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मंगलवार, जनवरी 03, 2012

फेसबुक के दोस्तों को अलविदा !

लो दोस्तों, आपने पुराने साल को विदा कर दिया है. अब मुझे भी विदा करों. ज्यादा जानकारी एक दो दिन में दूँगा. अपनी विदाई पर इन शब्दों के साथ कर रहा हूँ. गौर कीजियेगा कि:- "अरी ओ फेसबुक, अगर जिन्दा रहे तो तेरे पास आ जायेंगे, वरना नए डाक्टरों के रिसर्च* (शोध) के काम आ जायेंगे" 
हाँ, दोस्तों यह बिल्कुल सच है. लौट सके तो नए शब्दों की रचना करेंगे. वरना...अब तक लिखे को ही दोस्त पढ़ते रह जायेंगे. श्री अहमद फ़राज़ साहब का कहना कि:-चलो कुछ दिनों के लिये दुनिया छोड़ देते है ! सुना है लोग बहुत याद करते हैं चले जाने के बाद !! 
*सिखने/सिखाने के उद्देश्य की जाने वाली चीरफाड़.
क्या आदमी को बुजदिलों की मौत मरना चाहिए या वीरों की ? 
शीर्षक में पूछे प्रश्न का उत्तर कहूँ या टिप्पणी दें. 
 दोस्तों, फेसबुक की मेरी वाल पर और ब्लोगों पर इतना है कि अगले चार महीने में पूरा पढ़ भी नहीं पायेंगे. आप और आपकी दुआओं से जीवन रहा तो आप लोगों का "सिर-फिराने" के लिए हाजिर हो जायेगें.यह दुनियाँ ही चला-चली की है. मैं जाऊँगा तब ही तो दूसरा आएगा.आज हममें भोग-विलास की वस्तुओं से मोह ज्यादा है.जब भी समय मिले तब ब्लॉग और वाल जरुर पढ़ें.मैं जानता हूँ कि लोग अभी नहीं पढ़ेंगे लेकिन मेरी मौत के बाद एक-एक शब्द पढेंगे.यह मुझे मालूम है. शायद आपको पता हो कि-हमें डिप्रेशन और डिमेंशिया की बीमारी है. अब अगले चार महीनों में उस पर विजय भी प्राप्त कर लेंगे. 
         अगर कुछ अच्छे और सच्चे ब्लॉगरों ने और फेसबुक/ऑरकुट प्रयोगकर्त्ता ने साथ दिया तो अपनी सच लिखने वाली लेखनी से मेरे ऊपर झूठे केस दर्ज करने वाले अफसरों (अंधी-बहरी सरकार की भ्रष्ट व्यवस्था) की नाक में दम कर दूँगा.हम किसी को थप्पड़ मार नहीं सकते हैं, मगर अपनी लेखनी से अंगार(सच) उगल सकते हैं और उसके लिए फांसी का फंदा चूम सकते हैं. सिंह की तरह से निडरता से सच लिखना जानता हूँ. www.sach-ka-saamana.blogspot.com यहाँ पर क्लिक करें और पढ़ें. आप मेरे किसी भी एक ब्लॉग पर जायेंगे और अगर आपने थोडा-सा ध्यान से पढ़ा.तब आपको एक ब्लॉग पर मेरे दूसरे ब्लोगों के लिंक और बहुत उपयोगी जानकारियां भी प्राप्त होगी. ऐसा मेरा विश्वास और उम्मीद है.
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मार्मिक अपील-सिर्फ एक फ़ोन की !

मैं इतना बड़ा पत्रकार तो नहीं हूँ मगर 15 साल की पत्रकारिता में मेरी ईमानदारी ही मेरी पूंजी है.आज ईमानदारी की सजा भी भुगत रहा हूँ.पैसों के पीछे भागती दुनिया में अब तक कलम का कोई सच्चा सिपाही नहीं मिला है.अगर संभव हो तो मेरा केस ईमानदारी से इंसानियत के नाते पढ़कर मेरी कोई मदद करें.पत्रकारों, वकीलों,पुलिस अधिकारीयों और जजों के रूखे व्यवहार से बहुत निराश हूँ.मेरे पास चाँदी के सिक्के नहीं है.मैंने कभी मात्र कागज के चंद टुकड़ों के लिए अपना ईमान व ज़मीर का सौदा नहीं किया.पत्रकारिता का एक अच्छा उद्देश्य था.15 साल की पत्रकारिता में ईमानदारी पर कभी कोई अंगुली नहीं उठी.लेकिन जब कोई अंगुली उठी तो दूषित मानसिकता वाली पत्नी ने उठाई.हमारे देश में महिलाओं के हितों बनाये कानून के दुरपयोग ने मुझे बिलकुल तोड़ दिया है.अब चारों से निराश हो चूका हूँ.आत्महत्या के सिवाए कोई चारा नजर नहीं आता है.प्लीज अगर कोई मदद कर सकते है तो जरुर करने की कोशिश करें...........आपका अहसानमंद रहूँगा. फाँसी का फंदा तैयार है, बस मौत का समय नहीं आया है. तलाश है कलम के सच्चे सिपाहियों की और ईमानदार सरकारी अधिकारीयों (जिनमें इंसानियत बची हो) की. विचार कीजियेगा:मृत पत्रकार पर तो कोई भी लेखनी चला सकता है.उसकी याद में या इंसाफ की पुकार के लिए कैंडल मार्च निकाल सकता है.घड़ियाली आंसू कोई भी बहा सकता है.क्या हमने कभी किसी जीवित पत्रकार की मदद की है,जब वो बगैर कसूर किये ही मुसीबत में हों?क्या तब भी हम पैसे लेकर ही अपने समाचार पत्र में खबर प्रकाशित करेंगे?अगर आपने अपना ज़मीर व ईमान नहीं बेचा हो, कलम को कोठे की वेश्या नहीं बनाया हो,कलम के उद्देश्य से वाफिक है और कलम से एक जान बचाने का पुण्य करना हो.तब आप इंसानियत के नाते बिंदापुर थानाध्यक्ष-ऋषिदेव(अब कार्यभार अतिरिक्त थानाध्यक्ष प्यारेलाल:09650254531) व सबइंस्पेक्टर-जितेद्र:9868921169 से मेरी शिकायत का डायरी नं.LC-2399/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 और LC-2400/SHO-BP/दिनांक14-09-2010 आदि का जिक्र करते हुए केस की प्रगति की जानकारी हेतु एक फ़ोन जरुर कर दें.किसी प्रकार की अतिरिक्त जानकारी हेतु मुझे ईमेल या फ़ोन करें.धन्यबाद! आपका अपना रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"

क्या आप कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अपने कर्त्यवों को पूरा नहीं करेंगे? कॉमनवेल्थ खेलों की वजह से अधिकारियों को स्टेडियम जाना पड़ता है और थाने में सी.डी सुनने की सुविधा नहीं हैं तो क्या FIR दर्ज नहीं होगी? एक शिकायत पर जांच करने में कितना समय लगता है/लगेगा? चौबीस दिन होने के बाद भी जांच नहीं हुई तो कितने दिन बाद जांच होगी?



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