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शनिवार, मई 07, 2011

क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं

अक्सर मिलने वोली धमकियों से परेशान
 सन  2008 में तख्ती पहनकर घूमता सिरफिरा 
हमारे देश का हर दूसरा नागरिक यह सोचता है कि-भारत में शहीद भगत सिंह, नेताजी सुभाष  चन्द्र बोस आदि नौजवान पैदा हो, मगर हमारे घर में नहीं. आखिर क्यों नहीं करना चाहते/चाहती पैदा ऐसे नौजवानों को?
 ज भ्रष्टाचार की शिकायत करने पर आपके सारे काम रोक दिए जाते हैं और आपका सारे भ्रष्टाचारी एकत्रित होकर आपका शोषण करने लग जाते हैं. ऐसा मेरा अनुभव है, अभी 5 मई 2011 को तीस हजारी की लीगल सैल में मेरे साथ बुरा बर्ताव हुआ और सरकारी वकील ने जान से मारने की धमकी पूरे स्टाफ के सामने दी थीं, क्योंकि इन दिनों बीमार चल रहा हूँ. इसलिए फ़िलहाल इसकी उच्च स्तर पर शिकायत करने में असमर्थ हूँ. लेकिन भ्रष्टाचारियों के हाथों मरने से पहले 10-20 भ्रष्टों को लेकर जरुर मरूँगा. आप सभी को यह मेरा वादा है. सरकारी वकील की शिकायत क्यों करनी पड़ी इसको देखने के लिए उसका लिंक  प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से  देखे.

अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर  "इंसानियत " के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही) और तकनीकी जानकारी  मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ क्योंकि अपने 17 वर्षीय पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि-अब प्रिंट व इलेक्टोनिक्स मीडिया में अब वो दम नहीं रहा. जो उनकी पत्रकारिता में पहले हुआ करता हैं. लोकतंत्र के तीनों स्तंभ के साथ-साथ चौथे स्तंभ का भी नैतिक पतन हो चुका है. पहले पत्रकारिता एक जन आन्दोलन हुआ करती थीं. अब चमक-दमक के साथ भौतिक सुखों की पूर्ति का साधन बन चुकी है. यानि पत्रकारिता उद्देश्यहीन होती जा रही है. 
श्री हजारे का अपने क्षेत्र में प्रचार 

5 अप्रैल को श्री अन्ना हजारे जी ने जन्तर-मन्तर पर बताया था कि-मैंने अपनी 26 वर्ष की आयु में ही सोच लिया था. ख़ाली हाथ आया और ख़ाली हाथ ही जाऊंगा. फिर उसके बाद से आज तक भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लड़ रहा हूँ. मैंने यह ही बातें सोचकर अपनी 20 वर्ष की आयु से अपनी कलम और अपने प्रकाशन के माध्यम से भ्रष्टाचारियों  से लड़ता रहा हूँ. 

आज मेरी पत्नी और सुसराल वालों द्वारा दर्ज धारा-498A और 406 के साथ ही धारा 125 के कारणों से आर्थिक और शरीरिक के साथ ही मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. जो पत्नी(अर्धगनी कहलती हैं यानि आधे दुखों को हरने वाली, मगर मेरे दो गुणा बढ़ा दिए ) के फर्जी केसों से थोडा-सा टूट जरुर गया हूँ. अगर कुछ अलग-अलग शहरों के ब्लॉगर थोड़ी-थोड़ी मदद(रूपये और पैसों की नहीं, तकनीकी जानकारी और "सूचना का अधिकार" के तहत आवेदन करने के लिए अपना नाम और पता का प्रयोग करें. मैं आवेदन पत्र पर आने वाला खर्च स्वंय वहन करूँगा. अपने यहाँ से तैयार करके आपको कोरियर से भेज दूंगा और आपको कोरियर मिलते ही बस भारतीय डाक सेवा की स्पीड पोस्ट से उसमें लिखे पते पर मात्र भेजना होगा) कर दें. तब फर्जी केसों से और अपनी दो सालों से चली आ रही डिप्रेशन की बीमारी से उबर सकता हूँ. उसके बाद भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई में फाँसी का फंदा चूमने के लिए भी हमेशा तैयार रहूँगा.

13 टिप्‍पणियां:

  1. रमेश भाई यकीन मानिए आपका दर्द यहाँ दस मई कोटा में केद्रीय विधि आयोग के जस्टिस शिवकुमार शर्मा के सामने हम लोग रखेंगे इसका प्रारूप तय्यार कर लिया गया है और हो सकता है अपने सुझाव सरकार को भेजकर इस पर अमल करवाया जाए कहते हैं खुदा के घर देर है अंधेर नहीं ..अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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  2. आप चिंता ना करें आप जैसे लोगों की मदद के लिए एक राष्ट्रिय स्तर का प्रतिष्ठान बनाने का प्रयास कर रहा हूँ ,आप जैसे करोड़ों लोग इस देश के जेलों में बंद हैं,सत्य-न्याय व ईमानदारी की आवाज को बेदर्दी से दबा दिये जाने से करोड़ों लोग मानसिक तनाव में जीने को मजबूर हैं और सत्य-न्याय व ईमानदारी की रक्षा के लिए लाखों रुपया तनख्वाह पाने वाले लोग एय्यासी कर मस्ती कर रहें हैं...इसलिए आप थोडा अपने भावना पर काबू रखें और समय का इंतजार करें...समय जरूर बदलेगा..

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  3. आपका मिशन बहुत बढ़िया है और उद्देश्य पवित्र है!
    --
    मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
    --
    बहुत चाव से दूध पिलाती,
    बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
    सीधी सच्ची मेरी माता,
    सबसे अच्छी मेरी माता,
    ममता से वो मुझे बुलाती,
    करती सबसे न्यारी बातें।
    खुश होकर करती है अम्मा,
    मुझसे कितनी सारी बातें।।
    "नन्हें सुमन"

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  4. हम एसा जरुर करेंगे जय भारत |

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  5. बहुत बढ़िया! मुझे पूरी उम्मीद है कि अगर थोड़ा धीरज रखा जाये तो देखिएगा वक्त में तबदीली ज़रूर आएगी!

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  6. इन दहेज के कानून की आड लेने वाले झूठे लोगों से बव के रहना दोस्त।
    ऐसे लोगों को सिर्फ़ पैसा चाहिए सिर्फ़ पैसा।

    रमेश जी आप लगे रहो मैं आपके साथ हूँ।

    इन झूठे लोगों को चैन से मत बैठने देना।

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  7. सबसे पहले आप इधर उधर अपनी पोस्टों के लिंक टिप्पणी में छोडना बंद किजिये जनाब सिरफ़िरे साहब। कुछ दूसरों के लिखे को पढकर भी अपनी टिप्पणी देना सीखिये। इस तरह मुंह उठाकर अपनी पोस्टों के गुणगान करना शोभा नही देता। एक दो बार नही आप कितने समय से यही काम करते हैं? आपके लिखे मे दम होगा त ो लोग बिना बुलाये ही आ जायेंगे।

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  8. उपर से अप्रूवल का बाजा भी लगा रखा है?:) वैरी गुड सिरफ़िरे साहब!

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  9. धैर्य रखें....सत्य की सदा विजय होती है.

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  10. @अख्तर खान अकेला जी, आप ने कहा… खुदा के घर देर है अंधेर नहीं..इसी इन्तजार में हूँ. मगर सब्र नहीं हो रहा है.

    @honesty project democracy जी आप ने कहा…आप थोडा अपने भावना पर काबू रखें और समय का इंतजार करें...समय जरूर बदलेगा. कब बदलेगा, अपने-आप कुछ नहीं बदलता है.इसके लिए हमें खुद उठाना होगा और भ्रष्ट लोगों बताना होगा कि-अब तुम्हारा अंत निशिचत है.

    @डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) जी, आपका धन्यवाद!!!

    @मीनाक्षी पन्त जी, धन्यवाद! फिर देर किस बात की हो रही है

    @बबली जी, धीरज रखने से कुछ नहीं होता है बल्कि वक्त को खुद बदलने के लिए खुद कुछ प्रयास भी करने पड़ते हैं. तीन साल का धीरज कम नहीं होता है.

    @

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  11. @जाट देवता (संदीप पवाँर)
    इन दहेज के कानून की आड लेने वाले झूठे लोगों से बव के रहना दोस्त,सिरफिरा-दोस्त बच नहीं सका.
    ऐसे लोगों को सिर्फ़ पैसा चाहिए सिर्फ़ पैसा।
    सिरफिरा-पैसा हो तो लेंगे न, मुझे तो लग रहा कहीं उलटी गंगा न बह जाए. अपनी जान छुड़ाने के लिए पैसे न दें जाए.
    रमेश जी आप लगे रहो मैं आपके साथ हूँ।
    सिरफिरा-जिब मेरे गेला जाट देवता सै, तब मैं क्यू डरूँ था.डरेंगे तो अब वो गे न
    इन झूठे लोगों को चैन से मत बैठने देना।
    सिरफिरा-इन्हें तो सरे-बाजार में नंगा करूँगा.

    @सुमित प्रताप सिंह जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

    @वेनामी जी, आपकी पिछली टिप्पणी असभ्य भाषा में थी.इसलिए प्रकाशित नहीं की. इस बार कर दी है. आपको याद है यह "आपकी टिप्पणी बहुत निम्न स्तर की हैं,इसलिए प्रकाशित नहीं होगी.आपका निम्न स्तर की टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद" जवाब दे दिया था

    श्रीमान जी, आपने हमें इतनी सुंदर सलाह दी तो भी अपनी पहचान छुपाकर हम "सिरफिरे" हैं. आप एक सभ्य व्यक्ति है और फिर भी अपनी पहचान(अगर हम चाहे तो जान सकते हैं) छुपा रहे हैं. किस डर से? क्या आप सच कहने से डरते हैं? जहाँ तक लिंक की बात है आपको जबरदस्ती तो नहीं कहता आप पढो. अगर आपको समस्या है.तब आप अपने ब्लॉग का नाम बता दें.आपके ब्लॉग पर लिंक नहीं छोड़ेगे, बाकी यह हमारे प्रचार की रणनीतियों के अनुरूप है. आप फ़िलहाल मुझे कितना जानते हैं मुझे पता नहीं है. मगर आप एक बार मेरे द्वारा अनुसरण किये जा रहे ब्लोगों का अवलोकन करके बताये. लेकिन एक-एक उनकी पोस्ट पढना और आपकी टिप्पणी से मेरी टिप्पणी के शब्द की संख्या बेशक कम हो सकती हैं. मगर उसमें दूषित मानसिकता का कहीं परिचय नहीं दिया है और अपनी पहचान को गुप्त नहीं रखा है. आपका कहना सही है मगर क्या करें भाई हमारी मज़बूरी है कि-अपने मुंह मिठ्ठू बनाना हमें अच्छा लगता है. ख़राब वस्तु लेने लोग आते ही इसलिए हांक कर लाते हैं. अपनी ख़राब वस्तु नई बताकर बेच देते हैं.

    उपर से अप्रूवल का बाजा भी लगा रखा है?:) वैरी गुड सिरफ़िरे साहब!
    श्रीमान जी, आपकी टिप्पणी का अगर जवाब भी नहीं दूँ तब आप बाध्य नहीं कर सकते हैं. लेकिन नैतिकता के फर्ज के चलते ही आपकी उपरलिखित टिप्पणी जैसे प्रश्न का एक अन्य पाठक को दिया स्पष्टिकरण नीचे है.
    @भाई जाट देवता (संदीप पवाँर) जी, हमारे भारत देश अच्छी व बुरी मानसिकता के व्यक्ति रहते हैं और कुछ को बदलना आसान नहीं होता है. इसलिए यह "अपरुवल" का चक्कर है. शायद आप जानते होंगे कि-हम अपने प्रकाशन परिवार के समाचार पत्रों के संपादक, मुद्रक और प्रकाशक का दात्विय का निर्वाह करता हूँ/था. कोई भी अच्छी या बुरी बात समाज में सभ्य तरीके से ही जानी चाहिए.

    एक छोटी-सी घटना दो दिन पहले हुए अनुभव से:- इसी पोस्ट पर एक सम्मानित पेशेगत महिला(जो आमआदमी की परेशानियों से रोज रु-ब-रु होती हैं और बहुत अच्छे लेख व कविताओं को अपने दो ब्लोगों पर डालती हैं. मैं स्वंय उनके दोनों ब्लॉग फ्लो भी करता हूँ और टिप्पणी भी करता हूँ. एक-दो बार मेरे ब्लोगों पर उन्होंने टिप्पणी भी की है) की ब्लॉगर आई.डी से अशोभिनीय टिप्पणी प्राप्त हुई है.जिस मैं अपशब्दों का प्रयोग किया हुआ है.जो प्रकाशन योग्य नहीं है.अब यह भी हो सकता है. किसी (शातिर दिमाग के व्यक्ति) ने उनकी ईमेल या ब्लॉग की आई.डी को हैग कर लिया हो और उनको बदनाम करने की कोशिश कर रहा हो.अब जब तक उनसे (ब्लॉगर) से संपर्क नहीं हो जाता है.तब तक कुछ कहना मेरे लिए उचित नहीं होगा.एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का फर्ज है कि-हर बात पूरी ईमानदारी से समाज को अवगत कराये.मैं अपनी की गई गलतियों पर की गई आलोचनात्मक टिप्पणियों से विचलित नहीं होता हूँ और अपनी गलतियों को स्वीकार करता हूँ.फिर गलती किससे नहीं होती हैं और फ़िलहाल मेरी दिमागी स्थिति से सभी दोस्त व पाठक अवगत भी हैं.क्या आपको लगता है मेरे ब्लॉग का उद्देश्य सम्मनित लोगों को बदनाम करने का हैं.मैंने अपने ब्लॉग को लोगों को जागरूक करने और अन्याय का विरोध करने के उद्देश्यों के चलते ही बनाया है.मेरे ब्लॉग से एक भी व्यक्ति का कुछ भी भला हो जाए तो मैं खुद खुशनसीब मानूंगा.अब आप भी एक बार मुझे "सिरफिरा" कह दीजिये..........................आपका दोस्त

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  12. ramesh kumar ji,m aapko sirfira nahi kahuga.kyo ki yah sab ek sirfire ka kaam nahi ho sakta.m bhi aap jasi hi musibato se piddit hu.mera bhi koi nahi hai.bash ek 70 sall ki ma hai.yaha par kuch log kuch galat tippaddi bhi kar dete hai.lekin ye baat bhi sach hai ki jiske upar paddti hai,bahi uski maar samajh sakta hai.m aapke sath hu.please mujhe bataye ki m aapki or meri shayta ke liye kya karu....meri Email :kamalsharma440@gmail.com mobile 09034048772 hai,m aapse milna chata hu....thanks...kamal hindustaani

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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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