइट (ऑरकुट, फेसबुक, गूगल आदि) के माध्यम से देश और समाज को आगे ले जाने के लिए अपना योगदान करें. अपनी एक छोटी-सी बात कहकर अपना लेखन फ़िलहाल यहीं रोक रहा हूँ कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें.धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है. हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरी विचारधारा में "राजनीति" सेवा करने का मंच है. दोस्तों, आप इस विषय (बात) पर अपने विचार जरुर व्यक्त करें.
दोस्तों, आप सभी का शुक्रिया आपने हमें अपनी दोस्ती के योग्य पाया. हमारी प्रोफाइल, वाल और ब्लॉग समय मिलने पर पढ़ें और अपनी आलोचनाओं से हमें कृतार्थ करें. आज ऐसे दोस्त मिलते नहीं हैं. अगर मिलते हैं तो लोग उनको अपने समूह से या अपने दोस्तों की सूची से निकाल देते हैं. यह हमारे फेसबुक, ऑरकुट और गूगल पर ब्लोगों के निजी अनुभव है. मगर हमें खुशी होती है कि चलो हम एक ओर दोस्त का मन,कर्म ओर काया से आलोचना करने से बच गए. 
नोट: तकनीकी ज्ञान देने वाले, सुझाव और हमारी आलोचना करने वालों को प्राथमिकता दी जायेगी. कृपया चापलूस व्यक्ति दूरी बनाए रखें.

सोमवार, दिसंबर 05, 2011

मांगे मिले नहीं भीख, बिन मांगे मोती मिले

दोस्तों, मुझे बिन मांगे ही लड़कियां और महिलाएं अपना फ़ोन नम्बर क्यों दे देती हैं ? वैसे कहा जाता है कि-मांगे मिले नहीं भीख, बिन मांगे मोती मिले. क्या "सिरफिरा" लड़कियां और महिलाएं की नज़र में इतना विश्वास करने योग्य है ? क्या आप मानते हैं कि-एक बुध्दिजीवी व्यक्ति नारी का सम्मान करना जानता हैं ? इसलिए ही उस पर भरोसा करती हैं और अगर वो स्वार्थवश या किसी अन्य कारणों द्वारा विश्वासघात करता हैं. तब क्या उसको अपने आपको बुद्धिजीवी कहलवाने का अधिकार है ?
       दोस्तों, आप इस विषय (बात) पर अपने विचार जरुर व्यक्त करें. केवल पसंद का बटन न दबाये.
नोट:- जब मेरे दोस्त किसी महिला या लड़की का मुझसे फ़ोन नम्बर मांगते हैं, तब यहीं कहता हूँ कि-दोस्त मत मांग मुझसे उसका* फ़ोन नम्बर मेरी जान मांग लें. ख़ुशी से जान दे देंगे, मगर नम्बर नहीं देंगे. खुलूस से परखो, खुलूस के लिए हम तो जान भी दे देंगे दोस्ती के लिए.
*महिला या लड़की.

शुक्रवार, नवंबर 18, 2011

मुझ पर विश्वास भी रखें

फ़ेसबुक के कई हजार अकाउंट्स हैक हुए हैं (अधिकांश ID बंगलोर के हैं), जिनसे अश्लील और अभद्र वीडियो और फोटो भेजे जा रहे हैं…। किसी मित्र को यदि मेरे नाम या आई डी (ID) से ऐसा कोई अश्लील क्लिप अथवा फ़ोटो मिलता है तब उसे तुरन्त डिलीट करें और मुझ पर विश्वास रखें कि ऐसी "घटिया हरकत" मैंने नहीं की; न कभी भविष्य में कर सकता हूँ. जैसा आप सबको सनद होगा ही कि मैं पेशे से एक पत्रकार भी हूँ और मुझे तकनीकी ज्ञान भी ज्यादा नहीं है. पुलिस, सीबीआई एवं साइबर क्राइम विशेषज्ञ इस मामले की जाँच कर रहे हैं… अगर भविष्य में कभी ऐसा हो भी धैर्य रखें और मुझ पर विश्वास भी रखें और संभव हो तो मुझे फोन करके सूचित भी करें. कभी मेरे विरोधी साजिश करके मुझे आपकी नजरों में गिराने के लिए ऐसी ओछी हरकत कर सकते हैं.…। आपका अपना दोस्त-रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा

नोट:- इस संदेश में अपनी आवश्यकता अनुसार बदलाव करके अपने स्टेटस में भी डाले|

सोमवार, अक्टूबर 31, 2011

"सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म-2


प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट

   आज की पोस्ट के शीर्षक के अनुरूप ही एक पोस्ट यहाँ पर इस "क्या हमारी मीडिया भटक गयी है ?" शीर्षक से प्रकाशित हुई है. जो ब्लॉग जगत के लिए एक विचारणीय भी है और कुछ करके दिखाने के योग्य भी है. इस ब्लॉग की संचालक डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी  के लेखन का ही जादू है. जो उनकी एक पोस्ट पर 510 टिप्पणियाँ तक प्राप्त होती है. जिन्हें अधिक्तर लोग 'ZEAL' के नाम से जानते हैं. इनकी पोस्ट को पढकर मेरी दबी हुई आंकाक्षा उबल खा गई. तब मैंने अपनी बात भी वहाँ टिप्पणी के रूप में चिपका दी और शायद उसके कारण मेरा ब्लॉग जगत पर आने का उद्देश्य भी पूरा हो सकता है. इनकी अनेकों पोस्टें विचार योग्य है और कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती है. इसके गुलदस्ते का एक फुल कहूँ या पोस्ट यह भी है. जिसका शीर्षक 'ZEAL' ब्लॉग का उद्देश्य - [शब्दों में ढले जिंदगी के अनुभव] यह है.  आप यहाँ जरुर जाएँ और जैसे अपने भगवान के घर में जाकर हाजिरी लगते हैं. वहाँ पर भी हाजिरी जरुर लगाकर आये और भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब को ईमेल करके या यहाँ पर टिप्पणी करके जरुर बताये कि-इस नाचीज़ 'सिरफिरा-आजाद पंछी' को पिंजरे से आजाद करके कहूँ या भरोसा करके क्या कोई जुर्म किया है? 

अब थोड़ा चलते-चलते फिर आपका सिर-फिरा दूँ. ऐसा कैसे हो सकता है शुरू में फिराया है और लास्ट मैं ना फिरारूं तो मेरे नाम की सार्थकता खत्म नहीं हो जायेगी. 
 1. मैं पूरे ब्लॉग जगत से पूछता हूँ कि-क्या पूरा ब्लॉग जगत मैं यहाँ चलती आ रही गुटबाजी को खत्म करने के लिये कोई कार्य करना चाहेंगा या चाहता है? अगर इस बीमारी पर जल्दी से जल्दी काबू नहीं किया गया तब ब्लॉग जगत अपनी पहचान जल्दी ही खत्म कर देगा. अपने उपरोक्त विचार मेरी ईमेल (हिंदी में भेजे)  sirfiraark@gmail.com  पर भेजे. क्या मुस्लिम कहूँ मुसलमान सच नहीं लिख सकता हैं? क्या आप उसका सिर्फ उसके धर्म और जाति के कारण वहिष्कार करेंगे. आखिर क्यों हम हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई में बाँट रहे हैं? एक इंसान का सबसे बड़ा धर्म "इंसानियत" का नहीं होता है. इससे हम क्यों दूर होते जा रहे हैं?
2. अगर हिंदी ब्लॉग जगत के सभी ब्लोग्गर अपने एक-एक ब्लॉग को एक अच्छी "मीडिया-कलम के सच्चे सिपाही" के रूप में स्थापित करने को तैयार हो तो मैं 200 ब्लोग्गरों की यहाँ sirfiraark@gamil.com पर ईमेल(हिंदी में भेजे) आने पर उसके सारे नियम और शर्तों को बनाकर अपना पूरा जीवन उसको समर्पित करने के लिये तैयार हूँ. 
                     मैं आज सिर्फ अपनी पत्नी के डाले फर्जी केसों से परेशान हूँ. जिससे मेरे ब्लोगों को पढकर थोड़ी-सी मेरी पीड़ा को समझा जा सकता है. हर पत्रकार पैसों का भूखा नहीं होता, शायद कोई-कोई मेरी तरह कोई "सिरफिरा" देश व समाज की "सच्ची सेवा" का भी भूखा होता हैं, बस ब्लॉग जगत पर मेरी ऐसे पत्रकारों की तलाश है. यहाँ ब्लॉग जगत पर 1000-2000 शब्दों का लेख लिखकर या किसी ब्लॉग पर 15-20 वाक्यों की टिप्पणी करके सिर्फ चिंता करना जानते हो? 
                  मेरी माँ, बहन और बेटी के समान और मेरे पिता, भाई और बेटे के समान ब्लोग्गरों यह "सिरफिरा" आपको कह रहा है कि-"गुड मोर्निंग. जागो! सुबह हो गई" और "आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें.धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है. हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरी विचारधारा में "राजनीति" सेवा करने का मंच है" मुझे तुम्हारे साथ और लेखनी कहूँ या कम्प्यूटर के किबोर्ड पर चलने वाली वाली दस उंगुलियों की जरूरत है. तुम्हारा और मेरा सपना "समृध्द भारत" पूरा ना हो तब कहना कि-सिरफिरा तूने जो कहा था, वो नहीं हुआ. थोड़े नियम और शर्तें कठोर है. मगर किसी दिन भूखे सोने की नौबत नहीं आएगी. अगर ऐसा कभी हो तो मुझे सूचित कर देना. अपने हिस्से का भोजन आपको दे दूँगा. मुझे अपने जैन धर्म के मिले संस्कारों के कारण भूखा रहने की सहनशीलता कहूँ या ताकत प्राप्त है. एक बार मेरी तरफ कदम बढाकर तो देखो. किसी पीड़ा से दुखी नहीं होंगे और किसी सुख से वंचित नहीं होंगे. यह "सिरफिरा" का वादा है आपसे. 


     बोर कर देने वाली इतनी लंबी पोस्ट के लिए क्षमा कर देना. आपसे वादा रहा अगली पोस्ट इतना बोर नहीं करूँगा. पहली पोस्ट है ना और अनाड़ी भी हूँ.
 दोस्तों, मैं शोषण की भट्टी में खुद को झोंककर समाचार प्राप्त करने के लिए जलता हूँ फिर उस पर अपने लिए और दूसरों के लिए महरम लगाने का एक बकवास से कार्य को लेखनी से अंजाम देता हूँ. आपका यह नाचीज़ दोस्त समाजहित में लेखन का कार्य करता है और कभी-कभी लेख की सच्चाई के लिए रंग-रूप बदलकर अनुभव प्राप्त करना पड़ता है. तब जाकर लेख का विषय पूरा होता है. इसलिए पत्रकारों के लिए कहा जाता है कि-रोज पैदा होते हैं और रोज मरते हैं. बाकी आप अंपने विचारों से हमारे मस्तिक में ज्ञानरुपी ज्योत का प्रकाश करें. 

एक बार मेरी orkut और facebook प्रोफाइल देख लें, उसमें लिखी सच्चाई की जांच करें-फिर हमसे सच्ची दोस्ती करने की खता करें. मुझे उम्मीद है धोखेबाजों की दुनियां में आप एक अच्छा दोस्त का साथ पायेगें और निराश नहीं होंगे.
उपरोक्त लेख पर आई टिप्पणियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
नोट:-यह पोस्ट "ब्लॉग की खबरें" के लिए लिखी गई थी, जो वहां पर 20 जुलाई को प्रकाशित हो चुकी है. ब्लॉग जगत पर बड़ी-बड़ी बातें लिखने और कहने वाले किसी भी ब्लॉगर की आज तक कोई भी ईमेल नहीं आई हैं. इसे ही कहते हैं कि कथनी और करनी में फर्क.

शनिवार, अक्टूबर 29, 2011

"सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म


प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट

मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों - मुझे इस ब्लॉग "ब्लॉग की खबरें" के संचालक कहूँ या कर्त्ताधर्त्ता भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब ने मुझ नाचीज़ "सिरफिरा" को मान-सम्मान दिया हैं. उसका मैं तहे दिल से शुक्र गुजार हूँ. मेरे लिये यहाँ# ब्लॉग जगत में न कोई हिंदू है, न कोई मुस्लिम है, न कोई सिख और न कोई ईसाई है. मेरे लिये "सच" लिखना और "सच" का साथ देना मेरा कर्म है और "इंसानियत" मेरा धर्म है. चांदी से बने कागज के चंद टुकड़े मेरे लिये बेमानी है या कहूँ कि -भोजन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए भोजन है. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. तब कोई अतिसोक्ति नहीं होगी.

     भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब ने मुझे सारी शर्तों व नियमों से पहले अवगत करके मुझे आप लोगों की सेवा करने का मौका दिया है. मैं अपने कुछ निजी कारणों से आपकी फ़िलहाल ज्यादा सेवा नहीं पाऊं. लेकिन जब-जब आपकी सेवा करूँगा. पूरे तन और मन से करूँगा. किसी ब्लॉग की या मंच की नियम व शर्तों में पारदशिता(खुलापन) बहुत जरुरी है. अगर आप यह नहीं कर सकते तब आप ब्लॉग या मंच के पाठकों से और उसके सहयोगियों से धोखा कर रहे हो. भाई खान साहब ने मेरी निजी समस्याओं पर चिंता व्यक्त करते हुए और उन्हें हल करने में मेरी व्यवस्ताओं को देखते हुए कहा कि -आपकी शैली मुझे पसंद है। आप ब्लॉग जगत की सूचना और पत्रकारिता के लिए आमंत्रित किए गए हैं ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ की ओर से। आप ब्लॉग जगत से जुड़ी कोई भी तथ्यपरक बात कहने के लिए आज़ाद हैं। आइये और हिंदी ब्लॉग जगत को पाक साफ़ रखने में मदद कीजिए। ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ का संपादक मैं ही हूं। आप इसके एक ज़िम्मेदार पत्रकार हैं। आप मुझे दिखाए बिना जब चाहे कुछ भी यहां छाप सकते हैं। यह मंच किसी के साथ नहीं है और न ही किसी के खि़लाफ़ है। यह केवल सत्य का पक्षधर है। हरेक विचारधारा का आदमी यहां ब्लॉग जगत में हो रही हलचल को प्रकाशित कर सकता है। आप अपनी समस्याओं के चलते एक भी पोस्ट न प्रकाशित करें. मगर आपकी नेक नियति का मैं कायल हूँ. इसलिए आप हमें यथा संभव योगदान दें. मुझे आपकी पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार रहेगा.

    मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों-जब किसी तुच्छ से "सिरफिरा" को इतना मान-सम्मान दें और अपने ब्लॉग या मंच के उद्देश्यों से अवगत कराने के साथ ही अपने ब्लॉग भाई की निजी समस्याओं का "निजी खबरे या बड़ा ब्लोग्गर" कहकर मजाक ना बनाये. बल्कि उन्हें हल करने के लिये अपनी तरफ से किसी प्रकार की मदद करने के लिये कदम बढ़ाता है. तब ऐसे ब्लॉग या मंच से "सिरफिरा" तन और मन से न जुडे. ऐसा कैसे हो सकता है.  

    मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों- आज मेरी पहली पोस्ट में कोई भी गलती हो गई हो तब पूरी निडरता से आलोचना करें. कृपया प्रशंसा नहीं. मेरी आलोचना करें. मैं यहाँ पर आलोचकों को प्राथमिकता दूँगा. मेरी प्रशंसा के लिए मेरे ब्लोगों की संख्या दस है. वहाँ अपनी पूर्ति करें. मैंने भाई खान साहब से जल्द ही एक पोस्ट डालने का वादा किया था. उस "कथनी" के लिए आपके सामने एक पोस्ट लेकर आया हूँ. किसी प्रकार की अनजाने में हुई गलती को "दूध पीता बच्चा" समझकर माफ कर देना. 

    बस अपनी बात यहाँ ही खत्म करता हूँ. फिर शेष तब .......जब चार यार(दोस्त, शुभचिंतक, आलोचक और तुच्छ "सिरफिरा") बैठेंगे.
     अब आप इन्तजार करें मेरी यहाँ अगली पोस्ट का जिसका उपशीर्षक (मैं हिंदू हूँ , मैं मुस्लिम हूँ  और मैं सिख-ईसाई भी हूँ) और प्रमुख्य शीर्षक "मेरा कोई दिन-मान नहीं है" इस पोस्ट से संबंधित क़ानूनी और तकनीकी जानकारी प्राप्त होने पर ही प्रकाशित होगी. इस पर शोध कार्य चल रहे हैं. थोड़ा सब्र करें.

    अरे ! मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों मैंने आपको कहाँ उलझा दिया? अपनी बातों में आप कभी भी "सिरफिरा" की बातों में न आया करें. इसकी बातों में आकर आपका भी "सिर" फिर जायेगा. देखा लिया न नमूना. अब इस पोस्ट के उपशीर्षक कहूँ या विषय पर आपको नहीं लेकर गया हूँ. जरा सब्र करो भाई! सब्र का फल मीठा ही मिलता है. अब चलें भी आइये मेरे हजूर, मेरे महबूब. कहीं देर ना हो जाए और सिरफिरा का दम निकल जाए. (क्रमश:)
#नोट:-यह पोस्ट "ब्लॉग की खबरें" के लिए लिखी गई थी, जो वहां पर प्रकाशित हो चुकी है.

मंगलवार, अक्टूबर 18, 2011

"सिरफिरा-आजाद पंछी" नवभारत टाइम्स पर भी

नवभारत टाइम्स पर पत्रकार रमेश कुमार जैन का ब्लॉग क्लिक करके देखें "सिरफिरा-आजाद पंछी" (प्रचार सामग्री)
क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं.वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है.उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये.एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं,प्रजा के दुःख दूर करना,सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना,उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेचली और किसी ने खबर.        
अगर आपके पास समय हो तो नवभारत टाइम्स पर निर्मित हमारे ब्लॉग पर अब तक प्रकाशित निम्नलिखित पोस्टों की लिंक को क्लिक करके पढ़ें. अगर टिप्पणी का समय न हो तो वहां पर वोट जरुर दें.  
हमसे क्लिक करके मिलिए : गूगल, ऑरकुट और फेसबुक पर
1. अभी तो अजन्मा बच्चा हूँ दोस्तो
2. घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय
3. घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय-2
4. स्वयं गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूं
5. अब आरोपित को ऍफ़ आई आर की प्रति मिलेगी
6. यह हमारे देश में कैसा कानून है?
7. नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ
8. देशवासियों/पाठकों/ब्लॉगरों के नाम संदेश
9. आलोचना करने पर ईनाम?
10. जब पड़ जाए दिल का दौरा!

15. "शकुन्तला प्रेस" का व्यक्तिगत "पुस्तकालय" क्यों?
16. आओ दोस्तों हिन्दी-हिन्दी का खेल खेलें
17. हिंदी की टाइपिंग कैसे करें?
18. हिंदी में ईमेल कैसे भेजें
18. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
19. अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये
20. क्या मैंने कोई अपराध किया है?

22. इस समूह में आपका स्वागत है
23. एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी
24. भगवान महावीर की शरण में हूँ
25. क्या यह निजी प्रचार का विज्ञापन है?
26. आप भी अपने मित्रों को बधाई भेजें
27. हमें अपना फर्ज निभाना है
28. क्या ब्लॉगर मेरी मदद कर सकते हैं ?
29. कटोरा और भीख
30. भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी

31. कैसा होता है जैन जीवन
32. मेरा बिना पानी पिए का उपवास क्यों?
33. दोस्ती को बदनाम करती लड़कियों से सावधान
34. शायरों की महफिल से

35. क्या है हिंसा की परिभाषा ? 
36. "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म 
37. "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म है-2 
 38. शुभदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
 39. नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं
40. आप दुआ करें- मेरी तपस्या पूरी हो
41. मुझे 'सिरफिरा' सम्पादक मिल गया 
42. मेरी लम्बी जुल्फों का अब "नाई" मलिक 
43. दुनिया की हकीक़त देखकर उसका सिर-फिर गया  
44.कोशिश करें-ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है 
45.मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह
47. कौन होता है आदर्श जैन?
48. अनमोल वचन-दो  
49. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर...
 50. सिरफिरा पर विश्वास रखें 
51. अनमोल वचन-तीन 
52. मद का प्याला -"अहंकार" 
53. अनमोल वचन-चार 
54. मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, हूँ और रहूँगा 
55. जन्म, मृत्यु और विवाह 
56. दिल्ली पुलिस में सुधार करें

 57. नेत्रदान करें, दूसरों को भी प्रेरित करें.
58. अभियान-सच्चे दोस्त बनो
59. दोस्ती की डोर बड़ी नाजुक होती है
60. फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम,अश्लीलता ज्यादा

   क्लिक करें, ब्लॉग पढ़ें :-मेरा-नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग,   "सिरफिरा-आजाद पंछी", "रमेश कुमार सिरफिरा", सच्चा दोस्त, आपकी शायरी, मुबारकबाद, आपको मुबारक हो, शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन, सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी, शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय और (जिनपर कार्य चल रहा है) शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच एवं  चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



यह हमारी नवीनतम पोस्ट है: