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शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

कैसा होता है जैन जीवन


हीं आदर्श जीवन है वही सच्चा जैन-जीवन है, जिसके कण-कण और क्षण-क्षण में धर्म की साधना झलकती हो. धर्ममय जीवन के आदर्शों का यह भव्य चित्र प्रस्तुत है-'जैन जीवन' में.
1. जैन भूख से कम खाता है. जैन बहुत कम बोलता है. जैन व्यर्थ नहीं हंसता है. जैन बडो की आज्ञा मानता है. जैन सदा उद्यमशील रहता है.

2. जैन गरीबों से नहीं शर्माता. जैन वैभव पाकर नहीं अकड़ता. जैन किसी पर नहीं झुंझलाता. जैन किसी से छल-कपट नहीं करता. जैन सत्य के समर्थन में किसी से नहीं डरता.

3. जैन हृदय से उदार होता है. जैन हित-मित मधुर बोलता है. जैन संकट-काल में हँसता है. जैन अभ्युदय में भी नम्र रहता है.

4. अज्ञानी को जीवन निर्माणार्थ ज्ञान देना मानवता है. ज्ञान के साथ विद्यालय आदि खोलना मानवता है.

5. भूखे प्यासे को संतुष्ट करना मानवता है. भूले हुए को मार्ग बताना मानवता है. जैन मानवता का मंगल प्रतीक है.
6. जहाँ विवेक होता है, वहाँ प्रमाद नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ लोभ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ स्वार्थ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ अज्ञान नहीं होता.जैन विवेक का आराधक होता है.

7. प्रतिदिन विचार करो कि मन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि वचन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि शरीर से क्या क्या दोष हुए हैं.

8. सुख का मूल धर्म है. धर्म का मूल दया है. दया का मूल विवेक है. विवेक से उठो. विवेक से चलो. विवेक से बोलो. विवेक से खाओ. विवेक से सब काम करो.

9. पहनने-ओढने में मर्यादा रखो. घूमने-फिरने में मर्यादा रखो. सोने-बैठने में मर्यादा रखो. बड़े-छोटो की मर्यादा रखो.

10. मन से दूसरों का भला चाहना परोपकार है. वचन से दूसरों को हित-शिक्षा देना परोपकार है. शरीर से दूसरों की सहायता करना परोपकार है. धन से किसी का दुःख दूर करना परोपकार है.  भूखे प्यासे को संतुष्ट करना परोपकार है. भूले को मार्ग बताना परोपकार है. अज्ञानी को ज्ञान देना या दिलवाना परोपकार है. ज्ञान के साधन विद्यालय आदि खोलना परोपकार है. लोक-हित के कार्यों में सहर्ष सहयोग देना परोपकार है.

11. बिना परोपकार के जीवन निरर्थक है. बिना परोपकार के दिन निरर्थक है. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ मनुष्यत्व नहीं. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ धर्म नहीं. परोपकार की जड़ कोमल हृदय है. परोपकार का फल विश्व-अभय है. परोपकार कल करना हो तो आज करो.  परोपकार आज करना हो तो अब करो .

12. बिना धन के भी परोपकार हो सकता है. किन्तु बिना मन के नहीं हो सकता.

13. धन का मोह परोपकार हीं होने देता. शरीर का मोह परोपकार नहीं होने देता.

14. परोपकार करने के लिए जो धनी होने की राह देखे वो मूर्ख है. बदले कि आशा से जो परोपकार करे वो मूर्ख है. बिना स्नेह और प्रेम के जो परोपकार करे वो मूर्ख है.

15. भोजन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए भोजन है. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. धन से जितना अधिक मोह उतना ही पतन. धन से जितना कम मोह उतना ही उत्थान.
"राष्ट्र" संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार

मंगलवार, जुलाई 05, 2011

कौन आदर्श जैन?

यह फोटो मेरी दस साल की भतीजी
ने मेरे मोबाईल से ले रखी है. मुझे
इसके बारें में आज ही जानकारी
हुई. जब आज अपने  म्मोरी कार्ड को
कम्प्युटरसे जोड़ा और देखकर हैरान हो
गया कि इतनी अच्छी फोटो ली हुई है..

 "जैन" कोई जाति नहीं,धर्म है.जैन-धर्म के सिध्दांतों में जो दृढ विश्वास रखता है और उनके अनुसार आचरण करता है, वही सच्चा जैन कहलाता है. जैन का जीवन किस प्रकार से आदर्श होना चाहिए, यह प्रस्तुत प्रकरण में दिखाया गया है.

1. जो सकल विश्व की शान्ति चाहता है, सबको प्रेम और स्नेह की आँखों से देखता है, वही सच्चा जैन है.

2. जो शान्ति का मधुर संगीत सुनाकर सबको ज्ञान का प्रकाश दिखलाता है, कर्त्तव्य-वीरता का डंका बजाकर प्रेम की सुगंध फैलाता है, अज्ञान और मोह की निंदा से सबको बचाता है, वही सच्चा जैन है.

3. ज्ञान, चेतना की गंगा बहाने वाला मधुरता की जीवित मूर्ति कर्त्तव्य-क्षेत्र का अविचल वीर योध्दा है, वही सच्चा जैन है.

4. जैन का अर्थ अजेय है, जो मन और इन्द्रियों के विकारों को जीतने वाला, आत्म-विजय की दिशा में सतत सतर्क रहने वाला है, वही सच्चा जैन है.

5. 'जैनत्व' और कुछ नहीं आत्मा की शुध्द स्थिति है. आत्मा को जितना कसा जाए, उतना ही जैनत्व का विकास. जैन कोई जाति नहीं धर्म है. न किसी भी देश, पन्थ और जाति का है. कोई आत्म-विजय के पथ का यात्री है, वही सच्चा जैन है.

6. जैन बहुत थोडा, परन्तु मधुर बोलता है, मानो झरता हुआ अमृतरस हो! उसकी मृदु वाणी,कठोर-से कठोर ह्रदय को भी पिघला कर मक्खन बना देती है! जैन के जहाँ भी पाँव पड़ें, वहीँ कल्याण फैल जाए! जैन का समागम, जैन का सहचार सबको अपूर्व शांति देता है! इसके गुलाबी हास्य के पुष्प, मानव जीवन को सुगन्धित बना देते हैं! उसकी सब प्रवृत्तियां, जीवन में रस और आनंद भरने वाली है, वही सच्चा जैन है.

7. जैन गहरा है, अत्यंत गहरा है. वह छिछला नहीं, छिलकने वाला नहीं. उसके ह्रदय की गहराई में,शक्ति और शांति का अक्षय भंडार है. धैर्य और शौर्य का प्रबल प्रवाह है.जिसमें श्रध्दा और निर्दोष भक्ति की मधुर झंकार है, वही सच्चा जैन है.

8. धन वैभव से जैन को कौन खरीद सकता है? धमकियों से उसे कौन डरा सकता है? और खुशामद से भी कौन उसे जीत सकता है? कोई नहीं, कोई नहीं. सिध्दांत के लिए काम पड़े तो वह पल-भर में स्वर्ग के साम्राज्य को भी ठोकर मार सकता है. 
9. जैन के त्याग में दिव्य-जीवन की सुगंध है. आत्म-कल्याण और विश्व-कल्याण का विलक्षण मेल है. जैन की शक्ति, संहार के लिए नहीं है. वह तो अशक्तों को शक्ति देती है, शुभ की स्थापना करती है और अशुभ का नाश करती है. सच्चा जैन पवित्रता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मृत्यु को भी सहर्ष सानन्द निमंत्रण देता है. जैन जीता है, आत्मा के पूर्ण वैभव में और मरता भी है वह आत्मा के पूर्ण वैभव में.
10.  जैन की गरीबी में संतोष की छाया है. जैन की अमीरी में गरीबों का हिस्सा है.

11.  जैन आत्म-श्रध्दा की नौका पर चढ़ कर निर्भय और निर्द्वन्द्व भाव से जीवन यात्रा करता है.विवेक के उज्जवल झंडे के नीचे अपने व्यक्तित्व को चमकता है. राग और द्वेष से रहित वासनाओं का विजेता 'अरिहंत' उसका उपास्य है. हिमगिरी के समान अचल एवं अडिग जैन दुनिया के प्रवाह में स्वयं न बहकर दुनियां को ही अपनी ओर आकृष्ट करता है. मानव-संसार को अपने उज्जवल चरित्र से प्रभावित करता है.अतएव एक दिन देवगण भी सच्चे जैन की चरण-सेवा में सादर सभक्ति मस्तक झुका देते हैं?

12.  जैन बनना साधक के लिए परम सौभाग्य की बात है. जैनत्व का विकास करना, इसी में मानव-जीवन का परम कल्याण है.
राष्ट्र  संत-उपाध्याय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज द्वारा लिखित "जैनत्व की झाँकी" से साभार

शनिवार, जून 18, 2011

आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो

 आप कर सकें तो दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो
प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का और खुद की पोस्ट लिखने का फ़िलहाल समय नहीं हैं, अगर कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा और लिखूंगा भी.फ़िलहाल मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा.मौन व्रत के दौरान केवल अपने परिजनों से ही बात करूँगा. हो सकता हैं मेरी तपस्या के दौरान मौत भी हो जाए. लेकिन जैन धर्म के अब तक के इतिहास को देखते हुए कह रहा हूँ कि-आज तक भगवान महावीर स्वामी जी का नाम का गुणगान करते हुए किसी के प्राण नहीं निकले हैं. आप कर सकें तो दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो.अब देखते हैं कि-भगवान महावीर स्वामी जी मेरी कितनी तपस्या मंजूर करते हैं.
 मेरा इस समय आप सभी देशवासियों से यहीं कहना है कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा.फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा कार्य(कर्म) करो, तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण ही तुम्हें सारी दुनियां हमेशा याद रखे और इंसानियत की आवाज सुनो, इंसानियत वाले कर्म करो, इंसानियत का जज्बा पैदा करो, इंसानियत के लिए मर जाओ, मौत कल भी आनी है फिर क्यों नहीं आज ही इंसानियत के लिए अपना मिटटी शारीर का बलिदान कर दो और अपनी आत्मा को पवित्र बना लो. 
               मेरी पत्नी व सुसराल वालों के साथ ही न्यायप्रणाली, दिल्ली पुलिस और सरकार जितना मुझे परेशान करेंगी. उतने ही अपने शरीर को कष्ट देकर उनके दिलों में इंसानियत का जज्बा पैदा करूँगा.अगर फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे लिखें लिंकों/विषयों को मेरे ब्लोगों को पढ़कर मेरी विचारधारा और परेशानी को समझने की कोशिश करें.
 क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक       प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से  

हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें  हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं  अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. 

अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें  क्या है  आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?

यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है  क्या है आपकी विचारधारा?

पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव अपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये. 

लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है

मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें

कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें  मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है. 

मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए. मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ. 

  मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया था.

दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?

मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.

सोमवार, जून 13, 2011

मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास क्यों?

आज की पोस्ट "मेरा बिना पानी पिए आज(दिनांक 13 जून 2011 ) का उपवास है" मेरी पत्नी द्वारा किये गुजरे भत्ते के केस की जज शिवाली शर्मा के नाम है. उनको भी पता चल जाए की मैं कितना जिद्दी और हठी हूँ.मेरा  आज  36 घंटे  बिना  पानी  पिए  हुए  वाला  व्रत चल  रहा  है.आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है. इसके लिए आपको आपको उपरोक्त लैटर पढना होगा. उपरोक्त पोस्ट के माध्यम से यह पूछना चाहता हूँ कि-कानून इंसानों के लिए है या इंसान कानूनों के लिए. संविधान की कौन सी किताब में लिखा हैं कि-आरोपी व्यक्ति को अपना पक्ष रखने से वंचित किया जा सकता है. न्याय व्यवस्था कसाब को दामाद की तरह से क्यों पूज रही हैं और एक सभ्य व्यक्ति को उसके आरोपों की प्रति हिंदी में भी दिलवाने के कोई प्रयास नहीं किये जाते हैं.  

रविवार, जून 12, 2011

मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर एक प्रश्नचिन्ह है.

मैंने अपनी पिछली पोस्ट क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं  में लिखा था कि ब्लोगर अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ और ज भ्रष्टाचार की शिकायत करने पर आपके सारे काम रोक दिए जाते हैं और आपका सारे भ्रष्टाचारी एकत्रित होकर आपका शोषण करने लग जाते हैं. ऐसा मेरा अनुभव है, अभी 5 मई 2011 को तीस हजारी की लीगल सैल में मेरे साथ बुरा बर्ताव किया था और सरकारी वकील ने जान से मारने की धमकी पूरे स्टाफ के सामने दी थीं, क्योंकि काफी दिनों बीमार चल रहा हूँ. इसलिए उसकी उच्च स्तर पर शिकायत करने में असमर्थ था. मगर मैंने लिखा था कि  भ्रष्टाचारियों के हाथों मरने से पहले 10-20 भ्रष्टों को लेकर जरुर मरूँगा. आप सभी को यह मेरा वादा है. सरकारी वकील की शिकायत क्यों करनी पड़ी इसको देखने के लिए उसका लिंक  प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से  देखे.अब देखते हैं जैसे कल देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई में खोजी पत्रकारिता का सर्वनाम बन चुके मिड डे अखबार के वरिष्ठ अख़बारनवीस को उपनगरीय पवई के हीरानन्दानी इलाके में अपनी निर्भीक और बेबाक ख़बरों के लिए हमेशा सुर्ख़ियों में बने रहने वाले श्री ज्योति डे को अज्ञात हमलावरों ने दिनदहाड़े गोलियों से भून डाला था. मुझ "सिरफिरा" को कौन और कब कैसे मारता हैं? पता नहीं है मगर कहते हैं मरे हुए को कोई नहीं मारता हैं.वैसे मैंने कल ही राष्ट्रपति से इच्छा मुत्यु प्रदान करने की मांग की हैं. लेकिन जब तक जिन्दा हूँ तब अपने लिखे हुए "सच आखिर सच होता है, सांच को आंच नहीं, जो लिखूंगा सच लिखूंगा, सच के सिवाय कुछ नहीं, सच के लिए मैं नहीं या झूठ नहीं, आज तक निडरता से चली मेरी कलम, न बिकी हैं, न बिकेगी, मेरी मौत पर ही रुकेगी मेरी कलम" शब्दों का मान रखते हुए भ्रष्टाचारियों की शिकायत करता रहूँगा. मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है.
लीगल सैल से मिले वकील का शिकायती पत्र 

रविवार, मई 15, 2011

पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव

अपने  कार्य  के  दौरान  विचार  करते  हुए
ज वैसे तो घटित अपराधों के किये जाने की शैली(आधुनिक व संचार माध्यमों द्वारा) को देखते हुए पूरे संविधान और कानूनों में संशोधन करने की आवश्यकता हैं.लेकिन सन-1983 में दहेज पर कानून में संशोधन करने के बाद एक तरफा धारा 498A के आस्तिव में आने के बाद से कुछ दूषित मानसिकता के लोगों द्वारा दुरूपयोग करने के मामले देखने व सुनने में आ रहे हैं.पिछले कई सालों से इन कानूनों के दुरूपयोग करें जाने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तल्ख़ टिप्पणी करने के बाद गृह मंत्रालय के निर्देश पर विधि आयोग इसमें संशोधन करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया और कमेटी ने आम जनता,गैर सरकारी संस्थाओं, संस्थानों और अधिवक्ता संघों से उनके विचार और सुझाव आमंत्रित किये हैं.इसी सन्दर्भ में अपने अनुभव और विचारों से अपने कुछ बहुमूल्य सुझाव दें रहा हूँ.पिछले दिनों बहुत ज्यादा ओनर किलिंग घटनाओं को देखते हुए और समाज में गिरती नैतिकता के चलते हुए आज समय की मांग को देखते हुए कम से कम "विवाह" नामक संस्था से जुड़े सभी कानून(304B, 406,494,125 आदि) की धाराओं मैं संशोधन की आवश्कता हैं और ठोस व सख्त कानून बनाने की आज बहुत ज्यादा आवश्कता है.
             मैंने अपने अनुभवों या जो समाज में देखा है या झेला है उसी के आधार पर कुछ बहुमूल्य सुझाव दिए हैं.हो सकता हैं कुछ क़ानूनी शब्दों का ज्ञान न होने या याद न आने के कारण से कुछ कमियां रह गई हो. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.अपने अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि-असली पीड़ित चाहे लड़का हो या लड़की हो,उसको कुव्यवस्थाओं के चलते न्याय नहीं मिल पता हैं.जिन अधिकारीयों के हाथ में इन कानूनों पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी होती हैं.वो सभी मात्र थोड़े से पैसों के लिए अपना ईमान व ज़मीर बेच देते हैं.इनमें खासतौर पर कुछ सरकारी वकील,पुलिस और जज शामिल होते हैं.इनके द्वारा कानूनों को तोड़-मोड़ देने से असली पीड़ित व्यक्ति की न्याय के प्रति आस्था कम होती जा रही हैं.आज कम से कम "विवाह" नामक संस्था को बचाने के लिए विधियिका को सख्त से सख्त कानून बनाने चाहिए. इसमें "मीडिया" को भी अपनी समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए सही व्यक्ति की मदद करनी चाहिए.अब तक अक्सर देखा जा रहा है कि-जहाँ कोई बात महिला से जुड़ी घटना होती हैं.तब मीडिया उसका साथ देती हैं मगर पुरुष के मामले में उसका रवैया रुखा रहता है. 
अपने  विचारों को कलमबध्द करते  हुए
अपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन के सन्दर्भ में निम्नलिखित कुछ बहुमूल्य सुझावों को विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए थे.
1 आई.पी.सी. धारा 498A में कुछ उपधारा जोड़ने की भी आवश्कता है.जिससे दोषी बच न सकें और निर्दोष सजा न पायें.
2 आई.पी.सी. धारा 498A के साथ ही सहायक आई.पी.सी.धारा 498B भी बनाये जाने की आवश्कता है और इसमें भी कुछ उपधारा होनी चाहिए.जिससे हमारे देश में दहेज प्रथा के साथ ही जाति, गौत्र और भेदभाव जैसी फैली बुराइयों को खत्म किया जा सकें.
                      लेकिन किसी भी कानून में बदलाव मात्र से समाज और पीड़ित व्यक्ति को लाभ नहीं मिल सकता हैं. जब तक व्यवस्थिका के साथ ही कार्यपालिका में उपरोक्त कानूनों को लेकर सख्त दिशा-निर्देश नहीं बनाये जाते हैं.तब तक इनमें किया बदलाव निर्थक होगा.
आई.पी.सी.धारा 498A में निम्नलिखित होना चाहिए.
1.अगर कोई पति-पत्नी अलग रहते हो तब उसके परिवार के अन्य सदस्यों को इसमें मात्र पति के रिश्तेदार होने की सजा नहीं दी जानी हैं यानि उनका नाम शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
2.अगर कोई पति-पत्नी संयुक्त परिवार में रहते हैं.तब केस में ऐसे व्यक्तियों और महिलाओं का नाम शामिल नहीं होना चाहिए.जो खुद की देखभाल करने में सक्षम(गंभीर बीमार,चलने-फिरने के लायक न हो) न हो और नाबालिग बच्चों का नाम भी कहीं नहीं लिखा जाना चाहिए और खासतौर पर 14 साल से छोटे बच्चे का नाम बिलकुल भी नहीं हो चाहिए.बाकी सदस्यों का नाम पूरी जांच करके ही शामिल करने चाहिए.
3.उपरोक्त धारा में सजा और जुरमाना फ़िलहाल पर्याप्त है लेकिन इसका आरोप पत्र 180 दिनों में दाखिल किया जाना चाहिए. इन केसों का अंतिम फैसला अधिकतम पांच साल में हो जाना चाहिए यानि प्रथम सत्र, द्धितीय सत्र और तृतीय सत्र में आधिक से अधिक 18 महिने में फैसला होना चाहिए. जैसे-सत्र अदालत,हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आदि.
4.ऐसे मामलों में महिला द्वारा पति का घर छोड़े हुई अंतिम तारीख से एक साल बीत जाने के बाद ही दोनों पक्षों को आवेदन करने पर तलाक मिल जाना चाहिए.मगर पति पर मामले की गंभीरता को देखते हुए उपरोक्त केस चलता रहना चाहिए.इससे दोनों पक्षों को नया जीवन जीने का मौका मिलना चाहिए.इससे वैवाहिक समस्यों के चलते होने वाली आत्महत्या की संख्या में काफी कमी आएगी.इस सन्दर्भ में विदेशों बनाये कानूनों को देखा जाना चाहिए.वहां पर वैवाहिक मामलों जल्दी से निपटारा हो जाता है.चाहे तलाक हो या अन्य(घरेलू हिंसा) कोई विवाद हो.
5.इसे मामलों में महिला अधिक से अधिक 90 दिनों में ही मामला दर्ज करवाएं.गर्भवती,शारीरिक(चोट लगी,जली हुई स्थिति में)और मानसिक रूप से बीमार(डाक्टर द्वारा घोषित-बोलने या अपना पक्ष रखने में असमर्थ)महिला अधिकतम पति का घर छोड़ने की अंतिम तारीख से एक साल में मामला दर्ज करवाएं.अक्सर होता यह है महिला के परिजन सौदेबाजी में लगे रहते हैं और मुंह मांगी रकम न मिलने पर ही केस दर्ज करवाते हैं.
6.सिर्फ ऐसे मामलों में अगर पति द्वारा महिला को शारीरिक (गुप्त अंगों पर काटना, जलाना, किसी वस्तु से गहरी चोट पहुंचा रखी हो) और मानसिक(कैद करके रखा हो, नशीली दवाइयां दी गई हो, वेश्यावृति अपनाने के लिए मजबूर किया हो, अश्लील फोटो या फिल्म बने हो और इन्टरनेट या संचार माध्यमों में प्रसारित की हो या अन्य कोई ऐसा आधुनिक तरीका जिससे उसका मानसिक संतुलन खराब हो जाता/गया हो)रूप से जख्मी किया हो. उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और उसको अग्रिमी जमानत नहीं मिलनी चाहिए.कई बार ऐसे अवसर आते हैं कि-पुरुष पत्रकार और सभ्य व्यक्ति पीड़ित की हालात भी नहीं देख सकता है. जैसे-वक्षों/जांघों पर काटना, योनि और नितम्बों को सिगरेट, लोहे के सरिया या चिमटे से जलाना आदि.इसलिए ऐसे मामलों को बहुत सख्ती से निपटने की आवश्कता है.
7.पति-पत्नी,परिजन,दोस्तों द्वारा महिला-पुरुष पर तेजाब फैंकवाने या महिला-पुरुष की बहन या भाई का अपहरण करना और उसकी बहन से या किसी महिला अन्य महिला से शादी करवाने के लिए मजबूर करवाना या अन्य महिलाओं से संबंध बनाना या उसे अपने साथ रखना,जानलेवा हमला करवाना और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-क में वर्णन नियम.
(क) जानबूझ कर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिस से उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को (जो मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने की संभावना है;या
8.घरेलू उपयोग में आने वाली चीजों की मांग पर या अपनी ख़ुशी से दिए जाने पर मामला दर्ज नहीं होना चाहिए.ऐसी वस्तुएं जो दोनों पति-पत्नी व बच्चों के प्रयोग में सहायक हो.कार, मोटर साईकिल आदि के साथ ही कीमती चीजें और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-ख में वर्णन नियम.
(ख) किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उस को या उस के किसी नातेदार को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरी करने के लिए उत्पीड़ित किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई नातेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है।
तिलक नगर में स्थित गुरुद्वारा में अरदास करते  हुए

9.वैवाहिक मामलों को पुलिस केस दर्ज करने से पहले पति व महिला के रहने के स्थान पर जाकर आस-पडोस, R.W.A और सामाजिक स्तर की छानबीन करनी चाहिए.ऐसी जांचें थानों में बैठकर नहीं होनी चाहिए.पुलिस का रवैया ऐसे मामलों में दोस्तना(कोई पेशेवर अपराधी नहीं है इसका खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए) हो चाहिए.किसी सभ्य व्यक्ति का काम और समय बार-2 थाने में बुलाकर नष्ट न करें.किसी प्रकार की शिकायत या फैसले की प्रति दोनों को जारी करें.
10.वैवाहिक मामलों के लिए पुलिस में अलग विभाग हो.जैसे-अब वोमंस सैल है.मगर इसमें महिला-पुरुष को वैवाहिक जीवन को सुखमय चलने के लिए मनोचिकित्सक, क़ानूनी-वैवाहिक सलाहकारों की नियुक्ति होनी चाहिए.महिला-पुरुष की शिकायत पर दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए और श्रीमती किरण वेदी द्वारा अभिनीत कार्यक्रम "आपकी कचहरी"के फोर्मेट पर उनकी शिकायत पर की कार्यवाही की अपनाई गई पूरी प्रक्रिया की वीडियों फिल्म बननी चाहिए.किसी प्रकार की शिकायत या फैसले की प्रति दोनों को जारी करें.
11. सुझाव नं.6 में उल्लेखित क्रूरता(जो प्रथम दृष्टि में दिखाई देती है)को छोड़कर अगर जब तक ठोस सबूत न हो तब आरोपित व्यक्तियों को अग्रिमी जमानत दे देनी चाहिए.ऐसे मामलों में जज पक्षपात का व्यवहार न करें.
12.दहेज या घरेलू वस्तुएं दोनों पक्षों की सहमति से लिया-दिया जाता है.इसलिए उसकी सूची पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर होने चाहिए.यह न हो महिला पक्ष ने जो सामान दिया ही नहीं हो,उसको भी अपनी सूची में लिखवा दें और स्त्रीधन का निपटारा वोमंस सैल या मध्यस्थता में ही होना चाहिए.अगर महिला पक्ष स्त्रीधन पर नहीं मानता है.तब उनके पक्ष की आय के स्रोतों की जांच इनकम टैक्स विभाग द्वारा की जानी चाहिए.इससे शादी-विवाह में बहुत ज्यादा खर्च किया जा रहा काला धन पर रोक लगाईं जा सकती हैं.
13.जब तक किसी महिला को मानसिक व शारीरिक गंभीर चोट न लगी.तब उसको तलाक की एवज में किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिलवाना चाहिए.कई बार ऐसा होता है कि-महिला की जबरदस्ती शादी कर दी जाती हैं या यह कहे उनके किसी से प्रेम संबंध होते हैं.तब उपरोक्त महिला झूठे आधार तैयार करती हैं और इससे साजिश रचकर शादी करने वाली महिला और माता-पिता पर रोक लग सकेंगी.
 अपनी  पत्रिका  की  प्रचार  सामग्री  वितरण करते  हुए
   अगर इन उपायों का प्रयोग किया जाता है. तब "विवाह" नामक संस्था पर लोगों का विश्वास कायम होने के साथ ही महिला के ऊपर किये जा रहे अत्याचारों पर रोक लग जाएँगी और कोई दोषी बचेगा नहीं और निर्दोष व्यक्ति शोषित नहीं होगा.इससे असली पीड़ित महिला को न्याय मिलेगा और न्यायलयों में फर्जी केसों का बोझ नहीं बढेगा.ऐसा मुझे विश्वास है.
आई.पी.सी.धारा498B में निम्नलिखित होना चाहिए.
1.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों को सरकार घरेलू सामान के लिए या वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पूरी सुरक्षा के साथ ही एक लाख रूपये की राशि दहेज प्रथा,जाति,धर्म का भेदभाव को मिटाने   में योगदान देने के एवज में सहायता के रूप में उपलब्ध करवाएं और उनके विवाहित जीवन पर सामाजिक स्तर या थाना स्तर पर नजर रखें.कहीं ऐसा न हो कि-पैसों के लालच में इसका दुरूपयोग न कोई करें.  
2.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में महिला के परिजनों द्वारा दखलांदाजी करने पर या वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाने के लिए किये जाने वाले ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए.
3.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में अगर स्वंय महिला या अपने परिजनों व किसी के बहकाने पर वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाती है या अपनी जिम्मेदारियों और दायित्व का पालन नहीं करती हैं या किसी अनैतिक संबंध कायम करने का कार्य करती हैं.तब ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए और साथ में पति का कैरियर चौपड़ करने,प्रतिष्टा धूमिल करने और न्याय प्रक्रिया का समय ख़राब करने के जुर्म में कम से कम पांच लाख का जुरमाना लिया जाना चाहिए.इसका कुछ भाग पीड़ित पक्ष की स्थिति को देखते हुए दिया जाना चाहिए.
4.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत मामलों में पति द्वारा पत्नी या अपने सुसरालियों की पुलिस में की गई शिकायत पर जल्दी कार्यवाही होनी चाहिए और फैसले की कापी दोनों को दी जानी चाहिए और पति के शादी के पहले 7 सालों में वैवाहिक कारणों से आत्महत्या करने के सन्दर्भ में पत्नी और उसके परिजनों के खिलाफ केस दायर करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए और इसमें पति के परिजनों को सरकारी सहयता के रूप में मुआवजा दिलवाने के साथ ही अपने खर्च पर सरकारी वकील या वकील की फ़ीस आदि की व्यवस्था करें.  
5.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में जो पति-पत्नी बच्चों को अपने साथ या पास रखेगा. उसका पालन-पोषण उसकी जिम्मेदारी होगी.उसको दूसरे व्यक्ति से मुआवजा मांगने का हक़ नहीं होगा.किसी मामले में पिता-माता नशेडी या अपराधिक प्रवृति का हो और माँ-पिता किन्ही कारणों से कमाने में असमर्थ हो.तब दूसरे पक्ष की पालन-पोषण की जिम्मेदारी होगी.
कानून के दुरूपयोग से सभ्य व्यक्ति रूप बदलकर रहने को मजबूर
 अगर इन उपायों का प्रयोग किया जाता है. तब "विवाह" नामक संस्था पर लोगों का विश्वास कायम होने के साथ ही पुरुष के ऊपर किये जा रहे अत्याचारों पर रोक लग जाएँगी और कोई दोषी बचेगा नहीं और निर्दोष व्यक्ति शोषित नहीं होगा. इससे असली पीड़ित पुरुष को न्याय मिलेगा और न्यायलयों में फर्जी केसों का बोझ नहीं बढेगा.ऐसा मुझे विश्वास है.

शनिवार, मई 14, 2011

कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है


अपने चुनाव चिन्ह "कैमरा"के साथ सिरफिरा 
देश में लगभग 6 करोड़ लोग हैं.जो नियमित इंटरनेट का उपयोग करते हैं. देश की कुल जनसंख्या के लिहाज से यह संख्या कुछ खास नहीं है, लेकिन संसाधनों की उपलब्धता को देखें तो यह संख्या कम भी नहीं है. छह करोड़ लोगों की इस संख्या में दिन दूनी रात-चौगुनी बढ़ोत्तरी भी हो रही है. ऐसे समय में ब्लॉग का जन्म और प्रसार वैकल्पिक मीडिया की तलाश में लगे लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. कुछ लोगों की मेहनत, समझ और सूझबूझ का परिणाम है कि-यह तकनीकि रूप से लगातार और अधिक सक्षम और कारगर होता जा रहा है.
                     एक बात पक्की है कि जिस वैकल्पिक मीडिया की बात हम लोग करते आ रहे थे, वह यही है. जहां अभिव्यक्ति की इतनी अधिक स्वतंत्रता है कि-आप गाली-गलौज भी कर सकते हैं. लेकिन क्या हमें इस स्वतंत्रता का दुरूपयोग करना चाहिए या फिर सचमुच हमारे पास हिन्दी में लिखने के लिए कुछ ऐसा है ही नहीं,  जो समूह के हित के लिए हम लिख सकें? आमतौर पर हम इस माध्यम को अपनी कला, हुनर, बुद्धि, भड़ास आदि निकालने के लिए कर रहे हैं. पितामह ब्लागरों से लेकर नये-नवेले ब्लागरों तक एक बात साफ तौर पर दिखती है कि शुरूआत जहां से होती है वहां से सीढ़ी उत्थान की ओर नहीं पतन की ओर घूम जाती है. यह छीजन अनर्थकारी है.

                    ब्लाग की दुनिया में कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अव्वल तो हम सूचना के बारे में जानते ही नहीं है. जिन सूचनाओं से हम अपनी विद्वता का सबूत देते हैं वे मूलतः टीवी, अखबार और इंटरनेट की जूठन होती है.यानि हम भी उसी खेल के हिस्से होकर रह जाते हैं. जिनके आतंक से बाहर आने के लिए हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे भारी-भरकम शब्दों की माला जपते हैं. देश के कुछ अखबार और टीवी चैनल खबरों की परिभाषा बदलने में लगे हुए हैं. यह उनकी समझ और मजबूरी हो सकती है, हमारे सामने क्या मजबूरी है? कोई मजबूरी नहीं दिखती. यह तो शुद्धरूप से हमारी समझ है कि-हम इस वैकल्पिक मीडिया का क्या उपयोग कर रहे हैं?
          हिंदी ब्लाग दुनिया खंगालने के बाद कुछ ब्लाग ऐसे दिखते हैं, जिनमें काम की जानकारी होती है. ज्यादातर अपनी भड़ास निकालते हैं. गुस्सा है तो जरूर निकालिए. लेकिन उसको कोई तार्किक रूप दीजिए. उसका कोई आधार बनाईये. आप गुस्सा हैं इसमें दो राय नहीं, लेकिन आपके गुस्से से मैं भला क्यों गुस्सा हो जाऊं? लिखनेवाले वाले का धर्म है कि वह अपने गुस्से को पी जाए. वह गुस्सा उसके लिखने में ऐसे उतर आये कि पढ़ने वाले की भौंहे तन जाए. इसके साथ ही एक काम और करना चाहिए. अपने आस-पास ऐसे बहुत से लोग होते हैं,  जिन्हें ब्लाग का रास्ता दिखाया जा सकता है. 
             मैं इस दुनिया में कुल नौ महीने पुराना हूं. मैंने अब तक दो लोगों को ब्लाग बनाने और चलाने के लिए प्रेरित किया है, कई लोगों को अपनी पोस्टों द्वारा देवनागरी की हिंदी लिपि लिखनी सिखाने में मदद की. मैंने अनेक लोगों को छोटी-मोटी जानकारी फ़ोन पर भी दी.इसलिए मैंने अपने फ़ोन नं. भी ब्लॉग पर दे रखे हैं, क्योंकि मेरा विचार है कि-जिस प्रकार मुझे शुरुयात जानकारी न होने से परेशानी हुई थी. अगर किसी को कोई परेशानी हो तो जितनी भी मुझे जानकारी हो दे सकूँ. आज वे दोनों आज ब्लाग की दुनिया में शामिल हो चुके हैं. मुझे लगता है कि अगर हम ऐसे दो-चार लोगों को जोड़ सकें. जो आगे भी दो-चार लोगों को जोड़ने की क्षमता रखते हैं तो परिणाम आशातीत आयेंगे.आप बताईये अपने-आप को कौन अभिव्यक्त नहीं करना चाहेगा. शुरूआत में कुछ ब्लागर मित्रों ने मुझे प्रोत्साहित न किया होता, मेरी तकनीकि तौर पर मदद न की होती और अभी भी कर रहे हैं. एक बार मैं भी जैसे-तैसे घूमते-फिरते यहां पहुंचा था. वैसे ही टहलते-घूमते बाहर चला जाता. उन्हीं मित्रों के सहयोग का परिणाम है कि मैं यहां टिक गया और ब्लाग में मुझे वैकल्पिक मीडिया नजर आने लगा है.
                    टी.वी. ने खबरों के साथ जैसा मजाक किया है, उससे खबर की परिभाषा पर ही सवाल खड़ा हो गया है. मैं कहीं से यह मानने के लिए तैयार नहीं हूं कि टी.वी. और पत्रकारिता का कोई संबंध है. हमें किसी से ज्यादा गहराई की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. लेकिन यह भी नहीं हो सकता कि-कोई इतना हल्का हो जाए कि उसके होने-न-होने का मतलब ही समाप्त हो जाए. टीआरपी के लिए टी.वी.चैनल खोलते हैं. यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.

          ब्लागर इसमें हस्तक्षेप कर सकते हैं. खबर की परिभाषा ठीक बनाए रखना है, तब हमें यह करना भी चाहिए. नहीं तो कल जब ब्लागरों की दुनिया इतनी बड़ी हो जाएगी कि- इसका ओर-छोर नहीं होगा. तब यह कमी दंश के रूप में चुभेगी कि-काश उस समय सोच लिया होता, दुर्भाग्य से तब हम समय के बहुत आगे निकल चुके होंगे. हमारी समझ ब्लागजगत का सीमांकन कर चुका होगा और हम खुद को ही छला हुआ महसूस करेंगे. (क्रमश:)  (लेख का कुछ भाग संकलन किया हुआ है इसका सन्दर्भ फ़िलहाल याद नहीं है, मगर लेख का उद्देश्य जनहित है)

शनिवार, मई 07, 2011

क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं

अक्सर मिलने वोली धमकियों से परेशान
 सन  2008 में तख्ती पहनकर घूमता सिरफिरा 
हमारे देश का हर दूसरा नागरिक यह सोचता है कि-भारत में शहीद भगत सिंह, नेताजी सुभाष  चन्द्र बोस आदि नौजवान पैदा हो, मगर हमारे घर में नहीं. आखिर क्यों नहीं करना चाहते/चाहती पैदा ऐसे नौजवानों को?
 ज भ्रष्टाचार की शिकायत करने पर आपके सारे काम रोक दिए जाते हैं और आपका सारे भ्रष्टाचारी एकत्रित होकर आपका शोषण करने लग जाते हैं. ऐसा मेरा अनुभव है, अभी 5 मई 2011 को तीस हजारी की लीगल सैल में मेरे साथ बुरा बर्ताव हुआ और सरकारी वकील ने जान से मारने की धमकी पूरे स्टाफ के सामने दी थीं, क्योंकि इन दिनों बीमार चल रहा हूँ. इसलिए फ़िलहाल इसकी उच्च स्तर पर शिकायत करने में असमर्थ हूँ. लेकिन भ्रष्टाचारियों के हाथों मरने से पहले 10-20 भ्रष्टों को लेकर जरुर मरूँगा. आप सभी को यह मेरा वादा है. सरकारी वकील की शिकायत क्यों करनी पड़ी इसको देखने के लिए उसका लिंक  प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से  देखे.

अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर  "इंसानियत " के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही) और तकनीकी जानकारी  मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ क्योंकि अपने 17 वर्षीय पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि-अब प्रिंट व इलेक्टोनिक्स मीडिया में अब वो दम नहीं रहा. जो उनकी पत्रकारिता में पहले हुआ करता हैं. लोकतंत्र के तीनों स्तंभ के साथ-साथ चौथे स्तंभ का भी नैतिक पतन हो चुका है. पहले पत्रकारिता एक जन आन्दोलन हुआ करती थीं. अब चमक-दमक के साथ भौतिक सुखों की पूर्ति का साधन बन चुकी है. यानि पत्रकारिता उद्देश्यहीन होती जा रही है. 
श्री हजारे का अपने क्षेत्र में प्रचार 

5 अप्रैल को श्री अन्ना हजारे जी ने जन्तर-मन्तर पर बताया था कि-मैंने अपनी 26 वर्ष की आयु में ही सोच लिया था. ख़ाली हाथ आया और ख़ाली हाथ ही जाऊंगा. फिर उसके बाद से आज तक भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ रहा हूँ. मैंने यह ही बातें सोचकर अपनी 20 वर्ष की आयु से अपनी कलम और अपने प्रकाशन के माध्यम से भ्रष्टाचारियों  से लड़ता रहा हूँ. 

आज मेरी पत्नी और सुसराल वालों द्वारा दर्ज धारा-498A और 406 के साथ ही धारा 125 के कारणों से आर्थिक और शरीरिक के साथ ही मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. जो पत्नी(अर्धगनी कहलती हैं यानि आधे दुखों को हरने वाली, मगर मेरे दो गुणा बढ़ा दिए ) के फर्जी केसों से थोडा-सा टूट जरुर गया हूँ. अगर कुछ अलग-अलग शहरों के ब्लॉगर थोड़ी-थोड़ी मदद(रूपये और पैसों की नहीं, तकनीकी जानकारी और "सूचना का अधिकार" के तहत आवेदन करने के लिए अपना नाम और पता का प्रयोग करें. मैं आवेदन पत्र पर आने वाला खर्च स्वंय वहन करूँगा. अपने यहाँ से तैयार करके आपको कोरियर से भेज दूंगा और आपको कोरियर मिलते ही बस भारतीय डाक सेवा की स्पीड पोस्ट से उसमें लिखे पते पर मात्र भेजना होगा) कर दें. तब फर्जी केसों से और अपनी दो सालों से चली आ रही डिप्रेशन की बीमारी से उबर सकता हूँ. उसके बाद भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई में फाँसी का फंदा चूमने के लिए भी हमेशा तैयार रहूँगा.

मंगलवार, मई 03, 2011

आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

म ब्लोगिंग जगत के "अजन्मे बच्चे"( अभी तो अजन्मा बच्चा हूँ मेरे दोस्तों !) हैं और ब्लोगिंग जगत का अनपढ़, ग्वार यह नाचीज़ इंसान का अभी जन्म ही नहीं हुआ है. अभी हम ब्लोगिंग जगत का क.ख.ग सिखने की कोशिश कर रहा हूँ. इसलिए मेरे लिए खासतौर पर मूल हिंदी की देवनागरी की लिपि को रोमन लिपि में या अंग्रेजी में लिखी गयी टिप्‍पणी पढना मुश्किल कार्य है, इसलिए जिस पोस्‍ट में भी मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को रोमन लिपि में या अंग्रेजी में टिप्‍पणी होती हैं. मैं उसको पढता ही नहीं. हाँ, कभी-२ मेरी पोस्‍ट पर होती है.उसे कैसे न कैसे करके पढता हूँ. जब कभी-2 समय होता है तब उसका मूल हिंदी देवनागरी की लिपि में अनुवाद भी कर देता हूँ. इसको दूसरों को भी पढ़ने में कठिनाई होती है.
                   इस बात को सभी ब्लोग्गरों को भी समझना चाहिए। जब आपके विचारों और भावनाओं को कोई समझ ही नहीं पाता है. तब अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का क्या फायदा. मुझे बार-बार गूगल transliteration पर जाकर मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को टाईप करना पड़ता है. फिर कापी पेस्ट करता हूँ. मुझे इसी सुविधा की आदत है. बहुत से ब्लॉग पर "हिंदी वर्जन का विजेट " लगा हुआ होता है लेकिन हर ब्लॉग पर ज्यादात्तर नही होता. तब कापी पेस्ट करने में टाईम बहुत लगता है. मगर मै ज्यादात्तर मूल हिंदी देवनागरी की लिपि में ही टिप्पणी करता हूँ.कभी-कभी समय न होने की वजय से ही ज्यादा से ज्यादा 11शब्दों की टिप्पणी रोमन लिपि में करता हूँ. अगर कोई  ओर तरीका हो तो मुझे अवश्य बताए, क्योंकि ऐसा तब ही संभव हो पाता है. जब इन्टरनेट पर नेटवर्क सही से आ रहा हो.
           मै खुद को मूल हिंदी देवनागरी की लिपि में ही सहज (अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने में) समझता हूँ. मै चाहता हूँ कि-सब ब्लॉगर अपने-अपने ब्लोगों पर 'हिंदी वाला विजेट' अपने ब्लॉग पर लगाए और तकनीकी ज्ञाता मुझे मेरे ब्लोगों पर लगाने में मदद करें. मुझे मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को रोमन लिपि में या अंग्रेजी में लिखी टिप्पणी पढने में असुविधा होती है. बहुत ज़रूरी ना हो तो मैं भी पढने से टालने की कोशिश करता हूँ. मेरे कंप्यूटर का कीबोर्ड अंग्रेजी में है, किन्तु मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को साफ्टवेयर (गूगल transliteration) में टाईप करके टिप्पणीयां पेस्ट करता हूँ. मै हर संभव कोशिश करता हूँ कि-टिप्पणी मूल हिंदी देवनागरी की लिपि में हो, जब मुझे खुद दूसरो द्वारा मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को रोमन लिपि में या अंग्रेजी में की गयी टिप्पणिया पढने में परेशानी होती है. फिर दूसरों को कितनी दिक्कत होती होगी?  मुझे दूसरो द्वारा मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को रोमन लिपि में या अंग्रेजी में की गयी टिप्पणिया सुहाती ही नहीं है. यह मेरे दिल के यही ज्जबात है बल्कि किसी का कोई अपमान करने का कोई उद्देश्य नहीं है. क्या हम अंग्रेजी का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करके अपने को ज्यादा पढ़ा-लिखा होने का दिखावा नहीं करते हैं? किसलिए और किसके लिए इतना दिखावा? 
              मुझे कभी-कभी मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को रोमन लिपि में या अंग्रेजी में टिप्पणिया व्यावहारिक (कुछ व्यक्ति हिंदी लिपि में विचारों और भावनाओं को समझने में असमर्थ होते हैं) समस्यायों के चलते करनी पड़ती है. जैसे-मोबाईल पर संदेश आदि. वैसे ज्यादात्तर मोबाईल पर संदेश हिंदी देवनागरी की लिपि की रोमन लिपि में ही भेजता हूँ. मुझे हिन्दी देवनागरी की लिपि के ब्लॉग पर हिन्दी देवनागरी की लिपि में ही टिप्पणी अच्छी लगती है और हिंदी देवनागरी की लिपि को ही पढने में आनंद आता है. हमारी कथनी और करनी में स्वार्थी राजनीतिकों जैसा फर्क नहीं होना चाहिए. 
           आज मेरे प्रकाशन परिवार में सबसे ज्यादा हिंदी देवनागरी की लिपि की पत्र-पत्रिकाएँ, लेटर पैड, बिलबुक, प्रचार सामग्री, विजिटिंग कार्ड, मेरे समाचार पत्रों को रजिस्टर्ड करने की कार्यवाही के फॉर्म, शपथ पत्र, समाचार पत्रों के पंजीकरण प्रमाण पत्र आदि, विज्ञापन रेट कार्ड व बुकिंग फॉर्म, रबड़ की मोहरें, समाचारों पत्रों में हिंदी देवनागरी की लिपि के विज्ञापन के रेट कम है और अंग्रेजी के ज्यादा है और सबसे ज्यादा हिंदी देवनागरी की लिपि में विज्ञापन प्रकाशित हुए है. अपने क्षेत्र से दो बार चुनाव लड़ने की प्रक्रिया के फॉर्म, शपथ पत्र आदि सब हिंदी देवनागरी की लिपि में भर कर दे चूका हूँ.  इसके साथ ही अनेकों ऐसी सामग्री भी हिंदी देवनागरी की लिपि में है. जो किसी तक अपने विचार और भावना समझाने में सहायक होती है. 
       इन्टरनेट की दुनिया में जनवरी 2010 में प्रवेश करने के मात्र सात-आठ महीने की मेहनत से ही अपनी ईमेल, ब्लॉग, ऑरकुट और फेसबुक की प्रोफाइल आदि की सभी सैटिंग हिंदी देवनागरी की लिपि में  ही कर रखी है. ऑरकुट और फेसबुक पर "रमेश कुमार सिरफिरा(Ramesh Kumar Sirfiraa" के नाम से मौजूद हूँ. आज तक लगभग 992 लोगों को ईमेल हिंदी देवनागरी की लिपि में भेज चुका हूँ और अनेकों ब्लोगों पर लगभग 1100  टिप्पणी हिंदी देवनागरी की लिपि में कर चुका हूँ. अपने ब्लोगों पर लगभग 20000 शब्दों को हिंदी देवनागरी की लिपि में लिख चुका हूँ. अपने  उपरोक्त ब्लॉग पर अन्य व्यक्तियों को हिंदी देवनागरी की लिपि सिखाने के उद्देश्य से दो पोस्ट हिंदी की टाइपिंग कैसे करें  और  हिंदी में ईमेल कैसे भेजें. पोस्ट भी लिखी थीं. 
         अपनी पत्नी के डाले फर्जी केसों से संबंधित लगभग 20000 शब्द हिंदी देवनागरी की लिपि में लिखकर न्याय व्यवस्था के अधिकारियों को लिखकर दे चुका हूँ और आने वाले दो महीनों में लगभग 20000 शब्द हिंदी देवनागरी की लिपि में लिखकर देने वाला हूँ. इसके अलावा जब से मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज हुए तब से पत्नी को समझने के उद्देश्य से लगभग 20000 शब्द हिंदी देवनागरी की लिपि में बोल चुका हूँ. 
           प्रेम विवाह होने से पहले अपनी पत्नी को लगभग 2000 शब्द हिंदी देवनागरी की लिपि लिखकर दे चुका था और लगभग 20000 शब्दों का उच्चारण हिंदी देवनागरी की लिपि में कर चुका हूँ. इसके साथ ही मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज  होने के बाद से हिंदी देवनागरी की लिपि के लगभग 200000 क़ानूनी शब्दों को ब्लॉग पर और लगभग 200000 क़ानूनी शब्द अखवार और मैगजींस में पढ़ चुका हूँ. इसके साथ ही हिंदी देवनागरी की लिपि के टी.वी चैनलों पर धारा 498A और 406 की चर्चाओं (बहस आदि) में लगभग 200000 शब्द और अपने दोस्तों / रिश्तेदारों से उलाने (ताने) के रूप में लगभग 20000 शब्द अपने कानों से सुन चुका हूँ. 
        इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात अपने मात्र साढ़े तीन साल के वैवाहिक जीवन में अपनी पत्नी और सुसराल वालों से लगभग 200000 अपशब्द हिंदी देवनागरी की लिपि के और 200 अंग्रेजी में सुन चुका हूँ. अब तक लगभग दो करोड़ शब्द हिंदी देवनागरी की लिपि के अपनी पत्रकारिता (समाचार पत्र-पत्रिकाओं में) के चलते लिख चुका हूँ और प्रकाशित हो चुके हैं. लगभग दो लाख शब्द हिंदी देवनागरी की लिपि के कुव्यवस्था के चलते शिकायती पत्रों में लिख चुका हूँ और अन्य व्यक्तियों की मदद करने के उद्देश्य से लगभग दो लाख शब्द हिंदी देवनागरी की लिपि के उनके शिकायती पत्र और किसी कार्य से जुड़े फोरमों में लिख चुका हूँ. अर्थात पढ़ता हिंदी देवनागरी की लिपि हूँ. लिखता हिंदी देवनागरी की लिपि हूँ. सुनता हिंदी देवनागरी की लिपि हूँ. खाता हिंदी देवनागरी की लिपि हूँ, पहनता हिंदी देवनागरी की लिपि हूँ और बोलता भी हिंदी देवनागरी की लिपि में हूँ. मुझे इस पर गर्व है कि-मुझे अंग्रेजी नहीं आती है. 
               एक बार आप भी गर्व से कहों हम सच्चे भारतीय है. हिंदी देवनागरी की लिपि को लेकर आज मुझ में एक ही कमी है कि 10-11 दिन पहले ही एक दोस्त ने मुझे इन्टरनेट पर चैटिंग (वार्तालाप, बातचीत) करनी सिखाई है, वो  मुझे जानकारी न होने की वजह से मूल हिंदी देवनागरी की लिपि को रोमन लिपि में लिखनी पड़ती हैं. जानकारी प्राप्त होते ही हिंदी देवनागरी की लिपि में बातचीत शुरू कर दूंगा. ऐसा मेरा दृढ संकल्प है.  
आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें
आज सभी हिंदी देवनागरी की लिपि के ब्लॉगर भाई यह शपथ लें कि-हम आज के बाद हिंदी देवनागरी की लिपि और अन्य लिपियों के ब्लोगों को पढने के बाद भी अपनी टिप्पणी हिंदी देवनागरी की लिपि में ही करूँगा और हिंदी देवनागरी की लिपि ब्लोगिंग जगत को उंचाईयों पर पहुँचाने के लिए हिंदी देवनागरी की लिपि के प्रति ईमानदार बना रहूँगा. अपने ब्लॉग का नाम (शीर्षक) हिंदी देवनागरी की लिपि में लिखूँगा. जय हिंद!   
नोट : दोस्तों, मैंने अब इनस्क्रिप्ट के माध्यम से हिंदी देवनागरी की लिपि द्वारा हिंदी लिखना सीख लिया है.   

गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये-12

*लेखक की कलम से दो शब्द-2*
एक के बाद एक समाचार जल्दी से देने में अग्रणी ब्लॉगर अख्तर  खान "अकेला", कोटा(राजस्थान)से



आप सभी दोस्त व पाठक अपना "ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये" विषय पर पिछली 11 पोस्टों को पढ़कर काफी कुछ जान चुके होंगे.उपरोक्त विषय पर ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने का प्रयास किया है.मुझे यह तो पता नहीं है, आपको कितनी जानकारी हासिल हुई है. इसके बारे में आप टिप्पणियाँ करके ही बता सकते हैं. आपकी मुहब्बत में कितनी ताकत है.यह आपके द्वारा टिप्पणी करने के लिए निकले समय से पता चलेगा और टिप्पणी करते भी हैं या इससे एक समय की बर्बादी समझते हैं.टिप्पणियों की उम्मीद उनसे जो टिप्पणी करने के लिए अपनी अँगुलियों को कष्ट देता हो. आज की पोस्ट भी उसी विषय को समर्पित है.हो सकता है कुछ प्रश्न का उत्तर जानकारी के अभाव में छुट गए हो. इसलिए आज की पोस्ट को उपरोक्त विषय की जानकारी पूरी करने के उद्देश्य से प्रेमरस ब्लॉग/वेबसाइट पर जो जानकारी दी गई थी. उसी को बिना किसी प्रकार के संपादन किये हुए ही प्रकाशित किया जा रहा है. उपरोक्त पोस्ट को शाहनवाज़ सिद्दीकी ने लिखा है और  शाहनवाज़ सिद्दीकी ग़ालिब की नगरी दिल्ली से है. एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत है और विज्ञापन एवं डिजाईन से जुड़े कार्य संभालते हैं. इसके अलावा हमारीवाणी के संपादकीय मंडल  से  भी  जुड़े हुए है. इन्होने पत्रकारिता से करिअर की शुरुआत की थी. शुरू से ही लिखने का बहुत शौक था.जोकि इनको अपने स्वर्गीय नानाजी से विरासत में मिला था.मगर अब आर्ट के क्षेत्र में आने के बाद अधिक समय ही नहीं मिल पाता है.कभी-कभार कुछ पत्रिकाओं के लिए भी लिखा, लेकिन लिखने का सिलसिला छूटा नहीं। अब कुछ अधिक समय मिला खुदा की गनीमत समझते हुए अपने ब्लॉग पर लिखना शुरू किया है। इनका यह मानना है कि-विचारों में चाहे विरोधाभास हो, आस्था में चाहे विभिन्नताएं हो. परन्तु मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि-बात का महत्त्व का पता चल सके. अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तब जीवन का सच्चा सुख मिलता है। इनका कहना है कि-मैं एक साधारण सा मनुष्य हूँ  और मनुष्य का स्वाभाव ही ईश्वर ने ऐसा बनाया है कि गलतियाँ हो जाती हैं। इसलिए गलती मुझसे हो सकती है और अपनी गलती पर मैं हमेशा माफ़ी मांगता हूँ। अगर कहीं कुछ गलती हो गई हो तो क्षमा का प्रार्थी हूँ।
कैसे बनाएं अपना ब्लॉग? 
आज के इस दौर में अपनी बात को दूसरों तक पहुँचाने का सबसे आसान माध्यम ब्लॉग है, जिसे हिंदी में "चिटठा" भी कहा जाता है. ब्लॉग बनाना बहुत आसान है, इसके लिए प्रोग्रामिंग भाषा (Programing Language) की जानकारी होना आवश्यक नहीं है, बल्कि बहुत थोड़ी सी तकनीकी जानकारी ही काफी होती है, अगर तकनीकी जानकारी भी नहीं नहीं तब भी काम चल जाता है. ब्लॉग के लिए कुछ कम्पनियाँ मुफ्त में सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं, जिसमें blogger.com तथा wordpress प्रमुख हैं. इनकी सुविधाएं लेने के लिए आपको ना तो डोमेन नेम खरीदना पड़ेगा और ना ही होस्टिंग पैकेज. बस इनकी साईट पर जाकर अपना अकाउंट बनाना है, अपने ब्लॉग का नाम चुनना है और इसके बाद आप अपनी भावनाओं को ब्लॉग के माध्यम से व्यक्त कर सकते हैं. 

आइये सबसे पहले blogger.com की सेटिंग समझते हैं:-
1. सबसे पहले http://blogger.com पर क्लिक करिए अथवा अपने इन्टरनेट ब्राउज़र के एड्रेस बार में blogger.com लिख कर एंटर दबाइए.

2. अगर आपका गूगल अकाउंट है तो (ऊपर दर्शाए गए चित्रानुसार) यहाँ अपने गूगल अकाउंट से लोगिन करना है अथवा "Don't have a Google Account? के नीचे लिखे "Get started" पर क्लिक करके अपना गूगल अकाउंट बनाना है. अकाउंट बन जाने के बाद फिर यहीं आकर लोगिन करिए.

3. ऊपर दिए गए चित्र अनुसार आपका देश बोर्ड खुल जाएगा. अब आपको चित्र में सर्कल के द्वारा दर्शाए गए लिंक "Create a Blog" पर क्लिक करना है.

4. ऊपर दर्शाए गए चित्र अनुसार खुलने वाले प्रष्ट में "Blog title" के सामने अपने ब्लॉग नाम लिखना है, जैसे की मेरी ब्लॉग साईट का नाम है "प्रेम रस" इसे आप अपने ब्लॉग की भाषा में भी लिख सकते हैं. अर्थात अगर आप हिंदी में अपना ब्लॉग बनाना चाहते हैं तो अपने ब्लॉग का टाइटल हिंदी में लिख सकते हैं. 

5. "Blog address (URL)" के सामने बने बॉक्स में आप को अपने ब्लॉग का पता भरना है, उदहारण: myblog. याद रखिये यहाँ पर आपको पता इंग्लिश के शब्दों में भरना है, जिससे की आपके पाठकों को आप तक पहुँचने में आसानी रहे. 

6. नीचे लिखे "Check Availability" पर क्लिक करके जाँच सकते हैं कि आपके द्वारा भरा गया पता उपलब्ध है अथवा किसी और ने पहले ही यह नाम रख रखा है. 

7. अगर आपका पता उपलब्ध है तो ठीक है अन्यथा दूसरा पता लिख कर फिर से जाँच करिए. पता मिल जाने पर उसके नीचे लिखे "Word Verification" के सामने लिखे अक्षरों को नीचे बने बॉक्स में लिख डालिए. यह शब्द सिक्योरिटी जाँच के लिए होते हैं और इससे सिस्टम को पता चलता है कि फॉर्म भरने वाला कोई मनुष्य है ना कि कंप्यूटर सोफ्टवेयर. अब नीचे लिखे "Continue" पर क्लिक करिए.

8. इसके बाद ऊपर दर्शाए गए चित्रानुसार ब्लॉग की थीम अर्थात उसकी साज-सज्जा के विकल्प दिखाई देने लगेंगे. अब आपको अपनी रूचि अनुसार इसमें से किसी भी विकल्प पर क्लिक करके सबसे नीचे तीर के निशान में लिखे "Continue" पर क्लिक करना है. इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद आपका ब्लॉग बन जाएगा. उदहारण के लिए अगर आपने पता "myblog" रखा तो आपके ब्लॉग का पूरा पता (अर्थात URL) myblog.blogspot.com होगा

9. इस प्रक्रिया के बाद ऊपर दिखाई दे रहा प्रष्ट खुलेगा जिसमें तीर के निशान में लिखे "Start blogging" पर क्लिक करने से आपकी ब्लॉग पोस्ट करने वाला प्रष्ट खुल जाएगा, जो कुछ इस तरह का दिखाई देगा.

10. यहाँ "Title" में आपको अपनी ब्लॉग की पोस्ट का शीर्षक लिखना है तथा नीचे की ओर बने हुए बड़े से बॉक्स में अपनी पोस्ट लिखनी है. इस बॉक्स में ऊपर बने विभिन्न तरह के आइकन्स को आपने अपनी पोस्ट की सजावट के लिए प्रयोग कर सकते हैं. आइकन "अ" पर क्लिक करने से आप हिंदी में लिख सकते हैं, इस पर क्लिक करते ही आप जैसे ही अपने कीबोर्ड से कुछ भी टाइप करेंगे वह अपने आप ही हिंदी में बदल जाएगा, जैसे कि "ham" टाइप करने से यह इसे "हम" में बदल देगा.

blogger.com के बारे में अन्य जानकारियाँ में आगे कुछ और पोस्ट में देने की कोशिश करूँगा, अगर आप कुछ जानना चाहें तो नीचे टिपण्णी बॉक्स में लिख कर मालूम कर सकते हैं अथवा मेरे ईमेल पते shnawaz@gmail.com पर लिख कर मालूम कर सकते हैं.

स्वयं की ब्लॉग साईट: आप अपना स्वयं का ब्लॉग भी बना सकते हैं, जिसके लिए आपको एक डोमेन नेम अर्थात अपने ब्लॉग का नाम खरीदना पड़ेगा, जैसे मेरे ब्लॉग का नाम www.premras.com है, और साथ ही अगर आप अपनी ब्लॉग-पोस्ट को अपने स्पेस में रखना चाहें तो होस्टिंग पैकेज भी खरीद सकते. होस्टिंग के अंतर्गत उपलब्ध जगह (स्पेस) और डाटाबेस के द्वारा ही ब्लॉग-पोस्ट को सेव किया जाता है. किसी अच्छी कंपनी से डोमेन नेम खरीदने का तकरीबन 600 रूपये का खर्च आता है. अगर आप केवल डोमेन नेम ही खरीदना चाहते हैं तो अपनी ब्लॉग पोस्ट blogger.com के द्वारा ही प्रकाशित कर सकते हैं. इसके लिए आपको डोमेन नेम खरीदने के बाद उसकी सेटिंग में कुछ बदलाव करने पड़ेंगे तथा blogger.com की सेटिंग में भी कुछ बदलाव करने पड़ेंगे, जिन्हें मैं अगली पोस्ट में समझाने की कोशिश करूँगा.
अगर आप डोमेन के साथ ही होस्टिंग पैकेज भी खरीदना चाहते हैं तो इसके लिए आपको 100 से 150 MB डिस्क स्पेस के लिए तकरीबन 1500 रूपये खर्च करने पड़ेंगे. इसके उपरान्त आप अपनी ब्लॉग साईट का कंटेंट डिज़ाइन करवा सकते हैं अथवा wordpress का सेटअप भी प्रयोग कर सकते हैं. wordpress सेटअप मुफ्त में उपलब्ध होता है, लेकिन इसको सर्वर पर अपलोड करने के साथ ही कुछ सेटिंग भी करनी पड़ती हैं. इसके साथ ही इन्टरनेट पर हज़ारों मुफ्त थीम (साज-सज्जा) भी उपलब्ध हैं तथा आप प्रोफेशनल थीम खरीद भी सकते हैं अथवा अपनी इच्छा अनुसार डेवलेप भी करा सकते हैं, जिसका खर्च कार्य के अनुसार ही आएगा. 

आप चाहें तो अपना डोमेन अथवा होस्टिंग पैकेज वेब डेवलेपमेंट कंपनी "ह्यूमर-शॉपी" http://www.humourshoppe.com से भी खरीद सकते हैं. यहाँ से डोमेन आपको blogger सेटिंग के साथ मिलेगा तथा होस्टिंग पैकेज खरीदने पर मुफ्त में wordpress सेटअप भी मिल जाएगा. आप चाहें तो मुफ्त थीम अपलोड कर सकते हैं अथवा अपनी थीम अपने हिसाब से बनवा सकते हैं या फिर बाज़ार में मौजूद प्रोफेशनल थीम खरीद भी सकते हैं. अधिक जानकारी के लिए आप humourshoppe@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं.

Ramesh Kumar Sirfiraa ne कहा: आपने अच्छी श्रृंखला की शुरुआत की है, लगता है इसमें आगे की कुछ जानकारी शायद मेरे भी काम आ सकेगी. आपकी यह पोस्ट जनोपयोगी है और बहुत लोगों के काम आयेगी. नवोदितों के लिए तो काफी महत्वपूर्ण तकनीकी जानकारी वाली सामग्री दी है. जितनी भी तकनीकी जानकारी हिन्दी में आये उतना ही अच्छा है. आपने काफी सरल तरीके से बातों को समझाया है. आपने ब्लागिंग इच्छुक लोगो के लिए एक अच्छी पोस्ट दी है, जिसे ब्लागजगत में हमेशा याद रखा जायेगा. आपको बेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई ! आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे. मुझे उपरोक्त लेख की नवीनतम श्रृंखलों का इन्तजार रहेगा. आशा है अतिशीघ्र प्रकाशित होगी. आपने बहुत अच्छी तकनीकी जानकारी दी है और साथ में मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर देकर लेख की सार्थकता साबित करने की भरपूर प्रयास किया है. इसके अलावा हिंदी का ब्लॉग बनाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए उदाहरण(फोटो सहित) देने से लेख बहुत उपयोगी बन गया है. हिन्दी में काम करनेवालों के लिहाज से ब्लागर(http://blogger.com/) और वर्डप्रेस (http://wordpress.com/) ही श्रेष्ठ विकल्प हैं. एक और स्थान है जहां आप अपना हिन्दी ब्लाग बना सकते हैं वह है लाईव जर्नल (http://livejournal.com/) . यही मुख्य तीन स्थान हैं.

अपना "ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये" विषय पर जितनी भी मुझे जानकारी थीं या यह कहूँ एकत्रित की थीं. वो सब बाँट दी है. अब मेरा और आपका कितना ज्ञान बढ़ता है. यह सब भविष्य की गर्त में है.आपका अपना -रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" 
 

बुधवार, अप्रैल 13, 2011

अपना ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये-11

लेखक की कलम से दो शब्द
क़ानूनी सलाह देने में सार्थक ब्लॉग 
 आप सभी दोस्त व पाठक अपना "ब्लॉग क्यों और कैसे बनाये"विषय पर पिछली दस पोस्टों को पढ़कर काफी कुछ जान चुके होंगे.उपरोक्त विषय पर ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने का प्रयास किया है.मुझे यह तो पता नहीं है, आपको कितनी जानकारी हासिल हुई है. इसके बारे में आप टिप्पणियाँ करके ही बता सकते हैं. मगर आज की पोस्ट भी उसी विषय को समर्पित है.हो सकता है कुछ प्रश्न का उत्तर जानकारी के अभाव में छुट गए हो. इसलिए आज की पोस्ट को उपरोक्त विषय की जानकारी पूरी करने के उद्देश्य से "हमारीवाणी" और "सारथी" ब्लॉग पर जो जानकारी दी गई थी. उसी को बिना किसी प्रकार के संपादन किये हुए ही प्रकाशित किया जा रहा है. उपरोक्त पोस्ट को शास्त्री जे सी फिलिप ने लिखा है और शास्त्री जे सी फिलिप एक समर्पित लेखक,अनुसंधानकर्ता एवं हिन्दी-सेवी हैं.सारथी हिन्दी के सबसे अधिक पढे जाने वाले व्यक्तिगत चिट्ठों मे से एक है और हर महीने 5,00,000 से ऊपर हिट्स पाता है. 
हिन्दी में ब्लाग कैसे बनाएं
क्या मैं हिन्दी में अपनी वेबसाईट या ब्लाग बना सकता हूं? 
बिल्कुल. अब हिन्दी में वेबसाईट बनाना और चलाना बहुत आसान है.
मैं वेबसाईट बनाऊं या ब्लाग?  

अगर अभी तक आप वेबसाईट या ब्लाग्स की दुनिया से अनजान थे तो बेहतर होगा कि आप पहले अपना एक ब्लाग बनाएं. हालांकि हिन्दी में वेबसाईट बनाना और चलाना भी बहुत आसान और कम खर्चीला है फिर भी आपको सलाह है कि आप पहले अपना ब्लाग बनाएं.
अगर वेबसाईट बनाना आसान है तो मैं शुरू से ही अपनी वेबसाईट क्यों न बनाऊं?  

अगर आप कोई व्यवसाय चलाते हैं या फिर देवनागरी भाषा में कोई समाचार-प्रचार माध्यम खड़ा करना चाहते हैं तो आप निश्चित ही अपनी वेबसाईट से शुरूआत करिए. लेकिन आप व्यक्तिगत विचारों की अभिव्यक्ति या फिर एक निश्चित पाठकवर्ग के बीच तुरंत अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं तो बेहतर होगा कि आप अपना ब्लाग बनाएं. इससे कई फायदे हैं.
1. अपने वेबपेज के लिए आपको कहीं जगह (होस्टिंग) नहीं खरीदनी पड़ती.
2. आपको बनी-बनाई डिजाईन मिल जाती है जिसको आप अपनी रूचि के मुताबिक ढाल सकते हैं.
3. अगर आप अपने ब्लाग पर पर्याप्त सक्रिय हैं और लोगों के सामने वेबसाईट की तरह प्रस्तुत करना चाहते हैं तो हिन्दी ब्लागिंग का मौका देनेवाली दो बड़ी संस्थाएं वर्डप्रेस और ब्लागर आपको अपने डोमेन नेम पर जाने की सुविधा देती हैं.
4. क्योंकि आपको अलग से कोई वेबस्पेस नहीं खरीदना है इसलिए आपको यह चिंता नहीं करनी है कि हर साल उसके लिए आप पैसा जमा करें और उसका नवीनीकरण करवाएं. ब्लाग पर एक बार आप जो कार्य कर देते हैं वह तब तक वहां मौजूद रहेगा जब तब वह वेबहोस्टिंग कंपनी रहेगी.
फिर भी अगर मैं अपनी स्वयं की वेबसाईट हिन्दी में बनाना चाहूं तो? 

 आप जरूर यह कार्य कर सकते हैं. सबसे पहले आपको एक डोमेन नेम रजिस्टर्ड कराना होगा. डोमेन नेम रजिस्ट्रेशन से पहले कुछ सावधानियों पर ध्यान दें. जैसे जहां से आप नाम बुक करवा रहे हैं वह आपके डोमेन नेम का कन्ट्रोल पैनल आपको दे दे. इसके साथ ही आप होस्टिंग (यानी वह जगह जिसका उपयोग आप अपने वेबपेज को चलाने और सामग्री को सुरक्षित रखने के लिए करते हैं) खरीदते समय यह ध्यान रखें कि सर्वर की परफार्मेंस कैसी है. आपके वेबपेज पर बहुत अच्छी सामग्री हो और आपने उसका डिजाईन भी बहुत अच्छा करवा रखा हो फिर भी अगर सर्वर धीमा है तो आपके सब किये पर पानी फिर जाता है.
ब्लाग बनाने की शुरूआत कैसे करें? 
वैसे तो आजकल हर बड़े वेब पोर्टल ब्लाग्स की सुविधा दे रहे हैं. आप कहीं मिनटों में ब्लाग बना सकते हैं. लेकिन हिन्दी में काम करनेवालों के लिहाज से ब्लागर(http://blogger.com/) और वर्डप्रेस (http://wordpress.com/) ही श्रेष्ठ विकल्प हैं. एक और स्थान है जहां आप अपना हिन्दी ब्लाग बना सकते हैं वह है लाईव जर्नल (http://livejournal.com/) . यही मुख्य तीन स्थान हैं जो आपको मुफ्त हिन्दी ब्लाग बनाने की सुविधा देते हैं. वर्डप्रेस और लाईव जर्नल स्वतंत्र प्रयास हैं इसलिए ये आपको एक सीमित मात्रा में जगह उपलब्ध करवाते हैं. अगर उससे अधिक जगह का उपयोग आप करते हैं तो आपको अतिरिक्त पैसा अदा करना होता है. वर्डप्रेस जहां आपसे 50 एमबी जगह उपयोग करने के बाद पैसे मांगता है वहीं लाईव जर्नल तीन तरह से आपको सेवाएं आफर करता है. पहला मुफ्त है लेकिन आप उसके तहत फोटो, आडियो आदि नहीं रख सकते. दूसरी सेवा भी मुफ्त है जिसमें आपको फोटो आदि रखने की कई सुविधाएं मिलती है लेकिन जर्नल इस मुफ्त सेवा के बदले अपने विज्ञापन आपके ब्लाग पर चलाता है. तीसरी सेवा के लिए लाईव जर्नल आपसे सीधे पैसे लेता है.

       वर्डप्रेस पहले पचास एमबी जगह के उपयोग तक आपसे कोई पैसा नहीं लेता. और आपके ब्लाग पर अपना कोई विज्ञापन भी नहीं चलाता. इस सेवा के उपयोग के लिए आप अपना कोई भी ई-मेल आईडी उपयोग कर सकते हैं. ध्यान रहे वर्डप्रेस पर एकबार आप जिस नाम से ब्लाग बना लेते हैं उसको कदापि नष्ट न करें. अगर आपने ऐसा किया तो उस नाम या ई-मेल आईडी से आप दोबारा वर्डप्रेस पर कभी ब्लाग नहीं बना पायेंगे. ब्लागर पर अपना ब्लाग बनाने के लिए आपके पास गूगल का ईमेल होना जरूरी है. यह आपको 1000 एमबी की जगह मुहैया कराता है और इसके लिए किसी भी प्रकार का कोई पैसा नहीं लेता. उलटे ब्लागर आपको एडसेंस की सुविधा भी देता है जिससे आप अपने ब्लाग पर गूगल द्वारा दिये जा रहे विज्ञापनों को लगा सकते हैं और अगर लोग उन विज्ञापनों पर स्पर्श करते हैं तो गूगल आपको पैसे देता है. उपर्युक्त तीनों सेवा प्रदाताओं का अध्ययन करने के बाद आप अपनी सुविधा के अनुसार जहां चाहें अपना ब्लाग बना सकते हैं. (क्रमश:)
Ramesh Kumar Sirfiraa said: बहुत अच्छी तकनीकी जानकारी दी है और साथ में मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर देकर लेख की सार्थकता साबित करने की भरपूर प्रयास किया है. इसके अलावा हिंदी का ब्लॉग बनाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए उदाहरण देने से लेख बहुत उपयोगी बन गया है. आपका उदाहरण :- हिन्दी में काम करनेवालों के लिहाज से ब्लागर(http://blogger.com/) और वर्डप्रेस (http://wordpress.com/) ही श्रेष्ठ विकल्प हैं. एक और स्थान है जहां आप अपना हिन्दी ब्लाग बना सकते हैं वह है लाईव जर्नल (http://livejournal.com/) . यही मुख्य तीन स्थान हैं
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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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