कल
राजस्थान की राजधानी जयपुर नगर में यही हुआ। जब दो वर्ष तक लगातार नगर निगम
जयपुर के चक्कर लगाने के बाद भी किसी ने पार्क की दुर्दशा पर ध्यान नहीं
दिया, तो बबिता वाधवानी ने पार्क की दीवार पर मोटे मोटे अक्षरों में उक्त
वाक्य लिख दिया जो तुरंत पार्षद के चाटुकारों की नजर में आ गया। बात पार्षद
तक पहुंची तो उसने तुरंत अपने लोगों को पार्क पर की गई उस वॉल पेंटिंग पर
काला रंग पुतवाने के लिए भेज दिया। जब उस महिला ने कालक पोत रहे लोगों से
सवाल किया, तो वे लोग जवाब देने के बजाय उलटा उसी से पूछने लगे कि क्या यह
आप ने लिखा है। उस महिला ने जवाब दिया कि हां, मैंने ही लिखा है और सच लिखा
है।
कुछ ही देर बाद पुलिस आई और बबीता को (जिसकी बेटी बीमार थी), बुलाकर थाने ले गई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जब बबीता ने पूछा कि उसका कसूर क्या है, तो पुलिस ने बताया कि 28 लोगों ने आप के खिलाफ शिकायत लिखकर दी है कि आप मोहल्ले की शांति भंग करना चाहती हैं। मजिस्ट्रेट ने भी जब बबीता से यही कहा कि 28 व्यक्तियों ने एक साथ हस्ताक्षर करके शिकायत दी है तो मिथ्या कैसे हो सकती है। इस पर बबीता ने मजिस्ट्रेट को इतना ही कहा कि पुलिस ने क्या इस बात की जांच की है कि इन हस्ताक्षर वाले व्यक्तियों का कोई अस्तित्व भी है या नहीं? और है तो क्या वे उस मोहल्ले के निवासी हैं जहां पार्क है?
बबीता को किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। लेकिन वह इस विवशता में कि घर जाकर अपनी बीमार बेटी को भी संभालना है, व्यक्तिगत बंधपत्र देकर रात को घर लौटी।
कुछ ही देर बाद पुलिस आई और बबीता को (जिसकी बेटी बीमार थी), बुलाकर थाने ले गई और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। जब बबीता ने पूछा कि उसका कसूर क्या है, तो पुलिस ने बताया कि 28 लोगों ने आप के खिलाफ शिकायत लिखकर दी है कि आप मोहल्ले की शांति भंग करना चाहती हैं। मजिस्ट्रेट ने भी जब बबीता से यही कहा कि 28 व्यक्तियों ने एक साथ हस्ताक्षर करके शिकायत दी है तो मिथ्या कैसे हो सकती है। इस पर बबीता ने मजिस्ट्रेट को इतना ही कहा कि पुलिस ने क्या इस बात की जांच की है कि इन हस्ताक्षर वाले व्यक्तियों का कोई अस्तित्व भी है या नहीं? और है तो क्या वे उस मोहल्ले के निवासी हैं जहां पार्क है?
बबीता को किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। लेकिन वह इस विवशता में कि घर जाकर अपनी बीमार बेटी को भी संभालना है, व्यक्तिगत बंधपत्र देकर रात को घर लौटी।
यह घटना बताती है कि राजसत्ता का एक मामूली अदना सा प्रतिनिधि, जो जनता द्वारा चुने जाने पर पार्षद बनता है, जनता के प्रति कितना जिम्मेदार है? वह जिम्मेदार हो या न हो, लेकिन नौकरशाही पर उसकी इतनी पकड़ अवश्य है कि वह उससे सवाल पूछने वाले को (चाहे कुछ घंटों के लिए ही सही) हिरासत में अवश्य पहुंचा सकता है। यह घटना यह भी बताती है कि हमारी पुलिस और कार्यकारी मजिस्ट्रेट रसूखदार की बात को तुरंत सुनते हैं और जनता को बिलकुल नहीं गांठते। खैर, कुछ भी हो, इस घटना ने बबिता को यह तो सिखा ही दिया कि अन्याय और निकम्मेपन के विरुद्ध कुछ कहना और करना हो तो अकेले दुस्साहस नहीं करना चाहिए, बल्कि नागरिकों के संगठनों के माध्यम से ही ऐसे काम करने चाहिए। अन्याय और निकम्मेपन के विरुद्ध संघर्ष का पहला कदम जनता को संगठित करना है।
-गुरुदेव दिनेशराय द्विवेदी जी के ब्लॉग से साभार.
काश
! यदि मैं वकील होता तो इस पर जयपुर हाईकोर्ट में याचिका जरूर डालता.
पत्रकार हूँ तो अपनी लेखनी का प्रयोग जरुर करूँगा और ज्यादा से ज्यादा
लोगों तक उपरोक्त घटना को जरूर पहुंचाने की कोशिश करूँगा. मैंने अपना फर्ज
निभा दिया. क्या आपने शेयर करके अपना फर्ज निभाया
? दोस्तों ! इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें. यह एक महिला पर हमला
नहीं बल्कि हर एक उस "वोटर" पर हमला है. जो इन नेताओं को अपने विकास
क्षेत्र के लिए वोट देता है. विकास कार्य ना करने पर पूछने का हक भी रखता
है. लेकिन जब वो पूछता है तो उसको जेल मिलती है या झूठे मुकद्दमों से दो-चार होना पड़ता है. आओ दोस्तों हम सब मिलकर हमारे देश के भ्रष्ट नेताओं को उनकी औकात बता दें और हमारे पैसों की सैलरी लेने वाले जजों को जनता की बात सुनने के लिए मजबूर कर दें. यहाँ बात इस बात की नहीं है कि हमने वोट नहीं दिया तो हम क्यों लड़ाई करें ? दोस्तों आज बबीता वाधवानी का उत्साह बढ़ाने की जरूरत है. यह तेरी-मेरी लड़ाई नहीं है बल्कि अन्याय के खिलाफ हम सब की लड़ाई है. यदि आप इसी तरह चुप बैठे रहे तो वो दिन दूर नहीं जब फिर से गुलाम होंगे और कीड़े-मकोडों की तरह से मारे जायेंगे. बाकी आपकी जैसी मर्जी वो कीजिए.
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