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रविवार, मई 15, 2011

पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव

अपने  कार्य  के  दौरान  विचार  करते  हुए
ज वैसे तो घटित अपराधों के किये जाने की शैली(आधुनिक व संचार माध्यमों द्वारा) को देखते हुए पूरे संविधान और कानूनों में संशोधन करने की आवश्यकता हैं.लेकिन सन-1983 में दहेज पर कानून में संशोधन करने के बाद एक तरफा धारा 498A के आस्तिव में आने के बाद से कुछ दूषित मानसिकता के लोगों द्वारा दुरूपयोग करने के मामले देखने व सुनने में आ रहे हैं.पिछले कई सालों से इन कानूनों के दुरूपयोग करें जाने पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तल्ख़ टिप्पणी करने के बाद गृह मंत्रालय के निर्देश पर विधि आयोग इसमें संशोधन करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया और कमेटी ने आम जनता,गैर सरकारी संस्थाओं, संस्थानों और अधिवक्ता संघों से उनके विचार और सुझाव आमंत्रित किये हैं.इसी सन्दर्भ में अपने अनुभव और विचारों से अपने कुछ बहुमूल्य सुझाव दें रहा हूँ.पिछले दिनों बहुत ज्यादा ओनर किलिंग घटनाओं को देखते हुए और समाज में गिरती नैतिकता के चलते हुए आज समय की मांग को देखते हुए कम से कम "विवाह" नामक संस्था से जुड़े सभी कानून(304B, 406,494,125 आदि) की धाराओं मैं संशोधन की आवश्कता हैं और ठोस व सख्त कानून बनाने की आज बहुत ज्यादा आवश्कता है.
             मैंने अपने अनुभवों या जो समाज में देखा है या झेला है उसी के आधार पर कुछ बहुमूल्य सुझाव दिए हैं.हो सकता हैं कुछ क़ानूनी शब्दों का ज्ञान न होने या याद न आने के कारण से कुछ कमियां रह गई हो. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.अपने अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि-असली पीड़ित चाहे लड़का हो या लड़की हो,उसको कुव्यवस्थाओं के चलते न्याय नहीं मिल पता हैं.जिन अधिकारीयों के हाथ में इन कानूनों पर कार्यवाही करने की जिम्मेदारी होती हैं.वो सभी मात्र थोड़े से पैसों के लिए अपना ईमान व ज़मीर बेच देते हैं.इनमें खासतौर पर कुछ सरकारी वकील,पुलिस और जज शामिल होते हैं.इनके द्वारा कानूनों को तोड़-मोड़ देने से असली पीड़ित व्यक्ति की न्याय के प्रति आस्था कम होती जा रही हैं.आज कम से कम "विवाह" नामक संस्था को बचाने के लिए विधियिका को सख्त से सख्त कानून बनाने चाहिए. इसमें "मीडिया" को भी अपनी समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए सही व्यक्ति की मदद करनी चाहिए.अब तक अक्सर देखा जा रहा है कि-जहाँ कोई बात महिला से जुड़ी घटना होती हैं.तब मीडिया उसका साथ देती हैं मगर पुरुष के मामले में उसका रवैया रुखा रहता है. 
अपने  विचारों को कलमबध्द करते  हुए
अपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन के सन्दर्भ में निम्नलिखित कुछ बहुमूल्य सुझावों को विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए थे.
1 आई.पी.सी. धारा 498A में कुछ उपधारा जोड़ने की भी आवश्कता है.जिससे दोषी बच न सकें और निर्दोष सजा न पायें.
2 आई.पी.सी. धारा 498A के साथ ही सहायक आई.पी.सी.धारा 498B भी बनाये जाने की आवश्कता है और इसमें भी कुछ उपधारा होनी चाहिए.जिससे हमारे देश में दहेज प्रथा के साथ ही जाति, गौत्र और भेदभाव जैसी फैली बुराइयों को खत्म किया जा सकें.
                      लेकिन किसी भी कानून में बदलाव मात्र से समाज और पीड़ित व्यक्ति को लाभ नहीं मिल सकता हैं. जब तक व्यवस्थिका के साथ ही कार्यपालिका में उपरोक्त कानूनों को लेकर सख्त दिशा-निर्देश नहीं बनाये जाते हैं.तब तक इनमें किया बदलाव निर्थक होगा.
आई.पी.सी.धारा 498A में निम्नलिखित होना चाहिए.
1.अगर कोई पति-पत्नी अलग रहते हो तब उसके परिवार के अन्य सदस्यों को इसमें मात्र पति के रिश्तेदार होने की सजा नहीं दी जानी हैं यानि उनका नाम शामिल नहीं किया जाना चाहिए.
2.अगर कोई पति-पत्नी संयुक्त परिवार में रहते हैं.तब केस में ऐसे व्यक्तियों और महिलाओं का नाम शामिल नहीं होना चाहिए.जो खुद की देखभाल करने में सक्षम(गंभीर बीमार,चलने-फिरने के लायक न हो) न हो और नाबालिग बच्चों का नाम भी कहीं नहीं लिखा जाना चाहिए और खासतौर पर 14 साल से छोटे बच्चे का नाम बिलकुल भी नहीं हो चाहिए.बाकी सदस्यों का नाम पूरी जांच करके ही शामिल करने चाहिए.
3.उपरोक्त धारा में सजा और जुरमाना फ़िलहाल पर्याप्त है लेकिन इसका आरोप पत्र 180 दिनों में दाखिल किया जाना चाहिए. इन केसों का अंतिम फैसला अधिकतम पांच साल में हो जाना चाहिए यानि प्रथम सत्र, द्धितीय सत्र और तृतीय सत्र में आधिक से अधिक 18 महिने में फैसला होना चाहिए. जैसे-सत्र अदालत,हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट आदि.
4.ऐसे मामलों में महिला द्वारा पति का घर छोड़े हुई अंतिम तारीख से एक साल बीत जाने के बाद ही दोनों पक्षों को आवेदन करने पर तलाक मिल जाना चाहिए.मगर पति पर मामले की गंभीरता को देखते हुए उपरोक्त केस चलता रहना चाहिए.इससे दोनों पक्षों को नया जीवन जीने का मौका मिलना चाहिए.इससे वैवाहिक समस्यों के चलते होने वाली आत्महत्या की संख्या में काफी कमी आएगी.इस सन्दर्भ में विदेशों बनाये कानूनों को देखा जाना चाहिए.वहां पर वैवाहिक मामलों जल्दी से निपटारा हो जाता है.चाहे तलाक हो या अन्य(घरेलू हिंसा) कोई विवाद हो.
5.इसे मामलों में महिला अधिक से अधिक 90 दिनों में ही मामला दर्ज करवाएं.गर्भवती,शारीरिक(चोट लगी,जली हुई स्थिति में)और मानसिक रूप से बीमार(डाक्टर द्वारा घोषित-बोलने या अपना पक्ष रखने में असमर्थ)महिला अधिकतम पति का घर छोड़ने की अंतिम तारीख से एक साल में मामला दर्ज करवाएं.अक्सर होता यह है महिला के परिजन सौदेबाजी में लगे रहते हैं और मुंह मांगी रकम न मिलने पर ही केस दर्ज करवाते हैं.
6.सिर्फ ऐसे मामलों में अगर पति द्वारा महिला को शारीरिक (गुप्त अंगों पर काटना, जलाना, किसी वस्तु से गहरी चोट पहुंचा रखी हो) और मानसिक(कैद करके रखा हो, नशीली दवाइयां दी गई हो, वेश्यावृति अपनाने के लिए मजबूर किया हो, अश्लील फोटो या फिल्म बने हो और इन्टरनेट या संचार माध्यमों में प्रसारित की हो या अन्य कोई ऐसा आधुनिक तरीका जिससे उसका मानसिक संतुलन खराब हो जाता/गया हो)रूप से जख्मी किया हो. उनको तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और उसको अग्रिमी जमानत नहीं मिलनी चाहिए.कई बार ऐसे अवसर आते हैं कि-पुरुष पत्रकार और सभ्य व्यक्ति पीड़ित की हालात भी नहीं देख सकता है. जैसे-वक्षों/जांघों पर काटना, योनि और नितम्बों को सिगरेट, लोहे के सरिया या चिमटे से जलाना आदि.इसलिए ऐसे मामलों को बहुत सख्ती से निपटने की आवश्कता है.
7.पति-पत्नी,परिजन,दोस्तों द्वारा महिला-पुरुष पर तेजाब फैंकवाने या महिला-पुरुष की बहन या भाई का अपहरण करना और उसकी बहन से या किसी महिला अन्य महिला से शादी करवाने के लिए मजबूर करवाना या अन्य महिलाओं से संबंध बनाना या उसे अपने साथ रखना,जानलेवा हमला करवाना और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-क में वर्णन नियम.
(क) जानबूझ कर किया गया कोई आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिस से उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को (जो मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने की संभावना है;या
8.घरेलू उपयोग में आने वाली चीजों की मांग पर या अपनी ख़ुशी से दिए जाने पर मामला दर्ज नहीं होना चाहिए.ऐसी वस्तुएं जो दोनों पति-पत्नी व बच्चों के प्रयोग में सहायक हो.कार, मोटर साईकिल आदि के साथ ही कीमती चीजें और पहले से मौजूद आई.पी.सी.धारा 498A में अभिपेत-ख में वर्णन नियम.
(ख) किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उस को या उस के किसी नातेदार को किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरी करने के लिए उत्पीड़ित किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई नातेदार ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहा है।
तिलक नगर में स्थित गुरुद्वारा में अरदास करते  हुए

9.वैवाहिक मामलों को पुलिस केस दर्ज करने से पहले पति व महिला के रहने के स्थान पर जाकर आस-पडोस, R.W.A और सामाजिक स्तर की छानबीन करनी चाहिए.ऐसी जांचें थानों में बैठकर नहीं होनी चाहिए.पुलिस का रवैया ऐसे मामलों में दोस्तना(कोई पेशेवर अपराधी नहीं है इसका खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए) हो चाहिए.किसी सभ्य व्यक्ति का काम और समय बार-2 थाने में बुलाकर नष्ट न करें.किसी प्रकार की शिकायत या फैसले की प्रति दोनों को जारी करें.
10.वैवाहिक मामलों के लिए पुलिस में अलग विभाग हो.जैसे-अब वोमंस सैल है.मगर इसमें महिला-पुरुष को वैवाहिक जीवन को सुखमय चलने के लिए मनोचिकित्सक, क़ानूनी-वैवाहिक सलाहकारों की नियुक्ति होनी चाहिए.महिला-पुरुष की शिकायत पर दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए और श्रीमती किरण वेदी द्वारा अभिनीत कार्यक्रम "आपकी कचहरी"के फोर्मेट पर उनकी शिकायत पर की कार्यवाही की अपनाई गई पूरी प्रक्रिया की वीडियों फिल्म बननी चाहिए.किसी प्रकार की शिकायत या फैसले की प्रति दोनों को जारी करें.
11. सुझाव नं.6 में उल्लेखित क्रूरता(जो प्रथम दृष्टि में दिखाई देती है)को छोड़कर अगर जब तक ठोस सबूत न हो तब आरोपित व्यक्तियों को अग्रिमी जमानत दे देनी चाहिए.ऐसे मामलों में जज पक्षपात का व्यवहार न करें.
12.दहेज या घरेलू वस्तुएं दोनों पक्षों की सहमति से लिया-दिया जाता है.इसलिए उसकी सूची पर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर होने चाहिए.यह न हो महिला पक्ष ने जो सामान दिया ही नहीं हो,उसको भी अपनी सूची में लिखवा दें और स्त्रीधन का निपटारा वोमंस सैल या मध्यस्थता में ही होना चाहिए.अगर महिला पक्ष स्त्रीधन पर नहीं मानता है.तब उनके पक्ष की आय के स्रोतों की जांच इनकम टैक्स विभाग द्वारा की जानी चाहिए.इससे शादी-विवाह में बहुत ज्यादा खर्च किया जा रहा काला धन पर रोक लगाईं जा सकती हैं.
13.जब तक किसी महिला को मानसिक व शारीरिक गंभीर चोट न लगी.तब उसको तलाक की एवज में किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिलवाना चाहिए.कई बार ऐसा होता है कि-महिला की जबरदस्ती शादी कर दी जाती हैं या यह कहे उनके किसी से प्रेम संबंध होते हैं.तब उपरोक्त महिला झूठे आधार तैयार करती हैं और इससे साजिश रचकर शादी करने वाली महिला और माता-पिता पर रोक लग सकेंगी.
 अपनी  पत्रिका  की  प्रचार  सामग्री  वितरण करते  हुए
   अगर इन उपायों का प्रयोग किया जाता है. तब "विवाह" नामक संस्था पर लोगों का विश्वास कायम होने के साथ ही महिला के ऊपर किये जा रहे अत्याचारों पर रोक लग जाएँगी और कोई दोषी बचेगा नहीं और निर्दोष व्यक्ति शोषित नहीं होगा.इससे असली पीड़ित महिला को न्याय मिलेगा और न्यायलयों में फर्जी केसों का बोझ नहीं बढेगा.ऐसा मुझे विश्वास है.
आई.पी.सी.धारा498B में निम्नलिखित होना चाहिए.
1.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों को सरकार घरेलू सामान के लिए या वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पूरी सुरक्षा के साथ ही एक लाख रूपये की राशि दहेज प्रथा,जाति,धर्म का भेदभाव को मिटाने   में योगदान देने के एवज में सहायता के रूप में उपलब्ध करवाएं और उनके विवाहित जीवन पर सामाजिक स्तर या थाना स्तर पर नजर रखें.कहीं ऐसा न हो कि-पैसों के लालच में इसका दुरूपयोग न कोई करें.  
2.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में महिला के परिजनों द्वारा दखलांदाजी करने पर या वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाने के लिए किये जाने वाले ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए.
3.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत विवाहित जोड़ों के वैवाहिक जीवन में अगर स्वंय महिला या अपने परिजनों व किसी के बहकाने पर वैवाहिक जीवन को तनाव पूर्ण बनाती है या अपनी जिम्मेदारियों और दायित्व का पालन नहीं करती हैं या किसी अनैतिक संबंध कायम करने का कार्य करती हैं.तब ऐसे कार्यों के लिए धारा 498A में दर्ज सजा और जुरमाना लागू होना चाहिए और साथ में पति का कैरियर चौपड़ करने,प्रतिष्टा धूमिल करने और न्याय प्रक्रिया का समय ख़राब करने के जुर्म में कम से कम पांच लाख का जुरमाना लिया जाना चाहिए.इसका कुछ भाग पीड़ित पक्ष की स्थिति को देखते हुए दिया जाना चाहिए.
4.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में शादी के अंतर्गत मामलों में पति द्वारा पत्नी या अपने सुसरालियों की पुलिस में की गई शिकायत पर जल्दी कार्यवाही होनी चाहिए और फैसले की कापी दोनों को दी जानी चाहिए और पति के शादी के पहले 7 सालों में वैवाहिक कारणों से आत्महत्या करने के सन्दर्भ में पत्नी और उसके परिजनों के खिलाफ केस दायर करना सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए और इसमें पति के परिजनों को सरकारी सहयता के रूप में मुआवजा दिलवाने के साथ ही अपने खर्च पर सरकारी वकील या वकील की फ़ीस आदि की व्यवस्था करें.  
5.विशेष विवाह अधिनियम 1954 या किसी प्रकार का कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मन्दिर में जो पति-पत्नी बच्चों को अपने साथ या पास रखेगा. उसका पालन-पोषण उसकी जिम्मेदारी होगी.उसको दूसरे व्यक्ति से मुआवजा मांगने का हक़ नहीं होगा.किसी मामले में पिता-माता नशेडी या अपराधिक प्रवृति का हो और माँ-पिता किन्ही कारणों से कमाने में असमर्थ हो.तब दूसरे पक्ष की पालन-पोषण की जिम्मेदारी होगी.
कानून के दुरूपयोग से सभ्य व्यक्ति रूप बदलकर रहने को मजबूर
 अगर इन उपायों का प्रयोग किया जाता है. तब "विवाह" नामक संस्था पर लोगों का विश्वास कायम होने के साथ ही पुरुष के ऊपर किये जा रहे अत्याचारों पर रोक लग जाएँगी और कोई दोषी बचेगा नहीं और निर्दोष व्यक्ति शोषित नहीं होगा. इससे असली पीड़ित पुरुष को न्याय मिलेगा और न्यायलयों में फर्जी केसों का बोझ नहीं बढेगा.ऐसा मुझे विश्वास है.

32 टिप्‍पणियां:

  1. .

    रमेश जी ,

    अत्यंत शोधपरक आलेख है। गहन विवेचना की है आपने कानून की , उसमें त्रुटियों की एवं सुधार की।आपके विचारों से सहमत हूँ । सदियों पूर्व के नियम जो चले आ रहे हैं वे तेज़ी से बदलती परिस्थियों और समय के अनुकूल नहीं हैं। इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार की ज़रुरत है और सरकार के द्वारा सार्थक बदलावों की ।

    .

    जवाब देंहटाएं
  2. .

    आपने अपने नाम के आगे 'सिरफिरा' क्यूँ लिखा है ? आपका लेखन तो अत्यंत गहन विश्लेषणात्मक है। आपकी ऊर्जा एवं चिंतन से प्रभावित हूँ।

    .

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रमेश जी ,आप ११ लाख निरदोष पतियों का दरद महसूस करे बेकसूर हाेने के बाद भी जेल जा चुके हैं....

      हटाएं
    2. रमेश जी ,आप ११ लाख निरदोष पतियों का दरद महसूस करे बेकसूर हाेने के बाद भी जेल जा चुके हैं....

      हटाएं
    3. रमेश जी ,आप ११ लाख निरदोष पतियों का दरद महसूस करे बेकसूर हाेने के बाद भी जेल जा चुके हैं....

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  3. आपका प्रयास सार्थक है रमेश जी... भगवन करे कि आप जरूर सफल होवें. और आपकी मदद के लिए मैं भी प्रयास करूँगा... जैसा भी हो सकेगा मैं आपको सूचित जरूर करूँगा

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  4. बहुत सुन्दर और शानदार पोस्ट! बधाई!

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  5. किये जा रहे अत्याचारों पर रोक लग जाएँगी
    और कोई दोषी बचेगा नहीं
    और
    निर्दोष व्यक्ति शोषित नहीं होगा

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  6. बिडम्बना यही है की हर तरह के कानून की
    धज्जियां उड़ाने वाले --- डाल-डाल पर बैठे हैं |

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  7. रमेश जी आपका लेख बहुत ही अच्छा है अगर ऐसा सभी लोग समझें और सहयोग दें तो आत्महत्या तलाक के केसों में कमी आयेगी और लोगों को न्याय मिल सकेगा नहीं तो सालों अदालतों के चक्कर काटते हैं इस आशा से कि न्याय मिलेगा जब न्याय का रूप सामने आता है व्यक्ति के पास अपनी सांस पर काबू पाने की मोहलत भी नहीं मिलती क्योकि न्याय वो तो पैसों वालंो की जेबों में चला जाता है

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  8. क्या कहू मै इस किस्से की बानगी
    रमेश जी आपने तो पी एच डी कर डाली अपने खुद के हालात पर देश की दशा आैर िदशा दोनों ठीक नही है दहेज की समस्या आैर महिला प्रताण्ाना पर जो कानून बने है उसमें जरूर संशोध्ान की दरकार है। महिला पक्ष् इसका मिसयूज कर रहे हैं ये सत्य है।

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  9. I think you are also womwen biased, like 498a.

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  10. sir theek easi prakar se section 9 or ,,,,,dhara 13-b ka vistar purvak varnan kare ,,,,,,apko bhut dhanyawad,,,,,please sir

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  11. sir theek esi prakar se dhara-13b or section -9 ka vivran de,,,please

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  12. रमेश जी आपके सुझाव अच्छे हें! में भी गत कई वर्षों से इसी समस्या से गुजर रहा हु ज्यादा कानून की समझ नहीं होने के कारण में कई वर्षों से अपने परिवार से ही दूर अकेला रह रहा हूँ ईश्वर से यही प्रार्थना करता हु की इस कानून में जल्दी संसोधन हो ताकि अपने जीवन को फिर से सुचारू रूप से चला सकू....धन्यवाद !!!

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  13. bhaiya bat to theek hai par manega kon.........desh mai vot benk ki rajneeti hai dharm neeti nahi ........mai khud peedit hu jabki ek sahitykar hu...............meri hi bhavnao ka hanan ho rha hai or mansik utpeedan b

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  14. Meri wife mere ghar me nai rehna chahti jo k tehsil place hai mera 1 bachha b hai.vah apni mother k yaha hi hai pichle 4 -5 mahino se.mere jane par mujhe excite kiya or maine saale ko maar diya.unhine meri fir kara di ab court se phone aa raha hai.maine job b chod di biwi aa nai rahi kehti hai pehle job dhundo badi city me ghar lo tab aaungi plz help me

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  15. Kash aisa ho jaye sirji. Hamara to pura mayka is JAL me fas gaya h. Kya kare?

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  16. mai khud is paresani se jujh raha hu
    meri wufe 7 sal pahle 2,28000 le k stamp pe sine kar di di ki hamara rista khatam

    lekin 1 month k bad mere aur mere mother father k upar cort me jhutha mukdma kr di
    aub ham log paresan
    mere father ki mrityu v 1 sal pahle ho gai

    koi upay ho to hame bataye

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  17. जो स्त्री आज कमाई कर सकती हैं वह भी इस कानून की आड़ में एक मुश्त बड़ी राशि मांगती हैं क्या यह आज की कमाऊ नारी को शोभा देता है जब कमाने की बात आती है तो क्यूं ये नारियां अबला बनकर कोर्ट में खड़ी हो जाती हैं और वैसे महिलायें कसीस से पीछे नहीं रहना चाहती तो फिर मेहनत में पीछे क्यूं यह एक मुश्त राशि मांगना भी तो एक तरह दहेज़ ही हुआ

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  18. जो लोग ऐसा करते है वो भूल जाते है की कि बेटा उनके पास भी है बहू उनके घर भि आएगी मै भि ऐसे हालात से जूझ राहा हू मेरा ससूराल दानापूर ईमलितल है

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  19. Ramesh Ji me bhi reporter noon me aapke is lekh se impress hua hop me Aap sent contact Karna chahata hoon mera news paper public Pradhan moradabad aata hai

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    उत्तर
    1. सबसे पहले तो अपनी बात सोशल वेबसाईट पर देवनागरी हिंदी रखना सीखें और फिर गूगल पर अपनी पहचान स्थापित करके किसी से वार्तालाप करें...जब पत्रकार हो डर किस बात का ? गूगल पर मेरा सम्पर्क सूत्र भी मिल जायेगा. ऑफिस समय में जब मर्जी बात कर सकते हैं..

      हटाएं
  20. AAP BILKUL SAHI HAI ME APKE SATH HU, KYUKI IS 498a ACT KA BHUT SE LOG APNE MATLAB KE LIYE GALAT UPYOG KAR RHE HAI, APKA YE KADAM SARAHNIY HAI SIRJI....

    जवाब देंहटाएं
  21. Kya aap mery help Kar skate hai mai ek bahan hu mera ek bhai hai pitaji nahi hai ek MA hai dono jail me hai ek bhatija hai ek shal ka binakisi kasur jail me hai kyoki larki ne susied Kar liya jiske jimmedar uske hi MA bap hai phir bhi unhone daury death ka 304b ka cash Kar diya hai koi nahi hai madad Karne wala aap hi kuch kigiy mere MA bhai mautke gimmedar nahi larki Ke MA bap hai please help and ansme

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  22. लेकिन आज उन महिलाओं का क्या होगा जो घरेलू हिंसा का शिकार हैं पुलिस प्रतिवादीगण से रुपये खा कर केस को कमजोर
    कर देती हैं। अब ऐसे में वो महिलाएं क्या करें मुझे बताओ।9871130597

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  23. sir main ek goverment employee hu. meri wife n mere or mere parivaar k khilaf women self main sikayat kar rakhi h. mujhe dar h kahi wo muje railway se n nikalwa de. plz help me

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  24. 498A ME MERA BHAI BHI FANSA HE.AUR MERA PURA PARIAVAR..LADKIYA IS DHARA KI GALAT ISTMAL KARKE APNE SASURAL SE BADLA LETI HE..GOVERNMET JAISA KOI HE TO GENTS KE BHI KOI KANUN BANAV.BAS. YAHI CHAHTI HU..

    जवाब देंहटाएं

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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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