आज हाई प्रोफाइल मामलों को छोड़ दें तो किसी अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करा लेना ही एक "जंग" जीत लेने के बराबर है. आज के समय में प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करवाने के लिए किसी सांसद, विधायक या उच्च अधिकारी की सिफारिश चाहिए या रिश्वत दो या वकील के लिए मोटी फ़ीस होना बहुत जरुरी हो गया है. पिछले दिनों अपने ब्लॉग पर आने वालों के लिए मैंने एक प्रश्न पूछा था. क्या आप मानते हैं कि-भारत देश के थानों में जल्दी से ऍफ़आईआर दर्ज ही नहीं की जाती है, आम आदमी को डरा-धमकाकर भगा दिया जाता है या उच्च अधिकारियों या फिर अदालती आदेश पर या सरपंच, पार्षद, विधायक व ससंद के कहने पर ही दर्ज होती हैं? तब 100%लोगों का मानना था कि यह बिलकुल सही है और 35% लोगों ने कहा कि यह एक बहस का मुद्दा है. कहीं-कहीं पर ऍफ़आईआर दर्ज ना होने के मामले में कुछ जागरूक लोगों ने "सूचना का अधिकार अधिनियम 2005" का सहारा लेकर अपनी ऍफ़आईआर दर्ज भी करवाई हैं. मगर आज भी ऍफ़आईआर दर्ज करवाने को पीड़ित को बहुत धक्के खाने पड़ते हैं. उच्चतम व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति आँखें मूदकर बैठे हुए हैं, अगर वो चाहे (उनमें इच्छा शक्ति हो) तो कम से कम एफ.आई.आर. दर्ज करने के संदर्भ में ठोस कदम उठा सकते हैं.
यह हमारे देश का कैसा कानून है?
जो वेकसुर लोगों पर ही लागू होता है.
जिसकी मार हमेशा गरीब पर पड़ती है. इन अमीरों व राजनीतिकों को कोई सजा देने
वाला हमारे देश में जज नहीं है, क्योंकि इन राजनीतिकों के पास पैसा व
वकीलों की फ़ौज है. इनकी राज्यों में व केंद्र में सरकार है. पुलिस में इतनी हिम्मत नहीं है कि-इन पर कार्यवाही कर सकें.
बेचारों को अपनी नौकरी की चिंता जो है. कानून तो आम-आदमी के लिए बनाये जाते
हैं. एक ईमानदार व जागरूक इंसान की तो थाने में ऍफ़ आई आर भी दर्ज नहीं
होती हैं. उसे तो थाने, कोर्ट-कचहरी, बड़े अधिकारीयों के चक्कर काटने पड़ते
है या सूचना का अधिकार के तहत आवेदन करना पड़ता है. एक बेचारा गरीब कहाँ
लाये अपनी FIR दर्ज करवाने के लिए धारा 156 (3) के तहत कोर्ट में केस डालने
के लिए वकीलों (जो फ़ीस की रसीद भी नहीं देते हैं) की मोटी-मोटी फ़ीस और फिर
इसकी क्या गारंटी है कि-ऍफ़ आई आर दर्ज करवाने वाला केस ही कितने दिनों
में खत्म (मेरी जानकारी में ऐसा ही एक केस एक साल से चल रहा है) होगा. जब
तक ऍफ़ आई आर दर्ज होगी तब तक इंसान वैसे ही टूट जाएगा. उसके द्वारा उठाई
अन्याय की आवाज बंद हो जाएगी तब यह कैसा न्याय ?
एक छोटा-सा उदाहरण देखें :- अगर पुलिस
एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करे , दुर्व्यवहार करे , रिश्वत मांगे या
बेवजह परेशान करे , तो इसकी शिकायत जरूर करें।