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आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "रमेश कुमार निर्भीक" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.

सोमवार, दिसंबर 05, 2011

मांगे मिले नहीं भीख, बिन मांगे मोती मिले

दोस्तों, मुझे बिन मांगे ही लड़कियां और महिलाएं अपना फ़ोन नम्बर क्यों दे देती हैं ? वैसे कहा जाता है कि-मांगे मिले नहीं भीख, बिन मांगे मोती मिले. क्या "सिरफिरा" लड़कियां और महिलाएं की नज़र में इतना विश्वास करने योग्य है ? क्या आप मानते हैं कि-एक बुध्दिजीवी व्यक्ति नारी का सम्मान करना जानता हैं ? इसलिए ही उस पर भरोसा करती हैं और अगर वो स्वार्थवश या किसी अन्य कारणों द्वारा विश्वासघात करता हैं. तब क्या उसको अपने आपको बुद्धिजीवी कहलवाने का अधिकार है ?
       दोस्तों, आप इस विषय (बात) पर अपने विचार जरुर व्यक्त करें. केवल पसंद का बटन न दबाये.
नोट:- जब मेरे दोस्त किसी महिला या लड़की का मुझसे फ़ोन नम्बर मांगते हैं, तब यहीं कहता हूँ कि-दोस्त मत मांग मुझसे उसका* फ़ोन नम्बर मेरी जान मांग लें. ख़ुशी से जान दे देंगे, मगर नम्बर नहीं देंगे. खुलूस से परखो, खुलूस के लिए हम तो जान भी दे देंगे दोस्ती के लिए.
*महिला या लड़की.

शुक्रवार, नवंबर 18, 2011

मुझ पर विश्वास भी रखें

फ़ेसबुक के कई हजार अकाउंट्स हैक हुए हैं (अधिकांश ID बंगलोर के हैं), जिनसे अश्लील और अभद्र वीडियो और फोटो भेजे जा रहे हैं…। किसी मित्र को यदि मेरे नाम या आई डी (ID) से ऐसा कोई अश्लील क्लिप अथवा फ़ोटो मिलता है तब उसे तुरन्त डिलीट करें और मुझ पर विश्वास रखें कि ऐसी "घटिया हरकत" मैंने नहीं की; न कभी भविष्य में कर सकता हूँ. जैसा आप सबको सनद होगा ही कि मैं पेशे से एक पत्रकार भी हूँ और मुझे तकनीकी ज्ञान भी ज्यादा नहीं है. पुलिस, सीबीआई एवं साइबर क्राइम विशेषज्ञ इस मामले की जाँच कर रहे हैं… अगर भविष्य में कभी ऐसा हो भी धैर्य रखें और मुझ पर विश्वास भी रखें और संभव हो तो मुझे फोन करके सूचित भी करें. कभी मेरे विरोधी साजिश करके मुझे आपकी नजरों में गिराने के लिए ऐसी ओछी हरकत कर सकते हैं.…। आपका अपना दोस्त-रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा

नोट:- इस संदेश में अपनी आवश्यकता अनुसार बदलाव करके अपने स्टेटस में भी डाले|

सोमवार, अक्टूबर 31, 2011

"सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म-2


प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट

   आज की पोस्ट के शीर्षक के अनुरूप ही एक पोस्ट यहाँ पर इस "क्या हमारी मीडिया भटक गयी है ?" शीर्षक से प्रकाशित हुई है. जो ब्लॉग जगत के लिए एक विचारणीय भी है और कुछ करके दिखाने के योग्य भी है. इस ब्लॉग की संचालक डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी  के लेखन का ही जादू है. जो उनकी एक पोस्ट पर 510 टिप्पणियाँ तक प्राप्त होती है. जिन्हें अधिक्तर लोग 'ZEAL' के नाम से जानते हैं. इनकी पोस्ट को पढकर मेरी दबी हुई आंकाक्षा उबल खा गई. तब मैंने अपनी बात भी वहाँ टिप्पणी के रूप में चिपका दी और शायद उसके कारण मेरा ब्लॉग जगत पर आने का उद्देश्य भी पूरा हो सकता है. इनकी अनेकों पोस्टें विचार योग्य है और कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती है. इसके गुलदस्ते का एक फुल कहूँ या पोस्ट यह भी है. जिसका शीर्षक 'ZEAL' ब्लॉग का उद्देश्य - [शब्दों में ढले जिंदगी के अनुभव] यह है.  आप यहाँ जरुर जाएँ और जैसे अपने भगवान के घर में जाकर हाजिरी लगते हैं. वहाँ पर भी हाजिरी जरुर लगाकर आये और भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब को ईमेल करके या यहाँ पर टिप्पणी करके जरुर बताये कि-इस नाचीज़ 'सिरफिरा-आजाद पंछी' को पिंजरे से आजाद करके कहूँ या भरोसा करके क्या कोई जुर्म किया है? 

अब थोड़ा चलते-चलते फिर आपका सिर-फिरा दूँ. ऐसा कैसे हो सकता है शुरू में फिराया है और लास्ट मैं ना फिरारूं तो मेरे नाम की सार्थकता खत्म नहीं हो जायेगी. 
 1. मैं पूरे ब्लॉग जगत से पूछता हूँ कि-क्या पूरा ब्लॉग जगत मैं यहाँ चलती आ रही गुटबाजी को खत्म करने के लिये कोई कार्य करना चाहेंगा या चाहता है? अगर इस बीमारी पर जल्दी से जल्दी काबू नहीं किया गया तब ब्लॉग जगत अपनी पहचान जल्दी ही खत्म कर देगा. अपने उपरोक्त विचार मेरी ईमेल (हिंदी में भेजे)  sirfiraark@gmail.com  पर भेजे. क्या मुस्लिम कहूँ मुसलमान सच नहीं लिख सकता हैं? क्या आप उसका सिर्फ उसके धर्म और जाति के कारण वहिष्कार करेंगे. आखिर क्यों हम हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई में बाँट रहे हैं? एक इंसान का सबसे बड़ा धर्म "इंसानियत" का नहीं होता है. इससे हम क्यों दूर होते जा रहे हैं?
2. अगर हिंदी ब्लॉग जगत के सभी ब्लोग्गर अपने एक-एक ब्लॉग को एक अच्छी "मीडिया-कलम के सच्चे सिपाही" के रूप में स्थापित करने को तैयार हो तो मैं 200 ब्लोग्गरों की यहाँ sirfiraark@gamil.com पर ईमेल(हिंदी में भेजे) आने पर उसके सारे नियम और शर्तों को बनाकर अपना पूरा जीवन उसको समर्पित करने के लिये तैयार हूँ. 
                     मैं आज सिर्फ अपनी पत्नी के डाले फर्जी केसों से परेशान हूँ. जिससे मेरे ब्लोगों को पढकर थोड़ी-सी मेरी पीड़ा को समझा जा सकता है. हर पत्रकार पैसों का भूखा नहीं होता, शायद कोई-कोई मेरी तरह कोई "सिरफिरा" देश व समाज की "सच्ची सेवा" का भी भूखा होता हैं, बस ब्लॉग जगत पर मेरी ऐसे पत्रकारों की तलाश है. यहाँ ब्लॉग जगत पर 1000-2000 शब्दों का लेख लिखकर या किसी ब्लॉग पर 15-20 वाक्यों की टिप्पणी करके सिर्फ चिंता करना जानते हो? 
                  मेरी माँ, बहन और बेटी के समान और मेरे पिता, भाई और बेटे के समान ब्लोग्गरों यह "सिरफिरा" आपको कह रहा है कि-"गुड मोर्निंग. जागो! सुबह हो गई" और "आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें.धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है. हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरी विचारधारा में "राजनीति" सेवा करने का मंच है" मुझे तुम्हारे साथ और लेखनी कहूँ या कम्प्यूटर के किबोर्ड पर चलने वाली वाली दस उंगुलियों की जरूरत है. तुम्हारा और मेरा सपना "समृध्द भारत" पूरा ना हो तब कहना कि-सिरफिरा तूने जो कहा था, वो नहीं हुआ. थोड़े नियम और शर्तें कठोर है. मगर किसी दिन भूखे सोने की नौबत नहीं आएगी. अगर ऐसा कभी हो तो मुझे सूचित कर देना. अपने हिस्से का भोजन आपको दे दूँगा. मुझे अपने जैन धर्म के मिले संस्कारों के कारण भूखा रहने की सहनशीलता कहूँ या ताकत प्राप्त है. एक बार मेरी तरफ कदम बढाकर तो देखो. किसी पीड़ा से दुखी नहीं होंगे और किसी सुख से वंचित नहीं होंगे. यह "सिरफिरा" का वादा है आपसे. 


     बोर कर देने वाली इतनी लंबी पोस्ट के लिए क्षमा कर देना. आपसे वादा रहा अगली पोस्ट इतना बोर नहीं करूँगा. पहली पोस्ट है ना और अनाड़ी भी हूँ.
 दोस्तों, मैं शोषण की भट्टी में खुद को झोंककर समाचार प्राप्त करने के लिए जलता हूँ फिर उस पर अपने लिए और दूसरों के लिए महरम लगाने का एक बकवास से कार्य को लेखनी से अंजाम देता हूँ. आपका यह नाचीज़ दोस्त समाजहित में लेखन का कार्य करता है और कभी-कभी लेख की सच्चाई के लिए रंग-रूप बदलकर अनुभव प्राप्त करना पड़ता है. तब जाकर लेख का विषय पूरा होता है. इसलिए पत्रकारों के लिए कहा जाता है कि-रोज पैदा होते हैं और रोज मरते हैं. बाकी आप अंपने विचारों से हमारे मस्तिक में ज्ञानरुपी ज्योत का प्रकाश करें. 

एक बार मेरी orkut और facebook प्रोफाइल देख लें, उसमें लिखी सच्चाई की जांच करें-फिर हमसे सच्ची दोस्ती करने की खता करें. मुझे उम्मीद है धोखेबाजों की दुनियां में आप एक अच्छा दोस्त का साथ पायेगें और निराश नहीं होंगे.
उपरोक्त लेख पर आई टिप्पणियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
नोट:-यह पोस्ट "ब्लॉग की खबरें" के लिए लिखी गई थी, जो वहां पर 20 जुलाई को प्रकाशित हो चुकी है. ब्लॉग जगत पर बड़ी-बड़ी बातें लिखने और कहने वाले किसी भी ब्लॉगर की आज तक कोई भी ईमेल नहीं आई हैं. इसे ही कहते हैं कि कथनी और करनी में फर्क.

शनिवार, अक्टूबर 29, 2011

"सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म


प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट

मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों - मुझे इस ब्लॉग "ब्लॉग की खबरें" के संचालक कहूँ या कर्त्ताधर्त्ता भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब ने मुझ नाचीज़ "सिरफिरा" को मान-सम्मान दिया हैं. उसका मैं तहे दिल से शुक्र गुजार हूँ. मेरे लिये यहाँ# ब्लॉग जगत में न कोई हिंदू है, न कोई मुस्लिम है, न कोई सिख और न कोई ईसाई है. मेरे लिये "सच" लिखना और "सच" का साथ देना मेरा कर्म है और "इंसानियत" मेरा धर्म है. चांदी से बने कागज के चंद टुकड़े मेरे लिये बेमानी है या कहूँ कि -भोजन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए भोजन है. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. तब कोई अतिसोक्ति नहीं होगी.

     भाई डॉ अनवर जमाल खान साहब ने मुझे सारी शर्तों व नियमों से पहले अवगत करके मुझे आप लोगों की सेवा करने का मौका दिया है. मैं अपने कुछ निजी कारणों से आपकी फ़िलहाल ज्यादा सेवा नहीं पाऊं. लेकिन जब-जब आपकी सेवा करूँगा. पूरे तन और मन से करूँगा. किसी ब्लॉग की या मंच की नियम व शर्तों में पारदशिता(खुलापन) बहुत जरुरी है. अगर आप यह नहीं कर सकते तब आप ब्लॉग या मंच के पाठकों से और उसके सहयोगियों से धोखा कर रहे हो. भाई खान साहब ने मेरी निजी समस्याओं पर चिंता व्यक्त करते हुए और उन्हें हल करने में मेरी व्यवस्ताओं को देखते हुए कहा कि -आपकी शैली मुझे पसंद है। आप ब्लॉग जगत की सूचना और पत्रकारिता के लिए आमंत्रित किए गए हैं ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ की ओर से। आप ब्लॉग जगत से जुड़ी कोई भी तथ्यपरक बात कहने के लिए आज़ाद हैं। आइये और हिंदी ब्लॉग जगत को पाक साफ़ रखने में मदद कीजिए। ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ का संपादक मैं ही हूं। आप इसके एक ज़िम्मेदार पत्रकार हैं। आप मुझे दिखाए बिना जब चाहे कुछ भी यहां छाप सकते हैं। यह मंच किसी के साथ नहीं है और न ही किसी के खि़लाफ़ है। यह केवल सत्य का पक्षधर है। हरेक विचारधारा का आदमी यहां ब्लॉग जगत में हो रही हलचल को प्रकाशित कर सकता है। आप अपनी समस्याओं के चलते एक भी पोस्ट न प्रकाशित करें. मगर आपकी नेक नियति का मैं कायल हूँ. इसलिए आप हमें यथा संभव योगदान दें. मुझे आपकी पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार रहेगा.

    मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों-जब किसी तुच्छ से "सिरफिरा" को इतना मान-सम्मान दें और अपने ब्लॉग या मंच के उद्देश्यों से अवगत कराने के साथ ही अपने ब्लॉग भाई की निजी समस्याओं का "निजी खबरे या बड़ा ब्लोग्गर" कहकर मजाक ना बनाये. बल्कि उन्हें हल करने के लिये अपनी तरफ से किसी प्रकार की मदद करने के लिये कदम बढ़ाता है. तब ऐसे ब्लॉग या मंच से "सिरफिरा" तन और मन से न जुडे. ऐसा कैसे हो सकता है.  

    मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों- आज मेरी पहली पोस्ट में कोई भी गलती हो गई हो तब पूरी निडरता से आलोचना करें. कृपया प्रशंसा नहीं. मेरी आलोचना करें. मैं यहाँ पर आलोचकों को प्राथमिकता दूँगा. मेरी प्रशंसा के लिए मेरे ब्लोगों की संख्या दस है. वहाँ अपनी पूर्ति करें. मैंने भाई खान साहब से जल्द ही एक पोस्ट डालने का वादा किया था. उस "कथनी" के लिए आपके सामने एक पोस्ट लेकर आया हूँ. किसी प्रकार की अनजाने में हुई गलती को "दूध पीता बच्चा" समझकर माफ कर देना. 

    बस अपनी बात यहाँ ही खत्म करता हूँ. फिर शेष तब .......जब चार यार(दोस्त, शुभचिंतक, आलोचक और तुच्छ "सिरफिरा") बैठेंगे.
     अब आप इन्तजार करें मेरी यहाँ अगली पोस्ट का जिसका उपशीर्षक (मैं हिंदू हूँ , मैं मुस्लिम हूँ  और मैं सिख-ईसाई भी हूँ) और प्रमुख्य शीर्षक "मेरा कोई दिन-मान नहीं है" इस पोस्ट से संबंधित क़ानूनी और तकनीकी जानकारी प्राप्त होने पर ही प्रकाशित होगी. इस पर शोध कार्य चल रहे हैं. थोड़ा सब्र करें.

    अरे ! मेरे दोस्तों/ शुभचिंतकों/आलोचकों मैंने आपको कहाँ उलझा दिया? अपनी बातों में आप कभी भी "सिरफिरा" की बातों में न आया करें. इसकी बातों में आकर आपका भी "सिर" फिर जायेगा. देखा लिया न नमूना. अब इस पोस्ट के उपशीर्षक कहूँ या विषय पर आपको नहीं लेकर गया हूँ. जरा सब्र करो भाई! सब्र का फल मीठा ही मिलता है. अब चलें भी आइये मेरे हजूर, मेरे महबूब. कहीं देर ना हो जाए और सिरफिरा का दम निकल जाए. (क्रमश:)
#नोट:-यह पोस्ट "ब्लॉग की खबरें" के लिए लिखी गई थी, जो वहां पर प्रकाशित हो चुकी है.

मंगलवार, अक्टूबर 18, 2011

"सिरफिरा-आजाद पंछी" नवभारत टाइम्स पर भी

नवभारत टाइम्स पर पत्रकार रमेश कुमार जैन का ब्लॉग क्लिक करके देखें "सिरफिरा-आजाद पंछी" (प्रचार सामग्री)
क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं.वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है.उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये.एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं,प्रजा के दुःख दूर करना,सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना,उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेचली और किसी ने खबर.        
अगर आपके पास समय हो तो नवभारत टाइम्स पर निर्मित हमारे ब्लॉग पर अब तक प्रकाशित निम्नलिखित पोस्टों की लिंक को क्लिक करके पढ़ें. अगर टिप्पणी का समय न हो तो वहां पर वोट जरुर दें.  
हमसे क्लिक करके मिलिए : गूगल, ऑरकुट और फेसबुक पर
1. अभी तो अजन्मा बच्चा हूँ दोस्तो
2. घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय
3. घरेलू हिंसा अधिनियम का अन्याय-2
4. स्वयं गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूं
5. अब आरोपित को ऍफ़ आई आर की प्रति मिलेगी
6. यह हमारे देश में कैसा कानून है?
7. नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ
8. देशवासियों/पाठकों/ब्लॉगरों के नाम संदेश
9. आलोचना करने पर ईनाम?
10. जब पड़ जाए दिल का दौरा!

15. "शकुन्तला प्रेस" का व्यक्तिगत "पुस्तकालय" क्यों?
16. आओ दोस्तों हिन्दी-हिन्दी का खेल खेलें
17. हिंदी की टाइपिंग कैसे करें?
18. हिंदी में ईमेल कैसे भेजें
18. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
19. अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये
20. क्या मैंने कोई अपराध किया है?

22. इस समूह में आपका स्वागत है
23. एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी
24. भगवान महावीर की शरण में हूँ
25. क्या यह निजी प्रचार का विज्ञापन है?
26. आप भी अपने मित्रों को बधाई भेजें
27. हमें अपना फर्ज निभाना है
28. क्या ब्लॉगर मेरी मदद कर सकते हैं ?
29. कटोरा और भीख
30. भारत माता फिर मांग रही क़ुर्बानी

31. कैसा होता है जैन जीवन
32. मेरा बिना पानी पिए का उपवास क्यों?
33. दोस्ती को बदनाम करती लड़कियों से सावधान
34. शायरों की महफिल से

35. क्या है हिंसा की परिभाषा ? 
36. "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म 
37. "सच" का साथ मेरा कर्म व "इंसानियत" मेरा धर्म है-2 
 38. शुभदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !
 39. नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं
40. आप दुआ करें- मेरी तपस्या पूरी हो
41. मुझे 'सिरफिरा' सम्पादक मिल गया 
42. मेरी लम्बी जुल्फों का अब "नाई" मलिक 
43. दुनिया की हकीक़त देखकर उसका सिर-फिर गया  
44.कोशिश करें-ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है 
45.मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह
47. कौन होता है आदर्श जैन?
48. अनमोल वचन-दो  
49. भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने पर...
 50. सिरफिरा पर विश्वास रखें 
51. अनमोल वचन-तीन 
52. मद का प्याला -"अहंकार" 
53. अनमोल वचन-चार 
54. मैं देशप्रेम में "सिरफिरा" था, हूँ और रहूँगा 
55. जन्म, मृत्यु और विवाह 
56. दिल्ली पुलिस में सुधार करें

 57. नेत्रदान करें, दूसरों को भी प्रेरित करें.
58. अभियान-सच्चे दोस्त बनो
59. दोस्ती की डोर बड़ी नाजुक होती है
60. फ्रेंड्स क्लब-दोस्ती कम,अश्लीलता ज्यादा

   क्लिक करें, ब्लॉग पढ़ें :-मेरा-नवभारत टाइम्स पर ब्लॉग,   "सिरफिरा-आजाद पंछी", "रमेश कुमार सिरफिरा", सच्चा दोस्त, आपकी शायरी, मुबारकबाद, आपको मुबारक हो, शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन, सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी, शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय और (जिनपर कार्य चल रहा है) शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच एवं  चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख

गुरुवार, सितंबर 29, 2011

क्या यह विज्ञापन है?

दोस्तों, आज आपको एक हिंदी ब्लॉगर की कथनी और करनी के बारें में बता रहा हूँ. यह श्रीमान जी हिंदी को बहुत महत्व देते हैं. इनके दो ब्लॉग आज ब्लॉग जगत में काफी अच्छी साख रखते हैं. अपनी पोस्टों में हिंदी का पक्ष लेते हुए भी नजर आते हैं. लेकिन मैंने पिछले दिनों हिंदी प्रेमियों की जानकारी के लिए इनके एक ब्लॉग पर निम्नलिखित टिप्पणी छोड़ दी. जिससे फेसबुक के कुछ सदस्य भी अपनी प्रोफाइल में हिंदी को महत्व दे सके, क्योंकि उपरोक्त ब्लॉगर भी फेसबुक के सदस्य है. मेरा ऐसा मानना है कि-कई बार हिंदी प्रेमियों का जानकारी के अभाव में या अन्य किसी प्रकार की समस्या के चलते मज़बूरी में हिंदी को इतना महत्व नहीं दें पाते हैं, क्योंकि मैं खुद भी काफी चीजों को जानकारी के अभाव में कई कार्य हिंदी में नहीं कर पाता था. लेकिन जैसे-जैसे जानकारी होती गई. तब हिंदी का प्रयोग करता गया और दूसरे लोगों भी जानकारी देता हूँ.जिससे वो भी जानकारी का फायदा उठाये. लेकिन कुछ व्यक्ति एक ऐसा "मुखौटा" पहनकर रखते हैं. जिनको पहचाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती हैं. आप आप स्वयं देखें कि-इन ऊँची साख रखने वाले ब्लॉगर के क्या विचार है उपरोक्त टिप्पणी पर. मैंने उनको जवाब भी दे दिया है. आप जवाब देकर मुझे मेरी गलतियों से भी अवगत करवाए. किसी ने कितना सही कहा कि-आज हिंदी की दुर्दशा खुद हिंदी के चाहने वालों के कारण ही है. मैं आपसे पूछता हूँ कि-क्या उपरोक्त टिप्पणी "विज्ञापन" के सभी मापदंड पूरे करती हैं. मुझे सिर्फ इतना पता है कि मेरे द्वारा दी गई उपरोक्त जानकारी से अनेकों फेसबुक के सदस्यों ने अपनी प्रोफाइल में अपना नाम हिंदी में लिख लिया है. अब इसको कोई "विज्ञापन' कहे या स्वयं का प्रचार कहे. बाकी आपकी टिप्पणियाँ मेरा मार्गदर्शन करेंगी.
नोट: मेरे विचार में एक "विज्ञापन" से विज्ञापनदाता को या किसी अन्य का हित होना चाहिए और जिस संदेश से सिर्फ देशहित होता हो. वो कभी विज्ञापन नहीं होता हैं.
यह है वो टिप्पणी-आओ हिंदी का सम्मान करें.
जो सदस्य फेसबुक की अपनी प्रोफाइल में अपना नाम देवनागरी हिंदी लिपि में लिखने के इच्छुक हैं, वो पढ़े !
प्रश्न:-मुझे देवनागरी में नाम लिखने से सर्च करने में परेशानी होती है....इसलिए मैंने रोमन में लिखा हुआ है.....जो भी नाम देवनागरी में लिखे हैं, वो सर्च करने पर नहीं मिलते हैं.
उत्तर:-अपनी प्रोफाइल में हिंदी में नाम कैसे लिखें:-आप सबसे पहले "खाता सेट्टिंग " में जाए. फिर आप "नेम एडिट" को क्लिक करें. वहाँ पर प्रथम,मिडिल व लास्ट नाम हिंदी में भरें और डिस्प्ले नाम के स्थान पर अपना पूरा नाम हिंदी में भरें. उसके बाद नीचे दिए विकल्प वाले स्थान में आप अपना नाम अंग्रेजी में भरने के बाद ओके कर दें. अब आपको कोई भी सर्च के माध्यम से तलाश भी कर सकता है और आपका नाम हर संदेश और टिप्पणी पर देवनागरी हिंदी में भी दिखाई देगा. अब बाकी आपकी मर्जी. हिंदी से प्यार करो या बहाना बनाओ.

श्रीमान जी की प्रतिक्रिया:-रमेश जी, नमस्ते! मेरे ब्लाग पर आप की टिप्पणियों का स्वागत है। लेकिन आप टिप्पणी करने के स्थान पर विज्ञापन छोड़ते हैं। यह स्पेम है और मुझे बिलकुल ठीक नहीं लगता। मैं ने पहले भी इस तरह की टिप्पणियाँ स्पेम कर दी थीं। पुनः कर रहा हूँ। आशा है स्वस्थ और सानंद होंगे। 
मेरी प्रतिक्रिया:-श्रीमान जी, मेरी टिप्पणी को विज्ञापन की क्षेणी में गिनने के लिए आपका धन्यवाद! जनहित के संदेश भी आपको विज्ञापन लगते हैं. तब मेरा इसमें कोई दोष नहीं है. आपका अपना ब्लॉग है. आप कुछ भी करें, यह आपके अधिकार क्षेत्र में आता है. मैं आपके सामने मूर्ख, अज्ञानी हूँ. आपका मुकाबला नहीं कर सकता हूँ. मेरे ख्याल से खासतौर पर आज की टिप्पणी को मैं समझता हूँ क़ि-जिससे आप स्पैम कर रहे है. वो विज्ञापन की परिभाषा के कोई भी मापदंड को पूरा नहीं करती हैं. बाकी आपकी मर्जी हैं. आप कुछ भी करें. आपका अपना ब्लॉग है. आप कुछ भी करें, यह आपके अधिकार क्षेत्र में आता है. मैं आपके सामने मूर्ख, अज्ञानी हूँ. आपका मुकाबला नहीं कर सकता हूँ.

रविवार, सितंबर 25, 2011

एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी

दोस्तों, उपरोक्त वार्तालाप द्वारा एक हिंदी प्रेमी की नाराजगी को देखें. आज हुई उपरोक्त वार्तालाप यहाँ डालने का उद्देश्य किसी अपमान करना नहीं है. केवल सिर्फ हिंदी चाहने वालों की "कथनी और करनी" को दर्शाने की मात्र एक छोटी-सी कोशिश है. फिर भी इस प्रतिक्रिया से कोई भी आहत होता है. तब उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ. गोपनीयता को देखते हुए एक हिंदी प्रेमी का नाम जाहिर नहीं कर रहा हूँ.
सिरफिरा : नमस्कार जी,क्या आप नाराज है हमसे
एक हिंदी प्रेमी: नहीं जी। नाराज क्यों होंगे? नमस्कार
सिरफिरा : दो दिन वार्तालाप के हमारे सारे प्रयास असफल हो गए थें. आप कैसे है.
एक हिंदी प्रेमी: ठीक हैं। हाँ, इधर फ़ेसबुक से दूर रह रहा हूँ। मैंने खुद को दोनों समूहों* से अलग कर लिया, क्योंकि दो दिन तक मैंने इन्तजार किया. लेकिन किसी ने अपना नाम तक देवनागरी में अपनी प्रोफाइल में नहीं लिखा। मुझे तो पहले से अन्दाजा था कि गम्भीर लोग कम ही आते हैं इन साइटों पर.
सिरफिरा : कोई बात नहीं लोगों को थोड़ा समय देना पड़ता है फिर बच्चा पैदा होते ही बोलने नहीं लग जाता है.बाकी आपकी मर्जी.
एक हिंदी प्रेमी : बच्चे की बात? भाषा पर मैं खूब जानता हूँ लोगों को। लोग गीत हिन्दी के सुनेंगे, फ़िल्म देखेंगे जी। गम्भीर नहीं होंगे। कई दिग्गज ब्लागरों से पाला पड़ा है.रमेश भाई, एक काम करें। रात में बात करते हैं।
सिरफिरा : ठीक है.
 
नोट: हिंदी के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से बनाये दो समूह "हम है अनपढ़ और गँवार जी" और "अनपढ़ और गँवार" की बात हो रही है.  
यहाँ पर कितने ब्लॉगर अपनी फेसबुक/ऑरकुट/गूगल की अपनी प्रोफाइल में अपना नाम देवनागरी हिंदी लिपि में लिखना पसंद करते/इच्छुक हैं?
1. मुझे हिंदी में लिखने पर खुशी होगी.....
2. हिंदी में लिखना जरुरी नहीं है....

3. हिंदी में लिखने पर परेशानी होती है...
4. हिंदी में लिखने की जानकारी नहीं है....
5. मुझे कुछ नहीं कहना है........
6. हिंदी में नाम लिखने से स्टेट्स घटता है.....
7. हिंदी में नाम लिखने पर लोग हमें "अनपढ़" समझते हैं......

(वैसे फेसबुक की अपनी प्रोफाइल में अपना नाम देवनागरी हिंदी लिपि में नाम लिखने की जानकारी और समस्या का समाधान यहाँ http://www.facebook.com/groups/anpadh/doc/172380636175360/ इस लिंक पर किया हुआ है)

सोमवार, सितंबर 12, 2011

हिंदी दिवस के सुअवसर पर-गूगल, ऑरकुट और फेसबुक के दोस्तों, पाठकों, लेखकों और टिप्पणिकर्त्ताओं के नाम एक बहुमूल्य संदेश


दोस्तों, मैं हिंदी में लिखी या की हुई टिप्पणी जल्दी से पढ़ लेता हूँ और समझ भी जाता हूँ. अगर वहां पर कुछ लिखने का मन करता है. तब टिप्पणी भी करता हूँ और कई टिप्पणियों का प्रति उत्तर भी देता हूँ या "पसंद" का बटन दबाकर अपनी सहमति दर्ज करता हूँ. अगर मुझे आपकी बात समझ में ही नहीं आएगी. तब मैं क्या आपकी विचारधारा पर टिप्पणी करूँगा या "पसंद" का बटन दबाऊंगा? कई बार आपके सुन्दर कथनों और आपकी बहुत सुन्दर विचारधारा को अंग्रेजी में लिखे होने के कारण पढने व समझने से वंचित रह जाता हूँ. इससे मुझे बहुत पीड़ा होती है, फिर मुझे बहुत अफ़सोस होता है.अत: आपसे निवेदन है कि-आप अपना कमेंट्स हिंदी में ही लिखने का प्रयास करें.
 आइये दोस्तों, इस बार के "हिंदी दिवस" पर हम सब संकल्प लें कि-आगे से हम बात हिंदी में लिखेंगे/बोलेंगे/समझायेंगे और सभी को बताएँगे कि हम अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी (और क्षेत्रीय भाषाओँ) को एक दिन की भाषा नहीं मानते हैं. अब देखते हैं, यहाँ कितने व्यक्ति अपनी हिंदी में टिप्पणियाँ करते हैं? अगर आपको हिंदी लिखने में परेशानी होती हो तब आप यहाँ (http://www.google.co.in/transliterate) पर जाकर हिंदी में संदेश लिखें .फिर उसको वहाँ से कॉपी करें और यहाँ पर पेस्ट कर दें. आप ऊपर दिए लिंक पर जाकर रोमन लिपि में इंग्लिश लिखो और स्पेस दो.आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा.जैसे-dhanywad = धन्यवाद.
  दोस्तों, आखिर हम कब तक सारे हिन्दुस्तानी एक दिन का "हिंदी दिवस" मानते रहेंगे? क्या हिंदी लिखने/बोलने/समझने वाले अनपढ़ होते हैं? क्या हिंदी लिखने से हमारी इज्जत कम होती हैं? अगर ऐसा है तब तो मैं अनपढ़, गंवार व अंगूठा छाप हूँ और मेरी पिछले 35 सालों में इतनी इज्जत कम हो चुकी है, क्योंकि इतने सालों तक मैंने सिर्फ हिंदी लिखने/ बोलने/ समझने के सिवाय कुछ किया ही नहीं है. अंग्रेजी में लिखी/कही बात मेरे लिए काला अक्षर भैंस के बराबर है.
आप सभी यहाँ पर पोस्ट और संदेश डालने वाले दोस्तों को एक विनम्र अनुरोध है.आप इसको स्वीकार करें या ना करें. यह सब आपके विवेक पर है और बाकी आपकी मर्जी. जो चाहे करें. आपका खुद का मंच या ब्लॉग है. ज्यादा से ज्यादा यह होगा. आप जो भी पोस्ट और संदेश अंग्रेजी में डालेंगे.उसको हम(अनपढ़,अंगूठा छाप) नहीं पढ़ पायेंगे. अगर आपका उद्देश्य भी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपना संदेश पहुँचाने का है और आपके लिखें को ज्यादा व्यक्ति पढ़ें. तब हमारे सुझाव पर जरुर ध्यान देंगे. आपकी अगर दोनों भाषाओँ पर अच्छी पकड़ है. तब उसको ध्दिभाषीय में डाल दिया करें. अगर संभव हो तो हिंदी में डाल दिया करें या फिर ध्दिभाषीय में डाल दिया करें.मेरा विचार हैं कि अगर आपकी बात को समझने में किसी को कठिनाई होती है. तब आपको हमेशा उस भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो दूसरों को आसानी से समझ आ जाये. बुरा ना माने. बात को समझे. जैसे- मुझे अंग्रेजी में लिखी बात को समझने में परेशानी होती है.
हिंदी भाषा के साथ ही देश और जनहित में महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. यहाँ पर क्लिक करके देखें कैसे नेत्रदान करना है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.
 अपने बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि-आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ . हम बस यह कहते कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें.धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है.
दोस्तों! मैं शोषण की भट्टी में खुद को झोंककर समाचार प्राप्त करने के लिए जलता हूँ फिर उस पर अपने लिए और दूसरों के लिए महरम लगाने का एक बकवास से कार्य को लेखनी से अंजाम देता हूँ. आपका यह नाचीज़ दोस्त समाजहित में लेखन का कार्य करता है और कभी-कभी लेख की सच्चाई के लिए रंग-रूप बदलकर अनुभव प्राप्त करना पड़ता है. तब जाकर लेख का विषय पूरा होता है.
इसलिए पत्रकारों के लिए कहा जाता है कि-रोज पैदा होते हैं और रोज मरते हैं. बाकी आप अंपने विचारों से हमारे मस्तिक में ज्ञानरुपी ज्योत का प्रकाश करें. हिंदी दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें और बधाई!  

शुक्रवार, अगस्त 05, 2011

कंप्यूटर बेचते समय कम्पनी और डीलर कहता हैं कि-24 घंटे में घर पर ही सर्विस देंगे

 दोस्तों, अब कुछ ऐसे कारणों से आपसे कुछ दिनों के लिए दूर हो रहा हूँ. कल रात मैं दो बजे ही अपना सारा कार्य खत्म करके कंप्यूटर बंद करके सोया था. मगर आज जब अपनी दिनचर्या निपटाकर सुबह 11 बजे कंप्यूटर शुरू किया. तब शुरू ही नहीं हो रहा है. फिर मैंने कम्पनी में अपनी शिकायत लिखवा दी. कंप्यूटर बेचते समय कहने को कम्पनी और डीलर कहता हैं कि-24 घंटे में घर पर ही सर्विस देंगे. मगर ऐसा होता नहीं है. आप मेरी भेजी ईमेल और उसके जवाब को देखकर जान लें. आज यह सूचना आपको कैफे से दे रहा हूँ कि जब कम्पनी मेरा कंप्यूटर ठीक करती है. तब तक आपसे मुलाकात करना मेरे लिए संभव नहीं है और न आपकी पोस्ट पढ़कर किसी भी प्रकार की टिप्पणी कर पाऊंगा. 
 HCL Touch टीम, HCL Infosystems Ltd.D-233, Sector-63 Noida-201301
 श्रीमान जी, मेरा कंप्यूटर आज सुबह से ख़राब है. मैंने उसकी शिकायत नं. 8400023938 करा दी. मगर कहा जा रहा कि-इंजिनियर मंगलबार तक आएगा. आपसे विनम्र अनुरोध है मेरी शिकायत पर जल्दी से जल्दी कार्यवाही करवाएं. गौरतलब कि-पिछले साल भी 4 अगस्त 2010 को कंप्यूटर भी ख़राब हुआ था. तब भी आपने मुझे बहुत मानसिक यातना दी और आपके लापरवाही के कारण मुझे बहुत नुक्सान हुआ था. तब भी आपने मेरा एक महीने में ठीक किया था. अगर आपने इस बार ऐसा ही लापरवाही भरा व्यवहार किया तो मुझे इस बार "उपयोक्ता फोरम" जाना होगा. शायद आपको याद हो कि मैं पेशे से पत्रकार हूँ. इस कारण से मेरे बहुत से कार्य रुक गए है. आपको यह ईमेल अपने दोस्त के यहाँ से कर रहा हूँ. कृपया मेरी शिकायत पर जल्दी से जल्दी कार्यवाही करें. मैं बहुत परेशान हूँ. मशीन सीरियल नं. 084az031130 है. नाम : रमेश कुमार जैन उर्फ़ सिरफिरा. ए-34-ए, शीश राम पार्क, सामने-शिव मंदिर, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059 फ़ोन: 09910350461, 09868262751, 011-28563826
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मंगलवार, जुलाई 19, 2011

क्या है हिंसा की परिभाषा ?

ज हिंसा का परिभाषा क्या व्यक्त करें. आज व्यक्ति का भौतिक वास्तुनों के मोह में फंसकर इतना निर्दयी हो गया है कि-कदम-कदम पर झूठ बोलना, धोखा देना, सच का गला घोट देना आदि जैसे अनैतिक कार्यों में लिप्त होकर अपनी आत्मा की आवाज को मारकर दूसरों को दुःख पहुँचाने की साजिश कर रहा है. आज का मनुष्य अपने दुःख में दुखी कम दूसरे के सुख में दुखी ज्यादा हैं. आज का मनुष्य अपने स्वार्थवश "इंसानियत" को अपने दिलों से बाहर निकाल कर फैक चुका है. दया, स्नेह और प्यार जैसे शब्द आज किताबों में बंद होकर रह गए है. अभी कुछ दिन पहले की बात हैं. एक छोटी सी बात पर चेन्नई में-वाइक से टक्कर होने पर एक चौराहे की लालबत्ती पर सारे आम एक व्यक्ति को जान से मार दिया गया था. वहाँ उसको कोई बचाने वाला नहीं आया या यह कहे चार आरोपियों को उस पर कोई दया नहीं आई. यह तो मात्र के घटना है. पूरे देश में ऐसी न जाने कितनी घटनाएँ होती हैं? 
 पिछले कुछ महीनों से चली आ रही जैन धर्म की तपस्या कहूँ या उपवास के दौरान मैंने जाना कि-मुझसे भी आने-अनजाने में कई बार हिंसा हुई है. जिसका पश्चाताप इन दिनों तपस्या करके कर भी रहा हूँ.
 नीचे दो नं. पर लिखा-झूठ बोलना आदि मुझे अपने पेशेगत बोलना या कहना पड़ा, क्योंकि जब मेरे थोड़े से झूठ बोल देने से किसी गरीब का भला हो रहा हो.तब ही मैंने झूठ बोला था या कठु वचन कहना. छह नं. पर लिखा-इन दिनों पत्नी द्वारा झूठे केसों में फँसा दिए जाने के कारण बहुत रोकर भी हिंसा की. आठ नं. पर लिखा-हर अनैतिक कार्य की अपने पेशेगत निंदा करके भी हिंसा की है, वैसे छबीस नं. पर लिखे अनुसार अपना फर्ज अदा ना करना भी हिंसा हैं. अपने फर्ज का कर्तव्य पूरा करने के उद्देश्य से मैंने अनेकों बार हिंसा की है. दस नं. पर लिखे अनुसार-मैंने अपनी अनेकों बार बढाई हाँककर भी हिंसा की. उसके पीछे मेरी "कथनी और करनी" में फर्क न होने के कारण लोगों में अच्छे संस्कारों का समावेश हो. इसलिए अपनी बढ़ाई भी अनेकों बार हांककर हिंसा की है.      
न्नीस नं. पर लिखे-अनुसार मैंने लगभग ३१ साल की उम्र तक अपनी कई इन्द्रियों पर काबू रखने के साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन किया. उसके बाद संसारिक जीवन के दायित्व के चलते एक इंद्री को कामदेव के हवाले कर जरुरी हो गया था और अब पिछले तीन सालों से उसपर भी काबू किया हुआ है. मगर फिर अपनी अन्य(मोह, माया, क्रोध आदि) इन्द्रियों को काबू रखते हुए जीवन रूपी बेल को आगे बढ़ाता रहा. हाँ, उस दौरान कभी-कभी अपने पेशेगत सरकारी व गैर सरकारी अधिकारीयों पर उनकी कार्यशैली के कारण क्रोध भी आया और उस द्वारा माफ़ी मांग लेने और अपनी कार्यशैली में सुधार कर लिये जाने पर क्षमा भी कर दिया. कई पत्रकारों की तरह से हर महीने मंथली आदि लेने की कोशिश नहीं की या उसकी नौकरी छीने का प्रयास नहीं किया था. 
 गवान महावीर स्वामी के संदेश-"जियो और जीने दो" का सच्चे दिल से पालन करने का प्रयास.  बीस नं. पर लिखे-अनुसार दबे हुए कलह को उखाड़ना हिंसा है. यह भी मुझे मज़बूरीवश भविष्य में पत्नी द्वारा डाले फर्जी केसों में अपने वचाव और भ्रष्ट न्याय व्यवस्था में "सच " को बताकर हिंसा करनी होगी. इस हिंसा के पीछे भी का उद्देश्य यह होगा कि "सच" की जीत हो और अन्य किसी पीड़ित को ऐसी पीड़ा ना सहनी पड़े. दोस्तों, इसके अलावा मैंने कभी कोई हिंसा नहीं की है. शुभचिंतकों और आलोचकों मैंने तो अपनी आने-अनजाने में हुई "हिंसा" का वर्णन कर दिया है. 
गर मेरे द्वारा की हिंसा क्षमा योग्य हो तो क्षमा कर देना. जब तक इस दिल और दिमाग में अपने आने-अनजाने में हुए पापों का प्रश्चाताप पूरा नहीं होता है. तब तक मेरी तपस्या यूँ ही चलती रहेंगी.आपकी हिंसा का उपाय आप जानो.
किसी को मारना या कष्ट देना मात्र ही हिंसा नहीं है. हिंसा के असंख्य रूप हमारे जीवन में इस प्रकार घुल गए हैं कि उन्हें पहचाना भी कठिन हो गया है.हिंसा के सूक्ष्म रूपों को दिग्दर्शन प्रस्तुत प्रकरण में कराया गया है.
1. किसी जीव को सताना,  हिंसा है. 2. झूठ बोलना, कठु बोलना हिंसा है. 3. दंभ करना, धोखा देना हिंसा है. 4. किसी की चुगली करना हिंसा है. 5. किसी का बुरा चाहना हिंसा है. 6. दुःख होने पर रोना-पीटना हिंसा है. 7. सुख में अंहकार से अकडना हिंसा है. 8. किसी की निंदा या बुराई करना हिंसा है. 9.गाली देना हिंसा है. 10. अपनी बढ़ाई हाँकना हिंसा है. 11. किसी पर कलंक लगाना हिंसा है. 12. किसी का भद्दा मजाक करना हिंसा है. 13. बिना किसी वजय किसी पर क्रोध करना हिंसा है. 14. किसी पर अन्याय होते देखकर खुश होना हिंसा है. 15. शक्ति होने पर भी अन्याय को न रोकना हिंसा है. 16. आलस्य और प्रमाद में निष्क्रिय पड़े रहना हिंसा है. 17. अवसर आने पर भी सत्कर्म से जी चुराना हिंसा है. 18. बिना बाँटे अकेले खाना हिंसा है. 19. इन्द्रियों का गुलाम रहना हिंसा है.  20. दबे हुए कलह को उखाड़ना हिंसा है. 21. किसी की गुप्त बात को प्रकट करना हिंसा है. 22. किसी को नीच-अछूत समझना हिंसा है.  23. शक्ति होने हुए भी सेवा न करना हिंसा है. 24. बड़ों की विनय-भक्ति न करना हिंसा है. 25. छोटों से स्नेह, सद्भाव न रखना हिंसा है. 26. ठीक समय पर अपना फर्ज अदा न करना हिंसा है. 27. सच्ची बात को किसी बुरे संकल्प से छिपाना हिंसा है. "राष्ट्र" संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार
 मैं बहुत ज्यादा हिंसक हूँ 
 नोट:-अपने  पेशेगत(पत्रकारिता) एक-दो दिन में नीचे लिखे लिंकों पर भी हिंसा की है. पढ़ने के इच्छुक हो तो जरुर पढ़ें.

शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

कैसा होता है जैन जीवन


हीं आदर्श जीवन है वही सच्चा जैन-जीवन है, जिसके कण-कण और क्षण-क्षण में धर्म की साधना झलकती हो. धर्ममय जीवन के आदर्शों का यह भव्य चित्र प्रस्तुत है-'जैन जीवन' में.
1. जैन भूख से कम खाता है. जैन बहुत कम बोलता है. जैन व्यर्थ नहीं हंसता है. जैन बडो की आज्ञा मानता है. जैन सदा उद्यमशील रहता है.

2. जैन गरीबों से नहीं शर्माता. जैन वैभव पाकर नहीं अकड़ता. जैन किसी पर नहीं झुंझलाता. जैन किसी से छल-कपट नहीं करता. जैन सत्य के समर्थन में किसी से नहीं डरता.

3. जैन हृदय से उदार होता है. जैन हित-मित मधुर बोलता है. जैन संकट-काल में हँसता है. जैन अभ्युदय में भी नम्र रहता है.

4. अज्ञानी को जीवन निर्माणार्थ ज्ञान देना मानवता है. ज्ञान के साथ विद्यालय आदि खोलना मानवता है.

5. भूखे प्यासे को संतुष्ट करना मानवता है. भूले हुए को मार्ग बताना मानवता है. जैन मानवता का मंगल प्रतीक है.
6. जहाँ विवेक होता है, वहाँ प्रमाद नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ लोभ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ स्वार्थ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ अज्ञान नहीं होता.जैन विवेक का आराधक होता है.

7. प्रतिदिन विचार करो कि मन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि वचन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि शरीर से क्या क्या दोष हुए हैं.

8. सुख का मूल धर्म है. धर्म का मूल दया है. दया का मूल विवेक है. विवेक से उठो. विवेक से चलो. विवेक से बोलो. विवेक से खाओ. विवेक से सब काम करो.

9. पहनने-ओढने में मर्यादा रखो. घूमने-फिरने में मर्यादा रखो. सोने-बैठने में मर्यादा रखो. बड़े-छोटो की मर्यादा रखो.

10. मन से दूसरों का भला चाहना परोपकार है. वचन से दूसरों को हित-शिक्षा देना परोपकार है. शरीर से दूसरों की सहायता करना परोपकार है. धन से किसी का दुःख दूर करना परोपकार है.  भूखे प्यासे को संतुष्ट करना परोपकार है. भूले को मार्ग बताना परोपकार है. अज्ञानी को ज्ञान देना या दिलवाना परोपकार है. ज्ञान के साधन विद्यालय आदि खोलना परोपकार है. लोक-हित के कार्यों में सहर्ष सहयोग देना परोपकार है.

11. बिना परोपकार के जीवन निरर्थक है. बिना परोपकार के दिन निरर्थक है. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ मनुष्यत्व नहीं. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ धर्म नहीं. परोपकार की जड़ कोमल हृदय है. परोपकार का फल विश्व-अभय है. परोपकार कल करना हो तो आज करो.  परोपकार आज करना हो तो अब करो .

12. बिना धन के भी परोपकार हो सकता है. किन्तु बिना मन के नहीं हो सकता.

13. धन का मोह परोपकार हीं होने देता. शरीर का मोह परोपकार नहीं होने देता.

14. परोपकार करने के लिए जो धनी होने की राह देखे वो मूर्ख है. बदले कि आशा से जो परोपकार करे वो मूर्ख है. बिना स्नेह और प्रेम के जो परोपकार करे वो मूर्ख है.

15. भोजन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए भोजन है. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. धन से जितना अधिक मोह उतना ही पतन. धन से जितना कम मोह उतना ही उत्थान.
"राष्ट्र" संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार

मंगलवार, जुलाई 05, 2011

कौन आदर्श जैन?

यह फोटो मेरी दस साल की भतीजी
ने मेरे मोबाईल से ले रखी है. मुझे
इसके बारें में आज ही जानकारी
हुई. जब आज अपने  म्मोरी कार्ड को
कम्प्युटरसे जोड़ा और देखकर हैरान हो
गया कि इतनी अच्छी फोटो ली हुई है..

 "जैन" कोई जाति नहीं,धर्म है.जैन-धर्म के सिध्दांतों में जो दृढ विश्वास रखता है और उनके अनुसार आचरण करता है, वही सच्चा जैन कहलाता है. जैन का जीवन किस प्रकार से आदर्श होना चाहिए, यह प्रस्तुत प्रकरण में दिखाया गया है.

1. जो सकल विश्व की शान्ति चाहता है, सबको प्रेम और स्नेह की आँखों से देखता है, वही सच्चा जैन है.

2. जो शान्ति का मधुर संगीत सुनाकर सबको ज्ञान का प्रकाश दिखलाता है, कर्त्तव्य-वीरता का डंका बजाकर प्रेम की सुगंध फैलाता है, अज्ञान और मोह की निंदा से सबको बचाता है, वही सच्चा जैन है.

3. ज्ञान, चेतना की गंगा बहाने वाला मधुरता की जीवित मूर्ति कर्त्तव्य-क्षेत्र का अविचल वीर योध्दा है, वही सच्चा जैन है.

4. जैन का अर्थ अजेय है, जो मन और इन्द्रियों के विकारों को जीतने वाला, आत्म-विजय की दिशा में सतत सतर्क रहने वाला है, वही सच्चा जैन है.

5. 'जैनत्व' और कुछ नहीं आत्मा की शुध्द स्थिति है. आत्मा को जितना कसा जाए, उतना ही जैनत्व का विकास. जैन कोई जाति नहीं धर्म है. न किसी भी देश, पन्थ और जाति का है. कोई आत्म-विजय के पथ का यात्री है, वही सच्चा जैन है.

6. जैन बहुत थोडा, परन्तु मधुर बोलता है, मानो झरता हुआ अमृतरस हो! उसकी मृदु वाणी,कठोर-से कठोर ह्रदय को भी पिघला कर मक्खन बना देती है! जैन के जहाँ भी पाँव पड़ें, वहीँ कल्याण फैल जाए! जैन का समागम, जैन का सहचार सबको अपूर्व शांति देता है! इसके गुलाबी हास्य के पुष्प, मानव जीवन को सुगन्धित बना देते हैं! उसकी सब प्रवृत्तियां, जीवन में रस और आनंद भरने वाली है, वही सच्चा जैन है.

7. जैन गहरा है, अत्यंत गहरा है. वह छिछला नहीं, छिलकने वाला नहीं. उसके ह्रदय की गहराई में,शक्ति और शांति का अक्षय भंडार है. धैर्य और शौर्य का प्रबल प्रवाह है.जिसमें श्रध्दा और निर्दोष भक्ति की मधुर झंकार है, वही सच्चा जैन है.

8. धन वैभव से जैन को कौन खरीद सकता है? धमकियों से उसे कौन डरा सकता है? और खुशामद से भी कौन उसे जीत सकता है? कोई नहीं, कोई नहीं. सिध्दांत के लिए काम पड़े तो वह पल-भर में स्वर्ग के साम्राज्य को भी ठोकर मार सकता है. 
9. जैन के त्याग में दिव्य-जीवन की सुगंध है. आत्म-कल्याण और विश्व-कल्याण का विलक्षण मेल है. जैन की शक्ति, संहार के लिए नहीं है. वह तो अशक्तों को शक्ति देती है, शुभ की स्थापना करती है और अशुभ का नाश करती है. सच्चा जैन पवित्रता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मृत्यु को भी सहर्ष सानन्द निमंत्रण देता है. जैन जीता है, आत्मा के पूर्ण वैभव में और मरता भी है वह आत्मा के पूर्ण वैभव में.
10.  जैन की गरीबी में संतोष की छाया है. जैन की अमीरी में गरीबों का हिस्सा है.

11.  जैन आत्म-श्रध्दा की नौका पर चढ़ कर निर्भय और निर्द्वन्द्व भाव से जीवन यात्रा करता है.विवेक के उज्जवल झंडे के नीचे अपने व्यक्तित्व को चमकता है. राग और द्वेष से रहित वासनाओं का विजेता 'अरिहंत' उसका उपास्य है. हिमगिरी के समान अचल एवं अडिग जैन दुनिया के प्रवाह में स्वयं न बहकर दुनियां को ही अपनी ओर आकृष्ट करता है. मानव-संसार को अपने उज्जवल चरित्र से प्रभावित करता है.अतएव एक दिन देवगण भी सच्चे जैन की चरण-सेवा में सादर सभक्ति मस्तक झुका देते हैं?

12.  जैन बनना साधक के लिए परम सौभाग्य की बात है. जैनत्व का विकास करना, इसी में मानव-जीवन का परम कल्याण है.
राष्ट्र  संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार
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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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